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उल्टी व दस्त के सामान्य मरीजों को भी निजी अस्पताल रेफर कर रहे हैं झारखंड के सरकारी डॉक्टर, ऐसे हुआ मामले का खुलासा

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रिपोर्ट में बताया गया है कि मरीज के उल्टी-दस्त और आंख की हल्की समस्या का इलाज किया गया है. जब पड़ताल की गयी, तो पाया गया कि मरीज पहले बोकारो जिला अस्पताल में इलाज कराने गये, पर वहां से उन्हें रेफर कर दिया गया. प्रभात खबर को मिले दस्तावेज में जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने ओपीडी पर्ची पर संजीवनी हेल्थ केयर सेंटर, आरएनबी हॉस्पिटल एंड पाल आई रिसर्च सेंटर में रेफर किया है. वहीं कारनामे की जानकारी होने पर स्वास्थ्य विभाग ने सिविल सर्जन के माध्यम से डॉक्टरों से स्पष्टीकरण मांगा.

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Jharkhand News, Ayushman yojana in jharkhand रांची : सरकारी अस्पताल के डॉक्टर सरकार की सुविधाओं काे दरकिनार कर गरीब मरीजों को ठगने में लगे हैं. अस्पताल में आये मरीजों को भ्रमित कर निजी अस्पताल रेफर करते हैं. यह ठगी का धंधा बोकारो जिला अस्पताल में धड़ल्ले से चल रहा है. इसका खुलासा तब हुआ, जब आयुष्मान भारत योजना के तहत नेशनल हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी ने भुगतान के लिए प्रतिवेदन जमा किया. मरीजों का पूरा ब्योरा देते हुए भुगतान का आग्रह किया गया है.

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रिपोर्ट में बताया गया है कि मरीज के उल्टी-दस्त और आंख की हल्की समस्या का इलाज किया गया है. जब पड़ताल की गयी, तो पाया गया कि मरीज पहले बोकारो जिला अस्पताल में इलाज कराने गये, पर वहां से उन्हें रेफर कर दिया गया. प्रभात खबर को मिले दस्तावेज में जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने ओपीडी पर्ची पर संजीवनी हेल्थ केयर सेंटर, आरएनबी हॉस्पिटल एंड पाल आई रिसर्च सेंटर में रेफर किया है. वहीं कारनामे की जानकारी होने पर स्वास्थ्य विभाग ने सिविल सर्जन के माध्यम से डॉक्टरों से स्पष्टीकरण मांगा.

हालांकि स्पष्टीकरण में पूरे मामले की लीपापोती कर दी गयी है.

इधर, झारखंड स्टेट आरोग्य सोसायटी (जसास) के महाप्रबंधक मुकेश पराशर ने मामले की गंभीरता को देखते हुए बोकारो सिविल सर्जन को 13 अप्रैल को पत्र लिखा है, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि कुछ दिनों से बोकारो जिला अस्पताल द्वारा प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत रेफर करने का गलत तरीका अपनाया जा रहा है. प्रथम सात महीना में जिला अस्पताल से 45 केस रेफर किये गये. तब डीपीसी (डिस्ट्रिक्ट प्रोग्रामिंग ऑफिसर) मुकेश राय बोकारो में पदस्थापित नहीं थे.

वहीं अगले पांच माह में 71 केस रेफर किये गये. अब तक निजी अस्पताल में 125 केस रेफर किये जा चुके हैं. ऐसे में डीपीसी की भूमिका संदिग्ध प्रतीत होती है. पत्र में स्पष्ट लिखा है कि सरकारी अस्पताल में सभी सुविधाएं होने के बावजूद निजी अस्पताल में रेफर करना आयुष्मान योजना का दुरुपयोग करना प्रतीत होता है. इससे सरकारी अस्पतालों पर से लोगों को विश्वास कम होगा. सिविल सर्जन से पूरे मामले में अपना प्रतिवेदन सौंपने काे कहा गया है.

डॉक्टरों की पहली गलती मानते हुए माफ किया गया :

डॉक्टरों द्वारा भेजे गये स्पष्टीकरण के आधार पर सिविल सर्जन बोकारो ने स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त सचिव दिलेश्वर महतो को बताया है कि जिन दो डॉक्टरों डॉ नसीम व डॉ विकास पर आरोप लगाया गया था, उन्होंंने जवाब में कहा है कि मरीज के दबाव में उन्होंने हायर सेंटर या पीएमजेएवाई सेंटर रेफर किया. उन्होंने जानबूझ ऐसा काम नहीं किया. दोनों डॉक्टरों द्वारा पहली बार ऐसा कृत्य किया गया है, इसलिए चेतावनी दी गयी है. वहीं नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ पिंकी पॉल से भी स्पष्टीकरण मांगा गया है कि ऐसा प्रतीत होता है कि निजी लाभ के लिए आपके द्वारा रेफर किया जा रहा है.

बोकारो जिला अस्पताल से पहले सात महीने में 45 केस व अगले पांच माह में 71 केस किये गये रेफर

निजी अस्पताल को अब तक 125 केस रेफर किये

जा चुके हैं, जिसमें डीपीसी की भूमिका संदिग्ध मिली

केस स्टडी-1

सरस्वती कुमारी अनुमंडल अस्पताल चास में 12 दिसंबर 2020 को परामर्श लेने गयी थी. वहां तैनात डॉक्टर डॉ विकास ने सरकारी अस्पताल से 12 किमी दूर हायर सेंटर के नाम पर संजीवनी हेल्थ केयर सेंटर में रेफर कर दिया . वहीं निजी अस्पताल में भी डॉ विकास की देखरेख में ही उसका इलाज किया गया.

केस स्टडी-2

मिथिला देवी बोकारो सदर अस्पताल में इलाज कराने के लिए 13 दिसंबर को 2020 को गयी थी. उनको सामान्य बीमारी थी, लेकिन वहां तैनात डॉ नसीम ने परामर्श के बाद हायर सेंटर रेफर कर दिया. उसे भी हायर सेंटर के नाम पर संजीवनी हेल्थ केयर भेजा गया. वहां पर डॉ नसीम ने ही उस महिला का इलाज किया.

डॉक्टरों के रेफर करने पर सवाल

  • बोकारो अस्पताल में तैनात डॉक्टरों को क्या उल्टी-दस्त और आंख की हल्की समस्या का इलाज करना नहीं आता

  • आयुष्मान भारत योजना के तहत जब हायर सेंटर रेफर करना था, तो अपने अस्पताल में ही क्यों इलाज किया गया

  • निजी लाभ की कोई मंशा नहीं थी तो आयुष्मान के तहत जो फंड सरकारी अस्पताल को मिलता, उसे निजी अस्पताल में क्यों जाने दिया

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