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वायरस पर नियंत्रण करता अमेरिका

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अमेरिका ने साबित कर दिया है कि वह किसी भी आपदा से निकल सकता है क्योंकि देश में एक सिस्टम है, जो नेताओं के बयानों का मोहताज नहीं है.

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कोरोना महामारी के संदर्भ में अमेरिका की मौजूदा स्थिति के बारे में अगर बहुत संक्षेप में कहना हो, तो यही कहा जा सकता है- बिना मास्क वाला अमेरिका. यह कहा जा सकता है कि बाकी दुनिया की तरह पिछले साल से कोविड-19 के संक्रमण से जूझते अमेरिका ने चौदह महीनों की अवधि में इस वायरस पर नियंत्रण कर लिया है. डॉक्टरों ने निर्देश जारी कर दिया है कि घर के बाहर खुले में लोग बिना मास्क के मिल-जुल सकते हैं. उम्मीद की जा रही है कि अगले एक से दो महीने में जनजीवन पूरी तरह से सामान्य हो जायेगा तथा स्कूल-कॉलेज भी पूरी तरह खुल जायेंगे. अमेरिका में देश की चालीस प्रतिशत से अधिक आबादी को टीके की दोनों खुराक दी जा चुकी है और और साठ प्रतिशत से अधिक लोगों को पहला टीका लगाया जा चुका है. आंकड़ों के अनुसार, देश के स्वतंत्रता दिवस यानी चार जुलाई तक सत्तर प्रतिशत लोगों को टीके की दोनों खुराक दे दी जायेगी. वयस्कों के साथ ही अमेरिका के अधिकतर राज्यों में बारह साल और उससे ऊपर के बच्चों-किशोरों को भी टीके लगाने का अभियान शुरू हो चुका है. महामारी नियंत्रण से संबद्ध अधिकारियों ने जानकारी दी है कि इस साल दिसंबर के अंत तक चार साल से ऊपर के बच्चों के लिए भी कोरोना का टीका उपलब्ध हो जायेगा. इन तथ्यों से स्पष्ट इंगित होता है कि टीकाकरण अभियान व्यापक सफलता के साथ आगे बढ़ रहा है.

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अमेरिका ने इस महामारी के आलम में यह दिखाया है कि अगर किसी देश में यदि सिस्टम सही ढंग से काम कर रहा हो, तो एक नासमझ राष्ट्रपति के बावजूद स्थिति पर ठीक से नियंत्रण पाया जा सकता है. पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में जहां कोरोना की स्थिति पर विरोधाभासी खबरें आ रही थीं, मसलन- राष्ट्रपति खुद ही मास्क पहनने का मजाक उड़ा रहे थे, वहीं उनके बाद जो बाइडेन के कार्यभार संभालते ही ऐसी चीजें बदल गयीं. प्रशासन ने ठोस योजना के आधार पर एक साथ काम करना शुरू किया और चार महीनों में देश की आबादी के बड़े हिस्से को टीका लग गया है. अमेरिका के सभी पचास राज्यों में इस समय कोरोना संक्रमण के मामलों में लगातार कमी आ रही है और अभी कोई भी राज्य खतरे के दायरे में नहीं है. ऐसा होने के पीछे मुख्य कारण वैक्सीन को ही बताया जा रहा है. इसके साथ ही, लोगों ने भी आम तौर पर इस बीमारी को लेकर बहुत समझदारी का परिचय दिया है. सरकार ने भले ही वैक्सीन की दोनों खुराक ले चुके लोगों के लिए मास्क न पहनने की छूट दे दी है, लेकिन लोग अभी भी सड़कों पर अक्सर मास्क पहने हुए दिख जाते हैं. लोगों का कहना है कि साल भर तक मास्क पहना है, तो एकाध महीने और मास्क पहनने में कोई बुराई नहीं है. दुकानों और रेस्टोरेंट के अंदर जाने पर अभी भी दुकानदारों ने यह नियम बरकरार रखा है कि मास्क पहनकर आयें, जबकि इसके लिए सरकार की तरफ से कोई बाध्यता नहीं है. यह सराहनीय व्यवहार है.

अमेरिका के बारे में यह कहा जा सकता है कि अब इस देश को कोरोना महामारी को हराने में सफलता मिली है. पांच लाख मौतों से उबरने के बाद अब देश फिर से पुरानी राह पर है, जहां रोजगार सृजन के नये अवसरों को तैयार करने की बातें हो रही है. ऐसा नहीं है कि कोरोना ने लोगों को प्रभावित नहीं किया है. आर्थिक तौर पर देखें, तो इस संक्रमण से अमेरिका को खासा नुकसान हुआ है और कई छोटे कारोबारों पर असर पड़ा है. ये छोटे व्यापारी कभी वापस अपने कारोबार में लौट पायेंगे या नहीं, यह कह पाना मुश्किल है. हालांकि सरकार प्रयास कर रही है कि कामकाजी और मध्यवर्गीय परिवारों को ज्यादा से ज्यादा राहत दी जाए. कोरोना के दौरान एकमुश्त रकम देने के अलावा सरकार ने इस साल कम आय वाले परिवारों को टैक्स में भी राहत देने की घोषणा की है. देश में धीरे-धीरे अब लोग उन कामों के लिए योजनाएं बनाने लगे हैं, जिन्हें वे पिछले एक साल से टाल रहे थे, मसलन- शादियां, बड़ी पार्टियां और खेल से जुड़े आयोजन. ऐसे आयोजनों में जाने को लेकर लोग न केवल उत्साहित हैं, बल्कि विदेश यात्राओं को लेकर भी एक सकारात्मक उम्मीद लोगों में देखी जा रही है.

अमेरिका ने घरेलू मोर्चे पर कोरोना महामारी पर नियंत्रण करने के बाद अब अन्य देशों को मदद करने की घोषणा की है. राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा है कि वे दुनिया के अलग-अलग देशों को टीकों की आठ करोड़ खुराक अगले कुछ महीनों में मुहैया करा सकेंगे. इनमें से एक बड़ा हिस्सा आस्त्राजेनेका टीकों का होगा, जिसका इस्तेमाल अमेरिका ने अपने नागरिकों के लिए नहीं किया है. अमेरिका में इस्तेमाल किये गये फाइजर और मॉडेर्ना के टीकों के निर्यात की बातचीत भी चल रही है. इस बाबत इन कंपनियों ने भी संकेत दिये हैं. अमेरिका ने अपने यहां ये टीके मुफ्त में दिये हैं सभी लोगों को, लेकिन दूसरे देशों को आपूर्ति करने की क्या रणनीति होगी, यह कहना मुश्किल है.

राष्ट्रपति बाइडेन के भाषण की मानें, तो उन्होंने कहा है कि वे ये टीके बिना शर्त लोकतांत्रिक देशों को देंगे, लेकिन यह मदद के तौर पर होगा या इसके लिए कोई अन्य अलिखित शर्त होगी, यह स्पष्ट नहीं है. वैसे बाइडेन ने यह भी कहा है कि टीकों के निर्माण को लेकर अमेरिका गंभीर है और चाहता है कि दुनिया में टीके भेजने के लिए टीकों का निर्माण अमेरिका में ही हो, इसके लिए वे प्रयास करेंगे. इसे साधारण शब्दों में ऐसे कहा जा सकता है कि अमेरिका ने इस आपदा में अपना घर संभालने के बाद अवसर भी खोज लिया है. अगर आनेवाले समय में टीके हर साल लगाये जाने लगे, तो इससे अमेरिकी कंपनियों को बड़ा फायदा होगा क्योंकि यहां बने फाइजर और मॉडेर्ना के टीके अधिक कारगर साबित हुए हैं. ऐसे में बहुत संभव है कि कई देशों को ये टीके आगामी सालों में अमेरिका से खरीदने पड़ सकते हैं. फिलहाल अमेरिका ने पिछले चौदह महीनों में यह जरूर साबित कर दिया है कि वह किसी भी आपदा से निकल सकता है क्योंकि देश में एक सिस्टम बना हुआ है, जो नेताओं के बयानों का मोहताज नहीं है. कोरोना संक्रमण के कारण अमेरिका ने अपनी पूंजीवादी व्यवस्था की खामियों को भी पहचाना है और आनेवाले समय में स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी बदलाव की संभावनाओं पर अमेरिका में व्यापक विमर्श होने की संभावना जतायी जा रही है.

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