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क्वाड बढ़ायेगा भारत का रुतबा

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क्वाड की इस पहल से वैश्विक परिदृश्य पर बहुत असर पड़ेगा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की भूमिका एवं महत्व का विस्तार होगा.

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साल 2004 में आयी सुनामी की आपदा में भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राहत व बचाव प्रक्रिया में उल्लेखनीय भूमिका निभायी थी. उस समय अनेक लोकतांत्रिक देशों को यह अहसास हुआ कि भारत एक महत्वपूर्ण सहयोगी हो सकता है और साथ मिलकर काम किया जाना चाहिए. क्वाड का विचार उसी समय आया था. उसके बाद आधिकारिक और गैर-सरकारी स्तरों पर संपर्कों और बैठकों का सिलसिला शुरू हुआ.

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बीच में ऐसा अवसर आया, जब ऑस्ट्रेलिया इस विचार पर आगे बढ़ने से हिचकिचाने लगा था क्योंकि उसका राजनीतिक नेतृत्व चीन के साथ संबंधों को मजबूत करने की कोशिश में लगा था. भारत और अमेरिका भी बहुपक्षीय सहयोग की तुलना में द्विपक्षीय संबंध बढ़ाने में अधिक रुचि लेने लगे थे. ट्रंप प्रशासन के दौर में परस्पर संबंध बहुत अच्छे भी रहे थे. क्वाड का विचार तब भी मौजूद था और इस संदर्भ में कुछ गतिविधियां भी हो रही थीं, लेकिन दोनों देशों का अधिक ध्यान आपसी सहयोग पर था.

क्वाड के तहत रणनीतिक और सामुद्रिक मामलों पर ही सक्रियता थी क्योंकि साउथ चाइना सी में चीन बहुत दबाव डाल रहा था. उस दौरान इन देशों ने साझा नौसैनिक अभ्यास भी किया. उसके बाद विदेश मंत्री स्तर की वार्ताएं हुईं. लेकिन अब कोरोना महामारी से निपटने की प्रक्रिया में भारत ने वैक्सीन के निर्माण और निर्यात में बड़ी सफलता हासिल की है, पूरी दुनिया का ध्यान हमारी ओर आया है.

अमेरिका में सत्ता में आये नये प्रशासन की शुरुआती राय यह थी कि उसे चीन के विरुद्ध बहुत आक्रामक रवैया नहीं अपनाना चाहिए. बाइडेन प्रशासन कुछ मामलों में चीन से सहयोग और कुछ मामलों में विवाद के संतुलन साधने में इच्छुक था. उन्हें तब यह अहसास नहीं था कि एशिया के कई देश लगातार चीनी दबाव में हैं और वे क्वाड जैसे किसी समूह या पहल की आवश्यकता महसूस कर रहे हैं ताकि चीनी महत्वाकांक्षा को नियंत्रित किया जा सके.

क्वाड के एशियाई सदस्यों ने बाइडेन प्रशासन को इन चिंताओं से आगाह कराया और यह संकेत दिया कि यदि अमेरिका की इच्छा चीन से सहयोग बढ़ाने पर है, तो अन्य देश अपने स्तर पर कोई साझा पहल कर सकते हैं तथा इसमें रूस और यूरोप के विभिन्न देशों का साथ ले सकते हैं.

तब अमेरिका को एशियाई देशों, विशेषकर क्वाड सहयोगियों की चिंताओं का भान हुआ और उसने समझा कि इस अवसर से चूकना नहीं चाहिए. उसे यह भी समझ में आया कि चीन को नियंत्रित और शांत रखने का यह एक उपाय हो सकता है. क्वाड नेताओं की पहली शिखर बैठक अमेरिका की पहल पर ही हुई और बहुत कम समय में इसे आयोजित किया गया. इसमें कोरोना महामारी से पैदा हुई परिस्थिति में सहयोग बढ़ाने के अलावा जलवायु परिवर्तन की गंभीर समस्या पर भी विचार किया गया है.

वैक्सीन की समुचित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त उत्पादन हेतु जापान और अमेरिका ने भारत को आर्थिक सहयोग देने का फैसला किया है तथा ऑस्ट्रेलिया यातायात संबंधी पहलुओं पर सहयोग देगा. इस लिहाज से यह बहुत अर्थपूर्ण बैठक हुई है और भविष्य के सहयोगों के लिए इससे ठोस आधार मिलेगा. चीन की आक्रामकता के साथ उसकी बेल्ट-रोड परियोजना के तहत कई देश कर्ज के चंगुल में फंस रहे हैं. क्वाड की यह कोशिश उनके लिए उल्लेखनीय राहत साबित होगी. इस तरह पहले की सुनामी के बाद अब महामारी सुनामी ने क्वाड को साकार करने के लिए जरूरी माहौल मुहैया कराया है.

क्वाड की इस पहल से वैश्विक परिदृश्य पर बहुत असर पड़ेगा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की भूमिका एवं महत्व का विस्तार होगा. भारत कोरोना बाद की दुनिया का एक अहम आधार बनेगा. अनेक देश क्वाड देशों के साथ इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने और निवेश बढ़ाने की संभावनाओं पर भी विचार कर रहे हैं. जहां तक आसियान और अन्य एशियाई देशों का सवाल है, उनके साथ सहयोग बढ़ाने की उम्मीद है और क्वाड प्लस जैसी कोशिशों की चर्चा भी शुरू हो गयी है. इसमें रूस और विभिन्न यूरोपीय देशों की भागीदारी भी हो सकती है.

चीन अभी तक यह समझ रहा था कि क्वाड ठोस समूह के रूप में अस्तित्व में नहीं आयेगा, इसलिए उसे कोई विशेष चिंता भी नहीं थी. वह ऑस्ट्रेलिया पर दबाव डालने में कामयाब भी हो रहा था. जापान भी एक समय क्वाड में कम दिलचस्पी लेने लगा था और उसे दक्षिण कोरिया व आसपास के देशों से सहयोग बढ़ने की बहुत उम्मीद नहीं थी.

अब चीन यह सोचने लगा है कि क्वाड क्या चीन को बिल्कुल अलग रखेगा या उससे सहयोग की गुंजाइश हो सकती है. भारत ने हमेशा खुले और समावेशी सहयोग की बात कही है. ऐसे में चीन के साथ सहकार की संभावना हो सकती है, लेकिन चीन को भी अपनी आक्रामकता, वर्चस्ववाद, विस्तारवाद और शक्ति प्रदर्शन की प्रवृत्ति को छोड़ना होगा.

चीन ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन को लेकर भी कह रहा है कि इन समूहों का क्या होगा क्योंकि भारत क्वाड का सदस्य भी है. ऐसे सवाल पहले अमेरिका भी उठाता था कि भारत इन समूहों में रहते हुए क्वाड में कैसे सक्रिय होगा. चीन को भारतीय पक्ष को समझना होगा और यह नहीं सोचना चाहिए कि भारत आर्थिक व तकनीकी तौर पर चीन से बहुत पीछे है.

भारत के साथ वह हांगकांग या ताइवान जैसा व्यवहार नहीं कर सकता है. भारत ने अपने दरवाजे हमेशा खुले रखे हैं और वह अभी भी ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन और रूस, चीन व भारत के साझे मंच का हिस्सा है. शंघाई सहयोग संगठन आतंकवाद रोकने में खासकर दक्षिण-पश्चिमी एशिया में, बहुत कारगर हो सकता है. ब्रिक्स की अपनी अहमियत है.

कई देशों के साथ भारत के अंतरक्षेत्रीय संबंध हैं. इन सभी प्रक्रियाओं के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र जैसे बहुपक्षीय मंचों को भी मजबूती दी जा सकती है तथा जलवायु परिवर्तन, विकसित, विकासशील देशों की आकांक्षाओं जैसे मामलों में परस्पर सहयोग बढ़ाया जा सकता है. भारत की इस सभी पहलों में भूमिका है. अगले ब्रिक्स सम्मेलन की मेजबानी भारत को ही करनी है.

सीमा विवाद के निपटारे से जुड़े भारत के साथ पूर्ववर्ती समझौतों और व्यवस्थाओं का उल्लंघन करते हुए चीन ने जो हालिया हरकतें की हैं, उससे दोनों देशों के बीच का भरोसा बहुत कम हुआ है. बीते एक साल में चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन किया है, हमारे सैनिकों पर हमले हुए हैं, आपत्तिजनक बयानबाजी हुई है. ऐसे में हमें भी जवाब देना पड़ रहा है. अब चीन को यह तय करना है कि वह भारत के साथ सहयोग को लेकर कितना गंभीर है.

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