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National Parents Day 2021 : गरीब परिजनों का समर्पण ऐसा कि बच्चों के लिए बदल दी अपनी जिंदगी

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National Parents Day 2021, Jharkhand News (जमशेदपुर) : सड़क, फुटपाथ, स्टेशन के प्लेटफॉर्म व रेल की पटरियों के कचरे में दो जून की रोटी की तलाश करने वाले इन माता-पिता के बच्चों को जब रहने, खाने और पढ़ने की बेहतर सुविधा मिली, तो अब इनके माता-पिता भी खुद को उनके अनुरूप बदल रहे हैं.

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National Parents Day 2021, Jharkhand News (विकास कुमार श्रीवास्तव, जमशेदपुर) : बच्चों की बेहतर से बेहतर परवरिश करना. उन्हें अच्छे से अच्छे स्कूल में दाखिला करा एक अच्छा इंसान बनाने की ख्वाहिश हर माता-पिता की होती है. लेकिन, हजारों-लाखों माता-पिता ऐसे हैं जो चाहकर भी अपने बच्चों को ऐसी सुख-सुविधा और तालीम नहीं दे पाते हैं. बेबस मुफलिसी में जिस तरह उनकी जिंदगी गुजरती है मजबूरन बच्चों का नसीब भी उसी रास्ते पर तय हो जाता है. लेकिन, कहते हैं न कुछ करने की इच्छा, मन में सच्ची लगन और समर्पण हो तो हर काम संभव है. आज नेशनल पैरेंट्स डे में हम ऐसे ही कुछ माता- पिता की बात सामने रखेंगे जिनकी जिंदगी उनके बच्चों की वजह से बदल रही है.

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सड़क, फुटपाथ, स्टेशन के प्लेटफॉर्म व रेल की पटरियों के कचरे में दो जून की रोटी की तलाश करने वाले इन माता-पिता के बच्चों को जब रहने, खाने और पढ़ने की बेहतर सुविधा मिली, तो अब इनके माता-पिता भी खुद को उनके अनुरूप बदल रहे हैं.

टाटा स्टील और टाटा स्टील फाउंडेशन की ओर से संचालित मस्ती की पाठशाला रेसिडेंसियल ब्रिज स्कूल व नन रेसिडेंसियल ब्रिज स्कूल में कुछ ऐसे ही हालात के मारे बच्चों को तालीम देने का कार्य किया जा रहा है. मस्ती की पाठशाला में पढ़ने वाले बच्चों के पांच अभिभावकों से बात करने पर मालूम चला कि उनके बच्चों की शिक्षा ने उनकी जिंदगी में कैसे एक नयी रोशनी और सम्मान से जीने की उम्मीद जगा दी है.

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बेटे के लिए छोड़ दी शराब

बोका सुंडी रिक्शा चलाते हैं इसके पूर्व वह कचरा चुनते थे. 2017 में उनके बेटे को मस्ती की पाठशाला टीम (टिनप्लेट) लेकर गयी. आज उनका बेटा वहां स्कूली पढ़ाई पूरी कर रहा है. बोका सुंडी बताते हैं कि, वह शराब के आदी थे, लेकिन उनके बेटे ने कसम दिया कि अगर शराब नहीं छोड़ा तो वह भी सड़क पर कचरा चुनने लगेगा और शराब पीने लगेगा. बेटे की यह बात बोका सुंडी की दिल में उतर गयी और उन्होंने बेटे के लिए न केवल शराब पीना छोड़ दिया बल्कि कचरा चुनना भी बंद कर दिया. अब वह रिक्शा चला कर अपनी जिंदगी को जी रहे हैं.

बच्चों के लिए खुद को बदल लिया, साफ-सफाई जाना क्या होता है

एक समय में कचरा चुनने कर गुजर बसर करने वाली कुनी कुजूर, सविता रविदास, अंजली कौर और चांदो हेंब्रम वैसी मां है जिनके बेटे बेटी भी मस्ती की पाठशाला में 2017 से पढ़ाई कर रहे हैं. कुनी कुजूर की दो बेटी और एक बेटा, सविता रविदास के दो बेटे एक बेटी, अंजली कौर की दो बेटी और चांदो हेंब्रम के दो बेटे मस्ती की पाठशाला में स्कूली व नैतिक शिक्षा ले रहे हैं.

इन सभी माताओं ने बताया कि बच्चों के रहन-सहन में हुए बदलाव के कारण आज उनकी जिंदगी भी बदल गयी है. कचरा चुनते चुनते उन्हें यह मालूम ही नहीं था कि साफ सफाई क्या होती है, लेकिन आज वह खुद की स्वच्छता पर सबसे ज्यादा ध्यान देती है. इसमें कई माताओं ने कचरा चुनने का काम छोड़ कर अब लोगों के घरों में काम करना शुरू कर दिया. ये लोग कभी स्कूल का मतलब भी नहीं जानते थे, लेकिन बच्चों के स्कूल जाने के बाद इन्हें भी पढ़ने की ललक जगी है. इनका कहना है कि अगर इन्हें भी पढ़ाया जाये तो यह शौक से पढ़ाई करेंगी. हर कदम जहां बेटियों की सुरक्षा दाव पर थी आज वह पूरी तरह से सुरक्षित हैं.

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मस्ती की पाठशाला

मस्ती की पाठशाला टाटा स्टील CSR के तहत टाटा स्टील फाउंडेशन के माध्यम से संचालित किया जाता हैं. यहां बेघर, आर्थिक रूप से कमजोर व समाज के सबसे निचले पायदान में रहने वाले माता-पिता के बच्चों, अनाथ बच्चों को लाकर स्कूली शिक्षा, नैतिक शिक्षा के साथ-साथ उनके रचनात्मक गुणों का विकास किया जाता है. उनके रहने-खाने, पढ़ाई का पूरा खर्च टाटा स्टील की ओर किया जाता है.

2016 से टिनप्लेट, बागुनहातु, सरजामदा और पिपला, राजनगर में संचालित इन 5 रेसिडेंसियल ब्रिज स्कूल के अलावे 5 गैर आवासीय मस्ती की पाठशाला का संचालन भी किया जा रहा है. यहां 403 और 310 बच्चे वर्तमान में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. यह स्कूल बच्चों को शिक्षा के साथ उन्हें नशा व बाल मजदूरी जैसे अभिशाप से बचाने में काफी सहायक साबित हो रहा है. जुस्को एजुकेशन मिशन के माध्यम से इन बच्चों को विभिन्न स्कूलों में भी दाखिला कराया जाता है.

Posted By : Samir Ranjan.

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