26.4 C
Ranchi
Saturday, February 8, 2025 | 02:17 pm
26.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

कद में कमी का चिंताजनक पहलू

Advertisement

संपन्न लोगों का सामाजिक कद हमेशा से ऊंचा रहा है, लेकिन अब यह भेद कद-काठी में भी झलकने रहा है. अध्ययन के अनुसार, गरीब लोगों की औसत लंबाई लगातार घट रही है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

एक हालिया अध्ययन के अनुसार, जहां एक ओर दुनियाभर में लोगों का औसत कद बढ़ रहा है, वहीं आम भारतीयों का कद लगातार घट रहा है. विज्ञान पत्रिका ओपन एक्सेस साइंस जर्नल (प्लोस वन) में छपे इस अध्ययन में कहा गया है कि भारतीय पुरुषों और महिलाओं की औसत लंबाई तेजी से कम हो रही है.

- Advertisement -

दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सोशल मेडिसिन एंड कम्युनिटी हेल्थ ने सरकार के राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षणों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है. अध्ययन में 15 से 25 वर्ष की आयु के बीच और 26 से 50 वर्ष की आयु के बीच के पुरुषों और महिलाओं की औसत लंबाई और उनकी सामाजिक व आर्थिक पृष्ठभूमि का विश्लेषण किया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2005-06 और 2015-16 के बीच वयस्क पुरुषों और महिलाओं की लंबाई में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गयी है.

इससे सबसे ज्यादा चिंताजनक पहलू यह सामने आया है कि लंबाई कम होने के पीछे आर्थिक व सामाजिक पृष्ठभूमि की भी बड़ी भूमिका है. देश में सुविधा-संपन्न लोगों का सामाजिक कद हमेशा से ऊंचा रहा है, लेकिन अब यह भेद कद-काठी में भी झलकने लगा है. जहां संपन्न लोगों की औसत लंबाई में कोई ज्यादा कमी नजर नहीं आती है, वहीं गरीबों की औसत लंबाई लगातार घट रही है.

सबसे ज्यादा गिरावट गरीब और आदिवासी महिलाओं में देखी गयी है. अध्ययन के मुताबिक, एक पांच साल की अनुसूचित जनजाति बच्ची की औसत लंबाई सामान्य वर्ग की बच्ची से लगभग दो सेंटीमीटर कम पायी गयी. पुरुषों के मामले में किसी भी वर्ग के लिए स्थिति अच्छी नहीं है. सभी वर्ग के पुरुषों की औसत लंबाई करीब एक सेंटीमीटर कम हुई है. अगर वैश्विक परिदृश्य पर नजर डालें, तो ये तथ्य चिंता जगाते हैं, क्योंकि दुनिया में लोगों की औसत लंबाई बढ़ रही है.

कुछेक वर्ष पहले यह स्थिति नहीं थी. देश के लोगों में औसत लंबाई में गिरावट 2005 के बाद से आनी शुरू हुई है. देश में महिलाओं की औसत लंबाई पांच फुट एक इंच और पुरुषों की औसत लंबाई पांच फुट चार इंच मानी जाती हैं. कुछ वैज्ञानिक इन आंकड़ों से सहमत नहीं हैं. उनका मानना है कि औसत लंबाई उससे कहीं ज्यादा है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक, मेघालय, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और झारखंड में पुरुषों की औसत लंबाई अन्य राज्यों के पुरुषों के मुकाबले सबसे कम है. मेघालय, त्रिपुरा, झारखंड और बिहार में महिलाओं की औसत लंबाई सबसे कम है.

जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और केरल के पुरुषों की लंबाई औसत लंबाई से कहीं ज्यादा है. इसी तरह पंजाब, हरियाणा और केरल की महिलाओं की लंबाई महिलाओं की औसत लंबाई से अधिक है. वैज्ञानिकों के अनुसार मां का स्वास्थ्य, पोषण व आबोहवा जैसे कारक बच्चे के कद को प्रभावित करते हैं. लगातार कुपोषण से लंबाई प्रभावित होती है. पोषण की जरूरत को कम करने के लिए प्रकृति शरीर का आकार ही घटा देती है. यह एक दिन की प्रक्रिया का परिणाम नहीं है. दशकों के कुपोषण का यह नतीजा होता है.

व्यक्ति की लंबाई के निर्धारण में कई कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण है आनुवांशिक कारक. माता-पिता लंबे होते हैं, तो बच्चे भी लंबे होते हैं. आनुवांशिक कारक किसी शख्स की लंबाई के निर्धारण में 60 प्रतिशत से अधिक भूमिका निभाते हैं. अध्ययन में कहा गया है कि औसत लंबाई में गिरावट गैर आनुवंशिक कारकों के कारण भी है.

इनमें पोषण सबसे अहम है, जो सीधे आर्थिक हैसियत से जुड़ा है. कुछ समय पहले स्वास्थ्य मंत्रालय ने परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के पहले चरण की रिपोर्ट जारी की थी. इसमें भी चिंताजनक तथ्य सामने आया था कि विभिन्न राज्यों के बच्चों में कुपोषण फिर से पांव पसारने लगा है. यह सर्वेक्षण 2019-20 में किया गया था और इसमें 17 राज्य और पांच केंद्र शासित प्रदेश शामिल थे.

सर्वे में आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, तेलंगाना, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, अंडमान व निकोबार, दादरा-नगर हवेली व दमन दीव, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और लक्षद्वीप शामिल थे. सर्वे के मुताबिक ज्यादातर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कम वजन वाले वयस्कों की संख्या 2015-16 के मुकाबले कम हुई है.

पिछले पांच सालों में ठिगने, कमजोर और कुपोषित बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. यह स्थिति एक दशक के सुधार के एकदम उलट है. दुनियाभर में बच्चों के पोषण को मापने के चार पैमाने होते हैं- लंबाई के हिसाब से वजन कम होना, लंबाई कम होना, सामान्य से कम वजन होना और पोषक तत्वों की कमी होना.

कुपोषण को उम्र के हिसाब से लंबाई कम होने का अहम कारण माना जाता है. शुरुआत में यदि बच्चे की लंबाई कम रह गयी, तो बाद में उसकी वृद्धि की संभावना बेहद कम रह जाती है. कुपोषण दूर करने के लिए लगभग सभी प्रदेश सरकारें आंगनबाड़ी और स्कूलों में पोषण कार्यक्रम संचालित कर रही हैं. बावजूद इसके कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ना चिंताजनक है. बीते कुछ वर्षों में ग्रामीण क्षेत्रों में अति कुपोषित बच्चों की संख्या में कमी आयी थी.

खाद्य सुरक्षा और खाने में विविधता कुपोषण दूर करने के लिए जरूरी है. ये दोनों ही बातें सीधे आय से जुड़ी होती हैं. समुचित आय नहीं होगी, तो बच्चे और परिवार के अन्य सदस्यों को पोषण मिलना मुमकिन नहीं है. पिछले कुछ वर्षों में खाद्यान्न की उपलब्धता और ईंधन तक लोगों की पहुंच आसान हुई है.

इसके बावजूद कुपोषण में वृद्धि सवाल खड़े करती है. ऐसा आकलन है कि देश में हर साल अकेले कुपोषण से 10 लाख से ज्यादा बच्चों की मौत हो जाती है. दुनियाभर के बच्चों की स्थिति पर सेव द चिल्ड्रेन की पिछले साल की सूची में भारत 116वें स्थान पर था. यह सूचकांक स्वास्थ्य, शिक्षा समेत आठ पैमाने के आधार पर तैयार किया जाता है. शहरी संपन्न वर्ग के बच्चों में चुनौती दूसरी है. यहां मोटापा बढ़ता जा रहा है.

इसकी एक बड़ी वजह दौड़-भाग के खेलों में कम हिस्सा लेना है. बाहरी खेलों में हिस्सा लेना शहरी बच्चों ने पहले ही कम कर दिया था. कोरोना काल में तो यह एकदम बंद हो गया. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार में संस्थागत प्रसव, महिला सशक्तिकरण, संपूरक आहार, प्रसव पूर्व जांच एवं टीकाकरण जैसे सूचकांकों में काफी सुधार हुआ है. सरकारी प्रयास बिहार के लोगों की लंबाई में कमी रोकने में सहायक साबित हुए हैं. आज जरूरत इन मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने और इसे विमर्श के केंद्र में लाने की है.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें