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कोरोना पर विजय पाना संभव

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अगर समाज का संपूर्ण साथ न मिले, तो सरकारें चाह कर भी ऐसी आपदा पर अपेक्षित समय और निर्धारित तरीके से विजय नहीं पा सकतीं.

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इस महाआपदा के दौर में दो घटनाओं ने भारत समेत पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है. पहली घटना थी, इजराइल में मास्क की अनिवार्यता खत्म करना. वहां एक 35 वर्षीय महिला ने अपना मास्क हटाते हुए जो वीडियो पोस्ट किया, उसका संदेश यही था कि देखो, हमने कोरोना जैसी आपदा पर विजय पा लिया है. कुछ तस्वीरें ब्रिटेन से आयीं. पाबंदियां काफी कम होने के बाद वहां के लोग जिस तरह पब, रेस्तरां, सांस्कृतिक केंद्र, थिएटर आदि में दिख रहे हैं, उनका संदेश भी यही है.

हालांकि ब्रिटेन ने अभी कोरोना से पूरी तरह मुक्त होने की घोषणा नहीं की है, लेकिन सरकार और स्वास्थ्य विभाग की ओर से संदेश चला गया है. इजराइल दुनिया का पहला देश बना है, जिसने स्वयं को कोरोनामुक्त घोषित किया है. ज्यादातर देश ऐसी घोषणा करने का साहस नहीं कर पा रहे हैं.

निस्संदेह, ये दृश्य हम भारतीयों को ललसानेवाले हैं. हमारे मन में भी प्रश्न उठ रहा होगा कि कब हम इन देशों की तरह फिर से खुलकर जी सकेंगे? यहीं पर इजरायल के चरित्र को समझना जरूरी हो जाता है. रेगिस्तान के बीच बसे इस छोटे से देश ने अपने परिश्रम, अनुशासन, समर्पण और दृढ़ संकल्प के साथ न सिर्फ अपनी धरती को हरियाली से लहलहाया, बल्कि अनेक मामलों में विकसित देशों के समानांतर स्वयं को खड़ा किया.

कोरोना में भी पूरे देश ने ऐसा ही अनुशासन दिखाया. एक बार मास्क लगाने की घोषणा हो गयी, तो फिर किसी ने उस पर न प्रश्न उठाया और न ही टालमटोल ही किया. लोगों ने सामाजिक दूरी का पूरी तरह पालन किया. इसके लिए वहां की पुलिस, सेना या अन्य एजेंसियों को हमारे देश की तरह कसरत नहीं करनी पड़ी क्योंकि सबका अंतर्भाव यही था कि एक देश के रूप में हमें कोरोना पर विजय पाना है.

इसी तरह उसने टीकाकरण अभियान का सार्वजनिककरण किया. टीका के पहले खुराक को 100 दिन में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था. आज 16 से 80 वर्ष तक के 81 प्रतिशत लोगों का टीकाकरण हो चुका है. इसके साथ धीरे-धीरे परिस्थितियों का मूल्यांकन किया गया. जब स्पष्ट हो गया कि यह आपदा अब समाप्ति के कगार पर है, तब देश के कोरोना संकट से बाहर आने की घोषणा कर दी गयी.

ब्रिटेन भी ने भी आपदा का कम संघात नहीं झेला है. यह उन देशों में शामिल था, जहां कोरोना ने अपना संपूर्ण भयावह रूप दिखाया. ब्रिटेन भी ऐतिहासिक रूप से एक अनुशासित देश रहा है, पर पिछले कुछ वर्षों में उसके राष्ट्रीय अनुशासन में कमी आयी है. कोरोना काल में भी कुछ समूहों ने मास्क, सामाजिक दूरी से लेकर लॉकडाउन तक में अनुशासनहीनता दिखाने की कोशिश की, जिससे शासन धैर्य से निपटा.

अलग-अलग समुदायों, अप्रवासियों आदि के प्रमुख लोगों को अनुशासन का पालन कराने की सक्रिय भूमिका में लाया. ब्रिटेन तीन बार में 175 दिनों का सख्त लॉकडाउन लागू करने वाला देश है. इसे झेलना कितना कठिन होगा, यह हम भारतीयों से बेहतर कौन जा सकता है! ध्यान रखें, वायरस के जिस घातक वेरिएंट की बात भारत में हो रही है, उसका उद्भव ब्रिटेन से ही पता चला था. वहां से आनेवाले उसे लेकर भारत आये और हमारे देश में कोहराम मचा है. लेकिन ब्रिटेन ने उस वेरिएंट पर लगभग काबू पा लिया है. अगर ब्रिटेन ऐसा कर सकता है, तो हम क्यों नहीं? अगर इजरायल कोरोनामुक्त हो सकता है, तो भारत क्यों नहीं?

निस्संदेह, इजरायल और ब्रिटेन भारत की तुलना में अत्यंत कम आबादी के देश हैं. इजरायल की कुल जनसंख्या 93 लाख के आसपास है. ऐसे में टीकाकरण सहित कोरोना अनुशासन का पालन कराना आसान है. ब्रिटेन की आबादी सात करोड़ से नीचे है. जनसंख्या कम या ज्यादा होना एक कारक हो सकता है. यहां मूल बात राष्ट्र का संकल्प और उसे पूरा करने के लिए दिखायी गयी एकजुटता व अनुशासन है.

ब्रिटेन ने भी जिस तरीके से टीकाकरण किया, वह मिसाल है. प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने घोषणा कर दी है कि हर शुक्रवार को दोनों टीके मुफ्त लोगों के लिए उपलब्ध रहेंगे. यह स्थिति अधिकतर आबादी को टीका लगाने के बाद उत्पन्न हुई स्वाभाविक निश्चिंतता का प्रमाण है. इजराइल ने अपने चरित्र के अनुरूप कोरोना मुक्ति अभियान में संपूर्ण देश को लगा दिया. सत्ता प्रतिष्ठान से लेकर समाज के हर समूह के लिए कोरोना पर विजय पाना राष्ट्रीय लक्ष्य बन गया. ऐसा नहीं है कि इजराइल और ब्रिटेन में कोरोना इतनी बड़ी बीमारी नहीं है, कहनेवाले लोग नहीं थे.

यह महामारी है या बीमारी, इस पर हमारे देश की तरह वहां भी बहस हुई और हो रही है. लेकिन इससे उनका लक्ष्य बाधित नहीं हुआ. ब्रिटेन में भी विपक्ष ने सरकार की आलोचना की, समय-समय पर उसे घेरा, किंतु वे अभियान में सहयोगी बने रहे. भारत के अंदर भी कोरोना पर विजय पाने की संपूर्ण क्षमता मौजूद है. इजरायल में नेतनयाहु को बहुमत तक प्राप्त नहीं है, लेकिन नागरिकों के स्वास्थ्य और सुरक्षा को लेकर वहां किसी तरह का मतभेद हो ही नहीं सकता.

हम वैसा राष्ट्रीय संकल्प और उसके प्रति दृढ़ अनुशासन नहीं अपना पाते क्योंकि उस तरह का भाव हमारे यहां स्वाभाविक रुप से विद्यमान नहीं है. निस्संदेह, केंद्र एवं राज्य सरकारों के कोरोना प्रबंधन में भारी कमियां दिखती रहीं हैं. ब्रिटेन से आये नये वेरिएंट को लेकर देश को आगाह भी किया गया था. पर हमारी तैयारी वैसी नहीं हुई, जैसी होनी चाहिए. इजराइल और काफी हद तक ब्रिटेन से हम सीख सकते हैं कि किसी आपदा के समय सरकार सहित संपूर्ण देश का आचरण कैसा होना चाहिए.

अगर समाज का संपूर्ण साथ न मिले, तो सरकारें चाह कर भी ऐसी आपदा पर अपेक्षित समय और निर्धारित तरीके से विजय नहीं पा सकतीं. सरकार को हम दोष दे सकते हैं, लेकिन क्या समाज के रूप में हमने कोरोना पर सजगता, संकल्प और अनुशासन दिखाया है, जैसा हमने कुछ दूसरे देशों में देखा है? इजरायल के लोग कह रहे हैं कि मास्क अनिवार्य न रहने से उनको खुशी है, लेकिन इससे उनको कोई समस्या नहीं थी यानी आगे भी आवश्यकता दिखने पर वे स्वतः इसे अपना लेंगे.

हमारे यहां तो लोग मास्क पहनकर ही बाहर निकलें, ठीक से पहनें, इसके लिए पुलिस को लगाना पड़ा. यकीन मानें, हम भी इन देशों की श्रेणी में शीघ्र खड़े हो सकते हैं, अगर केंद्रीय सत्ता से लेकर राज्य सरकारें, स्थानीय शासन, धार्मिक-सांस्कृतिक-सामाजिक-व्यापारिक समूह, शैक्षणिक संस्थानों सहित हर भारतीय अंतर्मन यह मान कर कि कोरोना पर विजय का राष्ट्रीय लक्ष्य हासिल करना है, उसके अनुरूप अपने को झोंक दें.

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