27 C
Ranchi
Tuesday, April 22, 2025 | 07:43 am

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

पुनर्जीवन के प्रयास में कांग्रेस

Advertisement

अगर पंजाब का प्रयोग कांग्रेस के लिए अच्छा साबित होता है, तो आगे इसे राजस्थान में लागू किया जा सकता है. वहां भी पंजाब जैसी स्थिति है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

किसी राजनीतिक दल के प्रासंगिक और गतिशील बने रहने के लिए नेतृत्व में नये लोगों के आने का सिलसिला जरूरी है. जैसे भाजपा में 2014 के आम चुनाव की तैयारी के क्रम में पुराने शीर्षस्थ नेताओं की जगह नये नेताओं को आगे लाया गया था. इससे पार्टी को नया जीवन मिला और लाभ हुआ. वहां से भाजपा 2021 में आ गयी और आगे भी उसका भविष्य अच्छा दिख रहा है.

इसके बरक्स कांग्रेस में 2014 और 2019 की हार के बावजूद न जवाबदेही तय हुई और न ही कोई बदलाव हुआ. पार्टी पुराने ढर्रे पर ही चलती रही और अपने आदरणीय नेताओं पर दांव खेलती रही. इसका एक नतीजा हाल में हुए केरल और असम के विधानसभा चुनाव में दिखा. केरल में हर पांच साल पर सत्ता परिवर्तन होने की परिपाटी थी, लेकिन कांग्रेस इस बार वापसी नहीं कर सकी.

वहां पार्टी ओमेन चंडी, एके एंटनी, रमेश चेन्नीथला आदि नेताओं के भरोसे थी. बीच में शशि थरूर को संभावित मुख्यमंत्री के रूप में पेश करने की चर्चा चली थी, पर कोई फैसला नहीं लिया गया. जैसे वाम मोर्चे को मुख्यमंत्री पिनरई विजयन की व्यक्तिगत छवि का लाभ मिला, हो सकता था कि थरूर कांग्रेस के लिए मध्य वर्ग और नयी पीढ़ी को आकर्षित करते.

इस पृष्ठभूमि में पंजाब कांग्रेस के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है. पार्टी के आंतरिक मामलों में प्रियंका गांधी ने पहली बार आगे बढ़कर केंद्रीय नेतृत्व के रूप में हस्तक्षेप किया है और उसकी प्रभुसत्ता को स्थापित करने की कोशिश की है. मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस के बहुत अनुभवी नेता हैं, लेकिन पार्टी का आंतरिक आकलन है कि वे 2022 का चुनाव अकेले अपने दम पर नहीं जीता सकते हैं. नवजोत सिंह सिद्धू में बोलने की कला है, करतारपुर साहिब कॉरिडोर में अग्रणी भूमिका निभाने के कारण सम्मानित हैं.

उनमें एक नयापन और ऊर्जा है. सिख वोटों में उनके आकर्षण का लाभ पार्टी को हो सकता है. कांग्रेस में पहले से ही यह राय थी कि सिद्धू को महत्व दिया जाना चाहिए, लेकिन अमरिंदर सिंह विरोध में थे. ऐसे में लगभग दो महीने से ड्रामा चल रहा था. आखिरकार कांग्रेस आलाकमान अपनी बात से पीछे नहीं हटा और सिद्धू को पंजाब में पार्टी की कमान दे दी गयी. मुख्यमंत्री को संतुष्ट करने के लिए चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की बात हुई है. हालांकि अगला चुनाव कैप्टन के नेतृत्व में ही लड़ा जायेगा, पर पार्टी नेतृत्व ने यह संकेत दे दिया है कि भविष्य नवजोत सिद्धू का है.

अगर पंजाब का प्रयोग कांग्रेस के लिए अच्छा साबित होता है, तो आगे इसे राजस्थान में लागू किया जा सकता है. वहां भी पंजाब जैसी स्थिति है. मुख्यमंत्री अशोक गहलौत सम्मानित वरिष्ठ नेता हैं, लेकिन वे चुनाव नहीं जीतते हैं. वे तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री बने हैं, तो तीन बार उन्होंने सत्ता गंवायी भी है. प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए सचिन पायलट ने अपनी क्षमता का परिचय दे दिया है और गुर्जर मतदाताओं के साथ कुछ अन्य वर्गों में भी उनकी अच्छी पैठ है.

वे युवा हैं और अगर पार्टी उन्हें आगे लाती है, तो राजस्थान के साथ पूरे देश में पार्टी को लाभ होगा. यह हो सकता है कि आनेवाले दिनों में सचिन पायलट को मुख्यमंत्री न बनाया जाए, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व के सामने बड़ी चुनौती सरकार से हटाये गये उनके समर्थकों को फिर मंत्री बनाने को लेकर है. जब दो साल बाद राज्य में चुनावी सुगबुगाहट शुरू होगी, तो पायलट को ही मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में सामने लाया जायेगा. संगठन के भीतर ऐसी कड़वी दवा पिलाना राजनीतिक दलों की मजबूरी होती है, लेकिन कांग्रेस ऐसा नहीं कर पा रही थी.

अब हम प्रियंका गांधी की भूमिका की चर्चा करें. क्या वे वह व्यक्तित्व हैं, जो कांग्रेस को पुनर्जीवित कर दे? सोनिया गांधी का तरीका रहा है सबको साथ लेकर चलने का. पहले यह सफल तरीका था, पर अब नहीं है. राहुल गांधी अपनी सोच, अपनी दुनिया में रहते हैं. वे व्यावहारिक राजनीति नहीं कर पा रहे हैं. वे कांग्रेस में व्यापक बदलाव लाना चाहते हैं, लेकिन पार्टी के भीतर ही उसका विरोध है. ऐसी स्थिति में प्रियंका गांधी एक पुल का काम कर रही हैं.

वे निर्णय जल्दी लेती हैं और पार्टी की कार्य शैली में परिवर्तन लाने का प्रयास कर रही हैं. उत्तर प्रदेश में उनकी सक्रियता बढ़ी है. अगले साल वहां चुनाव हैं, पर वे मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं हैं. यह बात उनके खिलाफ जाती है. एक ओर राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं और उनके साथ भाजपा की पूरी ताकत है, अनेक क्षेत्रीय दल भी शामिल हैं, फिर समाजवादी पार्टी और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हैं.

मायावती और बसपा भी हैं, जिनके पास अपना जनाधार है. कांग्रेस का नाम तो बहुत है, पर राज्य में उसके पास जमीन बिल्कुल नहीं है. देखना यह है कि प्रियंका गांधी अपनी सक्रियता से अन्य दलों के मतदाताओं को कितना कांग्रेस से जोड़ पाती हैं या कांग्रेस के खोये जनाधार को किस हद तक वापस हासिल कर पाती हैं. उत्तर प्रदेश का चुनाव अगली लोकसभा के लिहाज से अहम तो है ही, राष्ट्रपति चुनाव के लिए भी उसका बड़ा महत्व है.

कांग्रेस अपनी वापसी के लिए कुछ अन्य रणनीतियों पर विचार कर रही है. हाल में हुई कुछ बैठकों, जैसे- कमलनाथ और प्रशांत किशोर के साथ मुलाकातें, के बारे में सार्वजनिक जानकारी नहीं दी गयी है. लेकिन इस संबंध में कुछ अनुमान लगाये जा सकते हैं. ऐसे संकेत हैं कि कांग्रेस संसदीय दल के नेता और अंतरिम अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी राजनीतिक नेतृत्व करें तथा कमलनाथ जैसे अनुभवी नेता कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में अन्य वरिष्ठ व युवा सहयोगियों के साथ संगठन को खड़ा करने पर ध्यान केंद्रित करें.

कमलनाथ के साथ दक्षिण भारत से कोई नेता भी कार्यकारी अध्यक्ष बनाये जा सकते हैं. दूसरी बात आती है चुनावी प्रबंधन और गठबंधन की, तो संभवत: यह मोर्चा राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में स्थापित हो चुके प्रशांत किशोर संभालें. यह कहा जाना चाहिए कि संगठन में चाहे जो भी बदलाव हों, लोकतंत्र में सबसे महत्वपूर्ण होता है चुनाव में जीत हासिल करना.

आज कुछ राज्यों के अलावा कांग्रेस बड़ी राजनीतिक शक्ति नहीं है. यह देखना है कि क्या पार्टी अगले चुनाव में सौ सीटें ला सकती है क्योंकि प्रशांत किशोर का मानना है कि भाजपा गठबंधन के बाहर के अन्य दल डेढ़ सौ सीटें ला सकते हैं या उन्हें इसके लिए कोशिश करनी होगी. कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव अगले वर्ष के अंत से पहले नहीं होगा. इस बीच पार्टी की दशा व दिशा क्या होगी, यह समय बतायेगा.

[quiz_generator]

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snaps News reels