15.1 C
Ranchi
Wednesday, February 26, 2025 | 04:28 am
15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

आवश्यक पुनर्विचार

Advertisement

राजद्रोह का निराधार आरोप मढ़ कर और संबंधित कानूनों का भय दिखाकर मीडिया को रोकने या प्रताड़ित करने की कोशिश अनुचित है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

कुछ समय से मीडिया के खिलाफ राजद्रोह कानून के तहत मुकदमा दर्ज करने की बढ़ती प्रवृत्ति पर सर्वोच्च न्यायालय ने चिंता जतायी है. आंध्र प्रदेश के दो खबरिया चैनलों की याचिका की सुनवाई करते हुए न्यायाधीश डीवाइ चंद्रचूड़, एलएन राव और एसआर भट्ट की खंडपीठ ने संबंधित कानूनी प्रावधानों और उनके लागू करने के रवैये की समीक्षा की जरूरत भी बतायी है. सोमवार को ही इस खंडपीठ ने महामारी से संबंधित एक अन्य मामले पर विचार करते हुए टिप्पणी की कि उसे उम्मीद है कि लाशों को नदी में डालने की एक घटना का वीडियो दिखानेवाले पोर्टल के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा नहीं किया गया होगा.

हाल के वर्षों में सरकारों, सरकारी विभागों और पुलिस द्वारा औपनिवेशिक दौर में बने इस विवादास्पद कानून के तहत कई मामले दर्ज किये हैं, जिनमें पत्रकार, मीडिया संस्थान, सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता आरोपित हैं. सेवानिवृत्त जजों समेत कई विशेषज्ञ इस कानून को खत्म करने की मांग भी कर चुके हैं. राजद्रोह के प्रावधान को इसके विरोधी असंतोष और विरोध के दमन का एक हथियार मानते हैं.

कई दशक पहले सर्वोच्च न्यायालय ने इस कानून को वैध ठहराते हुए इसके साथ अनेक शर्तें जोड़ दी थीं ताकि इसका दुरुपयोग रोका जा सके. एक अलग याचिका में उस फैसले को दो पत्रकारों ने चुनौती दी है, जो सर्वोच्च न्यायालय के सामने विचाराधीन है. लोकतंत्र की रक्षा करने और उसे मजबूत करने में स्वतंत्र मीडिया की ऐतिहासिक भूमिका रही है.

इस भूमिका को निभाने के क्रम में उसे सरकारों, अधिकारियों और जन-प्रतिनिधियों की आलोचना करने का अधिकार है. मीडिया इसी अधिकार के सहारे जनता और सत्ता के बीच एक अहम कड़ी के रूप में काम करता है. सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि सत्ता की आलोचना समेत समाचार और सूचनाएं देने के मीडिया के अधिकार के संदर्भ में भारतीय दंड संहिता में उल्लिखित राजद्रोह और अन्य कुछ कानूनों का पुनर्विश्लेषण होना चाहिए. राजद्रोह एक अति गंभीर अपराध है.

इस अपराध का आरोप ऐसे ही नहीं मढ़ा जाना चाहिए और न ही संबंधित कानूनों का भय दिखाकर मीडिया के कामकाज को बाधित करने या उसे प्रताड़ित करने की कोशिश की जानी चाहिए. अपने पूर्ववर्ती निर्देशों में अदालतों और कानूनी जानकारों द्वारा कहा जाता रहा है कि राज्य के विरुद्ध षड्यंत्र और राष्ट्रीय अखंडता को नुकसान पहुंचाने की कोशिश जैसे मामलों में ही राजद्रोह के कानून का इस्तेमाल होना चाहिए.

ऐसे उदाहरण भी हैं, जब अदालती निर्देशों के बावजूद पुलिस ने आरोपितों को परेशान करने की कोशिश की है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है. अगर कानून के दुरुपयोग से मीडिया या नागरिकों को इस अधिकार से वंचित किया जायेगा, तो यह हमारे संवैधानिक लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होगा. उम्मीद है कि सर्वोच्च न्यायालय जल्दी ही पुनर्विचार की प्रक्रिया शुरू करेगा. राजद्रोह कानून की समुचित समीक्षा से मीडिया के अधिकारों के साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को भी बल मिलेगा. भारतीय लोकतंत्र के बेहतर भविष्य के लिए यह आवश्यक है.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें
Home होम Videos वीडियो
News Snaps NewsSnap
News Reels News Reels Your City आप का शहर