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मार्च के महीने में क्यों बढ़ जाता है नक्सली हमला? कैसे और मजबूत बन रहा है नक्सलियों का गढ़

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अगर हम आंकड़ों पर गौर करेंगे ,तो नक्सलियों के हमले का एक पैटर्न हमें समझ में आयेगा. छत्तीसगढ़ में ज्यादा नक्सली हमले मार्च और जुलाई के बीच में होते हैं. इसका सबसे बड़ा कराण है कि नक्सली फरवरी से जून के बीच में बड़ी योजनाएँ बनाते हैं और मानसून से पहले यह इसी तरह के हमले को अंजाम देते हैं.

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छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर में 175 से ज्यादा जवान शहीद हो चुके हैं. अगर पिछले 10 सालों के आंकड़े पर गौर करें तो अबतक सिर्फ छत्तीसगढ़ में 489 जवान शहीद हो चुके हैं. इन दस सालों में जवानों को 3 हजार से ज्यादा नक्सली हमलों का सामना करना पड़ा है. ताजा मामला बीजापुर का है जहां 22 जवान शहीद हो गये.

अगर हम आंकड़ों पर गौर करेंगे तो नक्सलियों के हमले का एक पैटर्न हमें समझ में आयेगा. छत्तीसगढ़ में ज्यादा नक्सली हमले मार्च और जुलाई के बीच में होते हैं. इसका सबसे बड़ा कराण है कि नक्सली फरवरी से जून के बीच में बड़ी योजनाएँ बनाते हैं और मानसून से पहले यह इसी तरह के हमले को अंजाम देते हैं.

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लगातार 15 सालों से इन जगहों पर रहकर नक्सली हमलों का करारा जवाब देने वाले सुरक्षा के जवान आज भी इन इलाकों में ऑपरेशन चलाने, बड़े नक्सली अभियान को रोकने और कड़ी कार्रवाई करने में परेशानियों का सामना करते हैं. यह बड़ी चिंता कारण का कारण है.

इसका सबसे बड़ा कारण है दूर दराज जंगल का इलाका . सरकारी अधिकारियों की अनदेखी और राजनीतिक इच्छा की कमी. यही कारण इन इलाकों में नक्सल को मजबूत करते हैं नक्सलियों को और मजबूत करता है आसपास के राज्यों से सटा इलाका है. आंध्र प्रदेश और ओड़िशा जैसे राज्य हैं जहां नक्सल हैं , इन इलाकों का जंगल से सटा होने इन्हें मजबूत बनाता है. हमले के बाद आसानी से यह बोर्डर पार कर सकते हैं.

पूर्व सीआरपीएफ के डीजी ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को बताया सड़कों का ना होना, संपर्क का कोई माध्यम ना होना उन्हें इन जंगली इलाकों में और मजबूत कर देता है. इन सबके बाद एक बड़ा कारण है नक्सल को खत्म करने के लिए राज्य कितना सहयोग कर रहा है.

अगर किसी दूसरे राज्य में नक्सल अभियान से इसे समझने की कोशिश करें तो हम पायेंगे कि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य जिन्होंने इस मामले को गंभीरता से लिया. ज्यादातर खुफिया जानकारी लोकल पुलिस के द्वारा इकट्ठा की जाती थी.

यही जानकारी सुरक्षा बलों तक पहुंचायी जाती है . सीआरपीएफ के अधिकारियों ने कहा- यहां सड़क का नेटवर्क भी बहुत खराब है जो माओवादियों के पक्ष में जाता है. बिहार और झारखंड में भी इससे बहेतर सड़क के नेटवर्क फैले हैं, संचार का माध्यम भी इससे बेहतर है.

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सीआरपीएफ के एक अधिकारी ने कहा, सलवा-जुडूम अभियान ने भी नुकसान पहुंचाया. इस अभियान ने गांव को दो भागों में बाट दिया जिन इलाकों में अभियान शुरू हुआ वह सुरक्षा बलों के साथ रह गये जबकि दूसरी के लोगों को छोड़ दिया गया.

वक्त के साथ माओवादियों ने इन इलाकों में खुद को औऱ मजबूत किया और वैसे इलाके जहां ट्राइबल रहते हैं उन्हें टारगेट किया. आसपास के कई राज्यों में ऐसे ठिकाने बनाये जो उन्हें ज्यादा सुरक्षित करते हैं.

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