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भारतीय वैक्सीन हैं सुरक्षित

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प्रतीत होता है कि भारत की इस पहल और दुनिया के कई देशों में मानवता की रक्षा हेतु वैक्सीन उपलब्ध कराने के कारण विश्व की कई कंपनियों में अकुलाहट बढ़ गयी है.

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भारत सरकार कोरोना महामारी से निबटने के लिए अपनी वैक्सीन विकसित कर स्वास्थ्यकर्मियों और कोरोना के खिलाफ युद्ध में संलग्न अन्य कर्मियों समेत तीन करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाने की मुहिम के शुरू से ही कुछ निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा स्वदेशी वैक्सीन के खिलाफ दुष्प्रचार किया जा रहा है. इस दुष्प्रचार और कुछ अन्य कारणों से कुछ लोग वैक्सीन के प्रति हतोत्साहित हो रहे हैं. इस कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से अपील की है कि वे इस दुष्प्रचार से प्रभावित न हों.

प्रधानमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और सरकारी प्रतिनिधियों के द्वारा बार-बार समझाया भी जा रहा है कि भारतीय वैक्सीन सुरक्षित भी है और प्रभावी भी. लगभग एक सदी के बाद मानवता एक भयानक महामारी से गुजर रही है. विशेषज्ञों को इससे निबटने के लिए कोई भी इलाज नहीं सूझ रहा था. ऐसे में इस बीमारी के प्रति शरीर में प्रतिरोधात्मक शक्ति विकसित करना ही एकमात्र हल सोचा जा रहा है.

एलोपैथिक चिकित्साशास्त्र में इसके लिए वैक्सीन एक उपाय माना जाता है. सामान्य परिस्थितियों में एक वैक्सीन को विकसित करने में सात से 10 साल का समय लगता है, लेकिन इस महामारी में विशेषज्ञों पर दबाव था कि वे जल्द से जल्द वैक्सीन विकसित करें. दुनियाभर में 200 से अधिक प्रयास चल रहे हैं, जिनमें 18 प्रयास भारत में हो रहे हैं. गौरतलब है कि भारत लंबे समय से वैक्सीन के क्षेत्र में अग्रणी देश रहा है. यहां की लगभग सात कंपनियां वैक्सीन बना कर दुनियाभर में बेचती रही हैं.

दुनिया में वैक्सीन कहीं भी विकसित हो, उसके बड़े स्तर पर उत्पादन में भारतीय कंपनियों को खासी महारत हासिल है. ‘सीरम इंस्टीट्यूट’ और ‘भारत बायोटेक’ नामक दो भारतीय कंपनियों ने कोरोना वैक्सीन का व्यावसायिक उत्पादन शुरू कर दिया है और कोरोना योद्धाओं के यह वैक्सीन दी जा रही है.

लेकिन ‘भारत बायोटेक’ की वैक्सीन ‘कोवैक्सिन’ के खिलाफ दुष्प्रचार भी तेज हो गया है. पहले से ही कुछ अन्य कारणों और स्वाभाविक डर के कारण वैक्सीन के प्रति हिचकिचाहट के साथ यह दुष्प्रचार वैक्सीन के प्रति कुछ लोगों को हतोत्साहित कर रहा है. हालांकि दोनों भारतीय वैक्सीनों को सभी प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद आपातकालीन उपयोग की अनुमति दी गयी है, लेकिन ‘कोवैक्सिन’ के बारे में प्रचारित किया जा रहा है कि चूंकि इसके तीसरे चरण के परीक्षण पूर्ण नहीं हुए हैं, इसलिए इसकी प्रभावी क्षमता सुनिश्चित नहीं है,

जबकि सच यह है कि ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित और सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा निर्मित ‘कोविशील्ड’ और भारत बायोटेक द्वारा विकसित एवं निर्मित ‘कोवैक्सिन’ दोनों को विषय विशेषज्ञ समिति की अनुशंसा पर ही अनुमति मिली है. कहा जा रहा है कि इस वैक्सीन को देने से पहले जिन्हें वैक्सीन दी जा रही है, उनकी सहमति जरूरी है. गौरतलब है कि विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में चयनित इन टीकों के बारे में किसी भी प्रकार की शंका का कोई स्थान नहीं है.

समझना होगा कि वर्तमान में कोरोना योद्धाओं और अन्य ऐसे व्यक्तियों, जिन्हें इस संक्रमण का सबसे अधिक खतरा है, उन्हें ये वैक्सीन आपातकालीन व्यवस्था के अंतर्गत दी जा रही है, क्योंकि उनके जीवन को खतरे में नहीं डाला जा सकता. यही नहीं, विश्व के अत्यंत सम्मानजनक मेडिकल जरनल ‘लैंसेट’ द्वारा प्रकाशित दस्तावेज के अनुसार भारत बायोटेक द्वारा विकसित वैक्सीन ‘कोवैक्सिन’ सुरक्षित भी है

और प्रभावी भी. तकनीकी डाटा का विश्लेषण करते हुए दस्तावेज में कहा गया है कि इस वैक्सीन में सम्मिलित तत्व शरीर में प्रतिरोधात्मक शक्ति को बढ़ाने का कार्य करेंगे. कंपनी ने दूसरे चरण के ट्रायल का डाटा भी प्रकाशित कर दिया है, जिसका विश्लेषण जल्द ही प्रकाशित होगा. दूसरे चरण के परिणाम भी उत्साहवर्द्धक हैं.

अन्य वैक्सीनों की अपेक्षा ‘कोवैक्सिन’ की खासियत यह है कि ये कोविड के बदले हुए प्रकार के वायरस के खिलाफ भी प्रभावी है. यह दावा भारत बायोटेक की साझीदार संस्था आइसीएमआर का है. वैज्ञानिक विश्लेषण भी उनके समर्थन में हैं. फिर भी स्वदेशी वैक्सीन के खिलाफ लगातार दुष्प्रचार जारी है. हालांकि निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता, लेकिन प्रतीत होता है कि भारत की इस पहल और दुनिया के कई देशों में मानवता की रक्षा हेतु वैक्सीन उपलब्ध कराने के कारण दुनिया की कई कंपनियों में अकुलाहट बढ़ गयी है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन और गेट्स फाउंडेशन सरीखी दुनिया की बड़ी-बड़ी एजेंसियां भी छद्म रूप से कुछ बड़ी दवा कंपनियों द्वारा विकसित वैक्सीन की बिक्री सुनिश्चित करने हेतु पहले से ही सक्रिय हैं. इन एजेंसियों द्वारा ‘कोवैक्स फैसिलिटी’ के नाम से एक व्यवस्था को आगे बढ़ाने का काम किया गया है, जिसमें विभिन्न देशों की सरकारों से इन वैक्सीनों को खरीदने के लिए दबाव भी बनाया गया और कई मुल्क उसके लिए राजी भी हो गये.

यह एक खुला सत्य है कि इस व्यवस्था में बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां शामिल हैं. भारत द्वारा अपनी स्वदेशी वैक्सीन विकसित करने के कारण निहित स्वार्थों का पूरा खेमा विचलित है. यह संभव है कि स्वदेशी वैक्सीन के खिलाफ ये शक्तियां शंका उत्पन्न कर अपना बाजार गर्म करने की कोशिश में हैं. ऐसा लगता है कि इस दुष्प्रचार के बारे में सरकार पूरी तरह से सजग है और टीकाकरण की तेजी से भारत दुनिया में बढ़त बना चुका है.

Posted By : Sameer Oraon

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