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शॉर्ट कट से शिखर पर पहुंचने की सनक ने देबांजन को पहुंचाया जेल, ऐसे पूरा किया समाजसेवी से ‘आइएएस’ तक का सफर

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शॉर्ट कट से शिखर पर पहुंचने की सनक ने देबांजन को पहुंचाया जेल, ऐसे पूरा किया समाजसेवी से 'आइएएस' तक का सफर

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कोलकाताः समाज में नाम, शोहरत व बुलंदी के लिए इंसान क्या कुछ नहीं करता. अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए इंसान जब धैर्य के साथ सीधे व सही रास्ते पर चलता है, तो उसे मंजिल मिल ही जाती है. वहीं, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो सफलता के शिखर पर पहुंचने को शॉर्ट कट अपना लेते हैं. ऐसे लोगों को संयोगवश कुछ अच्छे नतीजे मिलते हैं, तो वह इसे कामयाबी का रास्ता मान बैठते हैं.

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धीरे-धीरे यह सनक बन जाती है और इंसान जिंदगी भर शॉर्ट कट की तिकड़म में लग जाता है. कुछ यही हाल देबांजन देब का भी था. शॉर्ट कट से सफलता के शिखर तक पहुंचने की सनक ही देबांजन देव को ले डूबी. समाजसेवी से लेकर ‘आइएएस’ बनने तक की उसकी सनक ने उसे अब सलाखों के पीछे पहुंचा दिया है.

कसबा से फर्जी आइएएस अधिकारी देबांजन देव (28) की गिरफ्तारी के बाद उसके आइएएस बनने के सफर की कहानी सामने आयी. पुलिस सूत्र बताते हैं कि उसके पिता रिटायर्ड सरकारी अधिकारी व मां स्कूल शिक्षिका हैं. देबांजन ने वर्ष 2014 में यूपीएससी की परीक्षा बेलियाघाटा स्थित एक सेंटर में दी थी. उसने घरवालों को बताया कि वह परीक्षा में पास हो गया है.

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इस बीच, उसने वर्ष 2014 से 2017 तक विभिन्न कॉलेजों से जेनेटिक्स, जूलॉजी की पढ़ाई भी की, लेकिन यहां भी वह फेल हो गया. फिर संगीत की दुनिया में किस्मत आजमाने लगा. वर्ष 2017 से 2019 तक इवेंट मैनेजमेंट, म्युजिक एलबम, डॉक्युमेंट्री बनाकर फिल्म जगत के लोगों से संपर्क बनाता रहा. देबांजन ने इस बीच जूनियर फिल्म मेकर बनकर कलकत्ता फिल्म फेस्टिवल में भी हिस्सा लिया और बड़ी फिल्मी हस्तियों के करीब पहुंचा.

…और बन गया समाजसेवी

पुलिस को प्राथमिक पूछताछ में पता चला है कि देबांजन देव ने पिछले वर्ष मास्क, सैनिटाइजर का धंधा शुरू किया. बागड़ी मार्केट से मेडिकल सरंजाम खरीदे और तालतला में गोदाम लेकर इनका धंधा करने लगा. लोगों को मास्क, सैनिटाइजर व भोजन आदि देने के लिए कुछ शिविर भी लगाये.

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बताया जा रहा है कि इस वर्ष देबांजन ने कसबा में एक कंपनी और एक एनजीओ खोलकर समाजसेवा जारी रखी. उसने अपनी कंपनी में 13 कर्मचारी नियुक्त किये. सभी को फर्जी नियुक्ति-पत्र दी थी. जब लॉकडाउन के चलते कर्मचारियों ने ऑफिस आना बंद किया, तो वह वैक्सीन देने के धंधे में उतर गया.

देबांजन के पास जो भी था, सब फर्जी

पुलिस को देबांजन से पूछताछ में पता चला है कि चूंकि पहले से उसकी छवि समाजसेवी की थी. लिहाजा, कई लोग उससे मुफ्त में वैक्सीन मांगने लगे. देबांजन के लिए यह मौका मुफीद लगा. उसने कसबा में दफ्तर खोलकर फर्जी कागजात के सहारे खुद को आइएएस अधिकारी बना लिया.

फिर वह शिविर लगाकर कोरोना से बचाव के कथित टीके लगाने लगा. उसके पास से जब्त की गयी कार भी किराये की है. उसने अपना व कर्मचारियों का पहचान-पत्र भी कंप्यूटर के जरिये हेरफेर करके बनवाया था. इस फर्जीवाड़े के बारे में उसका परिवार भी हैरान है.

Posted By: Mithilesh Jha

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