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बंगाल में शिक्षिकाओं को क्यों पीना पड़ा जहर, क्या है आंदोलन का असली कारण?

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शिक्षिकाओं के मुद्दे पर विपक्ष राज्य सरकार को घेरने में लगी है तो राज्य सरकार इस मामले में बैकफुट पर है. कुल मिलाकर क्या है यह मामला और क्यों शिक्षिकाओं को आत्महत्या का प्रयास करना पड़ा? यह बात लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है.

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नवीन कुमार राय (कोलकाता): इन दिनों राज्य की राजनीति काफी गरमाई है. शिक्षिकाओं के मुद्दे पर विपक्ष राज्य सरकार को घेरने में लगी है तो राज्य सरकार इस मामले में बैकफुट पर है. कुल मिलाकर क्या है यह मामला और क्यों शिक्षिकाओं को आत्महत्या का प्रयास करना पड़ा? यह बात लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है.

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नौकरी की सुरक्षा की मांग

शिक्षकों का आंदोलन मुख्य रूप से राष्ट्रीय शिक्षा नीति के खिलाफ है. नौकरी के स्थानांतरण को रोकने के लिए यह आंदोलन विरोध में बदल गया है और पांच शिक्षिकाओं ने नौकरी में तबादला आदेश से नाराज होकर जहर खाकर जान देने का प्रयास किया. घटना मंगलवार दोपहर साल्ट लेक में विकास भवन के सामने हुई. इन पांचों शिक्षिकाओं को जहर कहां से मिला? किस स्थिति ने उन्हें आत्महत्या की ओर धकेल दिया? उनकी वास्तविक मांगें क्या थी? उनके आंदोलन का इतिहास क्या है? आइए इन सभी सवालों के जवाब तलाशते हैं.

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1997 में कई पदों पर नियुक्ति

वाममोर्चा सरकार के दौरान पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग से एसएसके और एमएसके के सहायकों/सहायिकाओं, विस्तारकों को नौकरी मिली. उस वक्त इन लोगों को वेतन के नाम पर कुछ नहीं मिलता था. अलबत्ता इनको मानदेय 500 रुपये दिया जाता था. हालांकि, वेतन में बाद में कदम दर कदम वृद्धि की जाती रही है.

2011 में एक बार में बढ़ा वेतन

एसएसके और एमएसके के सहायक, सहायिकाओं और प्रचारकों के वेतन में 5,400 रुपये की बढ़ोतरी की गई थी. तत्कालीन शिक्षा मंत्री शिक्षा कर्मियों की तनख्वाह बढ़ाने के लिए विधानसभा में एक विधेयक लाए थे. उस वक्त कुछ मुद्दों को लेकर विपक्षी तृणमूल के विधायकों ने इसका कुछ विरोध किया था. उस वक्त विपक्ष के नेता पार्थ चटर्जी ने विधानसभा में मसौदा विधेयक को फाड़ दिया था. संयोग से इन शिक्षाकर्मियों का आंदोलन, जिनका शिक्षा मंत्रालय बाद में तेज हुआ. बिल में कहा गया है कि इन शिक्षाकर्मियों के वेतन में हर तीन साल में पांच फीसदी की बढ़ोतरी की जाएगी. आरोप है कि तृणमूल कांग्रेस के दौर में इसे स्वीकार नहीं किया गया.

फिर से वेतन वृद्धि

2018 में तृणमूल सरकार के दौरान शिक्षाकर्मियों के वेतन में बढ़ोतरी की गई थी. 2018 में, ममता सरकार ने एक झटके में इनके भत्ते में 40 प्रतिशत की वृद्धि कर दी थी. सहायकों के मानदेय को बढ़ाकर 10,340 रुपये प्रति माह और विस्तारकों के मानदेय को बढ़ाकर 13,390 रुपये प्रति माह कर दिया गया. इसके अलावा, तीन प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि या वेतन वृद्धि की शुरुआत की गई है. तीन साल में शुरू हुई 5 फीसदी इंक्रीमेंट को बंद कर दिया गया. इसको लेकर ही आंदोलन है.

अब सवाल उठता है कि तबादले का विरोध कर आंदोलनकारियों की वर्तमान मांगें क्या हैं?

1) आंदोलनकारियों के अनुसार, राज्य के शहरी और शहरी विकास विभाग में शिशु शिक्षा केंद्र और माध्यमिक शिक्षा केंद्र में लगभग 3,600 शिक्षक कार्यरत हैं. 36 शैक्षणिक पर्यवेक्षक हैं. कैबिनेट की बैठक में इन्हें शिक्षा विभाग में लाने का निर्णय लिया गया. नगर एवं नगर विकास विभाग की उनकी फाइलें लंबे समय से वित्त विभाग और शिक्षा विभाग में अटकी हुई हैं. नतीजतन, मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद भी वे तीन प्रतिशत वार्षिक वेतन वृद्धि और सेवानिवृत्ति में तीन लाख रुपये से वंचित हो रहे हैं.

2) प्रदर्शनकारियों ने मांग की कि पंचायत के तहत एसएसके, एमएसके और एएस को शिक्षा विभाग में शामिल किया जाए, जैसे कि नगरपालिका और शहरी विकास के तहत एसएसके, एमएसके और एएस को शिक्षा विभाग से जोड़ा जाना चाहिए. उन्हें तीन प्रतिशत वार्षिक वेतन वृद्धि और तीन लाख रुपये सेवानिवृत्ति लाभ देना होगा. राज्य के 600 शैक्षणिक पर्यवेक्षकों और 17 डीक्यूएम कार्यकर्ताओं को तीन फीसदी वार्षिक वेतन वृद्धि और अवकाश के समय तीन लाख रुपये देने की मांग हो रही है.

3) सबसे महत्वपूर्ण बात नौकरी की सुरक्षा है. वर्तमान राष्ट्रीय शिक्षा नीति इन संविदा पर नियुक्त इन लोगों को मान्यता नहीं देती है. इसलिए वो नौकरी की सुरक्षा और आश्वासन के लिए लड़ रहे है. कुछ दिन पहले शिक्षा मंत्री के घर के सामने इन लोगों की एक सभा हुई थी. उसके बाद 17 अगस्त को पश्चिम बंगाल शिक्षक एकता मुक्त मंच की छत्रछाया में शिक्षाकर्मी विकास भवन के सामने गले में पोस्टर लटकाकर प्रदर्शन करने आए. कुछ देर बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर लिया था. इस बीच आंदोलनकारी शिक्षा मंत्री व्रात्य बसु लापता हो गए हैं का आरोप लगाते हुए पुलिस में एक सामान्य डायरी दर्ज कराना चाहते थे. पुलिस ने आरोपों को नहीं माना.

संविदा शिक्षकों, एसएसके, एमएसके, शिक्षकों, विशेष शिक्षकों और प्रबंधन कर्मचारियों ने शिकायत किया कि वो केंद्र सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति से भयभीत और चिंतित हैं. राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कारण संविदा शिक्षकों और शिक्षिकाओं के नियोजन में अनिश्चितता बनी हुई है. संक्षेप में, इन शिक्षकों की तीन मुख्य मांगें हैं. सबसे पहले- केंद्र सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के शिकंजे से अनुबंध के आधार पर एसएसके/एमएसके शिक्षकों, ट्यूटर्स जैसे पूरे शिक्षा मिशन के कर्मचारियों की रक्षा करना.

दूसरा वेतन बढ़ाने की वजह यह है कि महंगाई के इस बाजार में परिवार अब 10,000 रुपये या उससे कम के भत्ते पर परिवार का गुजर बसर करना मुश्किल है. इस कारण बढ़ोत्तरी हो.

तीसरा, मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद भी उन्हें तीन प्रतिशत की वार्षिक वेतन वृद्धि और तीन लाख रुपये सेवानिवृत्ति लाभ नहीं मिल रहा है. जिसे तुरंत लागू किया जाए.

आंदोलन की दिशा में परिवर्तन

संविदा शिक्षकों की मांगों की दिशा नौकरी में तबादले के विरोध में भी बदल गई है. मूल रूप से, वो एक स्थायी नौकरी के लिए आंदोलन कर रहे थे. हाल ही में आंदोलनकारी शिक्षकों का तबादला किया जाने लगा. जहर खाने वाले पांच में से एक का तबादला शालबनी से जलपाईगुड़ी के एक हिंदी स्कूल में कर दिया गया. एक अन्य का तबादला मुर्शिदाबाद के जियागंज से जलपाईगुड़ी किया गया है. इस बारे में शिक्षक एकता मुक्त मंच के प्रमुख मैदुल इस्लाम ने कहा कि उनकी कोई नहीं सुन रहा है. वो कई बार शिक्षा मंत्री व्रात्य बसु के घर गए, लेकिन उनसे मुलाकात नहीं हुई. वह सोमवार को हाईकोर्ट में केस दर्ज कराने जा रहे थे. इसके बाद उन लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. जिसका विरोध मंगलवार को भी किया गया.

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इस बारे में क्या कह रही है सरकार?

ऐसे में राज्य के शिक्षा मंत्री व्रात्य बसु ने पांचों शिक्षकों को भाजपा का कैडर करार देते हुए इस घटना को अवांछित बताया है. उन्होंने अभी तक मांगों के समाधान के बारे में कुछ नहीं कहा है.

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