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मॉरीशस से मुक्त व्यापार समझौता

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यह समझौता न केवल मॉरीशस के साथ हमारे संबंधों को गहरा करने के लिए अहम है, बल्कि उन्हें अगले स्तर तक ले जाने के लिए भी है.

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डॉ नेहा सिन्हा

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रिसर्च फेलो, इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स

nsinha.rnc@gmail.com

मॉरीशस, दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर का ‘लिटिल इंडिया’, भारत के साथ एक अति घनिष्ठ लिंक साझा करता है. इस द्वीपीय देश की न केवल प्रधानमंत्री मोदी के ‘सागर’ (सुरक्षा और क्षेत्र में सभी के लिए विकास) के दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण भूमिका है, बल्कि हिंद महासागर क्षेत्र में भारत का प्रमुख समुद्री पड़ोसी भी है. भारत और मॉरीशस दोनों ऐतिहासिक सांस्कृतिक संपन्नता, नियमित उच्च-स्तरीय राजनीतिक संपर्क, विकास सहयोग, रक्षा और समुद्री साझेदारी से आपसी जुड़ाव बनाये हुए हैं.

विदेश मंत्री एस जयशंकर की दो दिवसीय यात्रा भारत के लिए मॉरीशस की महत्ता को रेखांकित करती है. यह यात्रा दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है. मॉरीशस अफ्रीकी क्षेत्र का पहला देश है, जिसके साथ भारत ने मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किया है. यह व्यापक आर्थिक सहयोग और भागीदारी के साथ रणनीतिक रूप से स्थित द्वीपीय देश को अफ्रीकी महादेश में व्यापार, माल और सेवाओं में नये अवसर प्रदान कर व्यापार विस्तार के लिए महत्वपूर्ण मंच मुहैया कराता है.

मॉरीशस अफ्रीका के प्रवेश द्वार की तरह है. भारतीय कारोबारी मॉरीशस और पूरे महादेश में निवेश करने में सक्षम होंगे. यह यात्रा हिंद महासागर के प्रति भारत की समुद्री रणनीति को विकसित करने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि हिंद महासागर में भारत सुदृढ़ रणनीतिक स्थिति में है.

भारत और मॉरीशस के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2005-06 में 207 मिलियन डॉलर से बढ़ कर 2019-20 में 690 मिलियन डॉलर हो गया. यह वृद्धि 233 फीसदी रही है. मॉरीशस में भारत का निर्यात इसी अवधि में 199 मिलियन डॉलर से बढ़ कर 662 मिलियन डॉलर हो गया, जबकि आयात सात मिलियन डॉलर से बढ़ कर लगभग 28 मिलियन डॉलर हो गया. यह समझौता न केवल अफ्रीका के साथ भारत के व्यापार संबंधों के लिए, बल्कि हिंद महासागर के भू-राजनीति के लिहाज से भी उल्लेखनीय है.

जनवरी, 2021 में चीन ने भी मॉरीशस के साथ मुक्त व्यापार समझौता किया है. चीन का मॉरीशस के साथ द्विपक्षीय व्यापार 2018 के 185 बिलियन डॉलर की तुलना में 2020 में 192 बिलियन डॉलर हो गया. हिंद महासागर में चीन की बढ़ती मौजूदगी भारत के लिए एक कठिन चुनौती है.

मॉरीशस के साथ भारत के संबंध को मजबूत करने के लिए जयशंकर ने मॉरीशस के लिए 100 मिलियन डॉलर के रक्षा ऋण की भी घोषणा की है. एक समझौते के तहत, एक डोर्नियर विमान और एक उन्नत हल्का हेलीकॉप्टर दो साल के लिए मॉरीशस को लीज पर दिया जायेगा. यह पहल फिर रेखांकित करती है कि मॉरीशस की सुरक्षा भारत की सुरक्षा है. इस संदर्भ में, भारत को हिंद महासागर में अपनी भूमिका बढ़ाने की आवश्यकता है.

भारत इस क्षेत्र में एक ‘शुद्ध सुरक्षा प्रदाता’ की भूमिका निभाने की इच्छा रखता है और उसने जरूरत के समय में हिंद महासागर के देशों की लगातार मदद की है. अगर कोविड-19 वैक्सीन के संबंध में बात करें, तो भारत ने न केवल मॉरीशस को चिकित्सा सहायता दी, बल्कि भारतीय नौसेना के जहाज ने अन्य छोटे हिंद महासागर देशों को भी सहायता प्रदान की. यात्रा के दौरान जयशंकर ने कोविड टीकों की और एक लाख खुराक प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ को सौंपी है. भारत ने इससे पहले जनवरी में एक लाख खुराक दी थी. अब मॉरीशस ने टीकों की अतिरिक्त दो लाख खुराक का अनुरोध किया है.

भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, मॉरीशस के एजलेगा द्वीप और सेशेल्स में अजंपशन द्वीप के साथ-साथ भारत अपनी सुरक्षा सीमा को और सुदृढ़ बनाने के लिए हिंद महासागर के अधिक से अधिक देशों में पहुंच बनाने का इच्छुक है, जो भारत के सुरक्षा हितों के दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण है. हिंद महासागर के देशों के साथ मजबूत व्यापार और आर्थिक संबंध भारत के हित में हैं तथा भारत-मॉरीशस मुक्त व्यापार समझौता इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.

भारत-मॉरीशस का संबंध प्रत्यक्ष निवेश के प्रवाह व व्यापार में वृद्धि, भारत से बढ़ती निकटता, मॉरीशस में इसके विशाल प्रवासी तथा सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति के साथ एक बहुत बड़े मंच पर आधारित है. दोनों देशों के सामने जलवायु परिवर्तन की चेतावनी से लेकर समुद्री असुरक्षा और खतरे जैसी समान वैश्विक चुनौतियां हैं. असुरक्षित जल के बावजूद एक दूसरे के साथ हमारे सहयोग की एक अनछुई यात्रा रही है. भारत ने मॉरीशस की आर्थिक, सैन्य और कूटनीतिक रूप से सहायता की है.

इस प्रकार, मॉरीशस भारत का प्रमुख व्यापारिक साझेदार, निवेश मार्ग और हिंद महासागर में साझा संस्कृति वाला मित्र बना हुआ है. ऐसे में यह समझौता न केवल मॉरीशस के साथ हमारे संबंधों को गहरा करने के लिए अहम है, बल्कि उन्हें अगले स्तर तक ले जाने के लिए भी है. विदेश मंत्री की इस यात्रा से यह उम्मीद की जा रही है कि दोनों देशों के संबंध बड़ी ऊंचाइयों तक पहुंचेंगे.

Posted By : Sameer Oraon

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