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मॉनसून सत्र से उम्मीदें

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संसद देश की सबसे बड़ी पंचायत है. इसकी बहसों, नीति व विधि निर्धारण तथा प्रस्तावों का दूरगामी प्रभाव पड़ता है.

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सोमवार से शुरू हो रहे संसद के सत्र पर देश की निगाहें हैं. पिछले डेढ़ साल से दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह भारत भी कोरोना महामारी से जूझ रहा है और हमारी अर्थव्यवस्था पर भी इसका गंभीर असर पड़ा है. विभिन्न समस्याओं का सामना कर रही देश की जनता को भरोसा है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष अपने राजनीतिक मतभेदों से परे बुनियादी मसलों पर बहस-मुबाहिसा कर आगे की राह हमवार बनाने की कोशिश करेंगे. दोनों पक्षों को भी इस बात का अहसास है कि सत्र के सुचारू रूप से चलाना जरूरी है ताकि सरकार अपनी पहलों की वकालत कर सके और विपक्ष उनकी रचनात्मक आलोचना कर अपनी भूमिका निभा सके.

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बीते डेढ़ सालों में सत्रों की अवधि में कटौती करनी पड़ी थी या उन्हें स्थगित किया गया था. सांसदों की उपस्थिति भी महामारी से प्रभावित रही. सरकार की ओर से 23 विधेयक प्रस्तुत होंगे. इनमें से नौ लंबित विधेयक हैं और दो विधेयक अध्यादेशों के बदले में लाये जायेंगे. इनमें वित्तीय विवादों के निपटारे की व्यवस्था में बदलाव, अभिभावकों व बुजुर्गों की देखभाल, दिवालिया कानून में संशोधन, प्रदूषण रोकथाम आदि महत्वपूर्ण हैं.

कोरोना महामारी की दो लहरों के असर तथा सरकार द्वारा किये गये उपायों पर भी चर्चा हो सकती है. तीसरी लहर की आशंका तथा टीकाकरण अभियान को गति देने की आवश्यकता को देखते हुए इस चर्चा का महत्व बढ़ जाता है. विपक्ष महंगाई और बेरोजगारी के मसलों पर बहस की मांग कर सकता है.

एक तरफ इस सामान्य सत्र में संसद कानून बनाने की अपनी सबसे अहम जिम्मेदारी को निभायेगी, वहीं कोरोना और अन्य खास मुद्दों पर बहस से भविष्य के लिए बेहतरी की गुंजाइश बनेगी. यह अपेक्षा ही नहीं, विश्वास भी है क्योंकि मंत्रिपरिषद के व्यापक विस्तार से सरकार भी उत्साह में है और विपक्ष को भी सरकार को घेरने का यह एक समुचित अवसर है. हालिया विधानसभा चुनाव के नतीजों से दोनों खेमों के हौसले बुलंद हैं.

शोर-शराबा और हंगामा होने की संभावना भी है, लेकिन इस मुश्किल दौर में जोर इस बात पर रहे कि संसद के कामकाज पर नकारात्मक असर न पड़े. हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक टिप्पणी में विधानसभाओं और लोकसभा व राज्यसभा में संसदीय मर्यादा का उल्लंघन करने की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जतायी है.

पक्ष और विपक्ष में बैठे हमारे निर्वाचित प्रतिनिधियों को यह याद रहना चाहिए कि संसद की कार्यवाही पर जनता की गाढ़ी कमाई खर्च होती है, इसलिए उसका उपयोग जन कल्याण और राष्ट्रीय विकास के लिए ही होना चाहिए, राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि के लिए नहीं. संसद देश की सबसे बड़ी पंचायत है. इसकी बहसों, नीति व विधि निर्धारण तथा प्रस्तावों का दूरगामी प्रभाव पड़ता है. संसद के मर्यादित क्रियाकलाप जहां भविष्य के लिए प्रेरणा के रूप में प्रतिष्ठित होते हैं, वहीं अनुचित घटनाएं जनता को निराश करती हैं. हमें भरोसा है कि हमारे सांसद इस कठिन काल में हमारी उम्मीदों पर खरे उतरेंगे.

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