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Children’s Day: तंदुरुस्त लाल, तो झारखंड खुशहाल, बच्चों के पोषण और शिक्षा का ये है हाल

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अति कुपोषित बच्चों के उपचार और प्रबंधन के लिए राज्य में 95 कुपोषण उपचार केंद्र चलाये जा रहे हैं. वर्ष 2009 से अब तक 54000 से अधिक अति कुपोषित बच्चों का उपचार किया जा चुका है़ वर्ष में दो बार एक से 19 वर्ष तक के बच्चों को कृमि मुक्ति दवा खिलायी जाती है, ताकि उन्हें एनिमिया व कुपोषण से बचाया जा सका.

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Children’s Day 2021: बच्चे दुनिया के सबसे अधिक मूल्यवान संसाधन और सर्वश्रेष्ठ आशा हैं, इसलिए इनके मानसिक और शारीरिक विकास के लिए पोषण से भरा भोजन जरूरी है. साथ ही बेहतर शिक्षा भी जरूरी है. बच्चे तंदुरुस्त होंगे, तभी देश और राज्य खुशहाल बनेंगे. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के करोड़ों बच्चों को जरूरत से बहुत कम खाना और पोषण मिल रहा है. इस कारण बच्चों के दिमाग का पूर्ण विकास नहीं हो पाता़ कमजोर याददाश्त, रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी और संक्रमण एवं बीमारियों का डर रहता है़ जानकार कहते हैं कि सिर्फ बच्चों का पेट भरना वरीयता नहीं होनी चाहिए, बल्कि उन्हें एक संतुलित और पोषित आहार देना लक्ष्य होना चाहिए़ इसमें सबकी भागीदारी जरूरी है़

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राष्ट्रीय पोषण सर्वक्षण के अनुसार पोषण की स्थिति

  • 36.2 फीसदी 05 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में उम्र की तुलना में कम वजन

  • 29.1 फीसदी 05 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में लंबाई की तुलना में कम वजन

  • 42.9 फीसदी 05 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में अंडरवेट

  • 05 वर्ष से कम उम्र के 43.8 प्रतिशत बच्चे एनीमिक हैं

  • 34 प्रतिशत किशोर–किशोरियां एनीमिक हैं

  • 05 वर्ष से कम उम्र के 43 प्रतिशत बच्चों में बिटामिन–ए की कमी है

  • 31.5 प्रतिशत महिलाओं (15–49 वर्ष) का बॉडी मास इंडेक्स(बीएमआइ) कम है

कुपोषण के उपचार के लिए चलायी जा रहीं योजनाएं

अति कुपोषित बच्चों के उपचार और प्रबंधन के लिए राज्य में 95 कुपोषण उपचार केंद्र चलाये जा रहे हैं. वर्ष 2009 से अब तक 54000 से अधिक अति कुपोषित बच्चों का उपचार किया जा चुका है़ वर्ष में दो बार एक से 19 वर्ष तक के बच्चों को कृमि मुक्ति दवा खिलायी जाती है, ताकि उन्हें एनिमिया व कुपोषण से बचाया जा सका. इसके अलावा नौ माह से पांच वर्ष के बच्चों के बीच विटामिन एक की खुराक पिलायी जाती है.

92 प्रतिशत बच्चों को यह खुराक दी गयी है. साथ ही एनीमिया मुक्त भारत योजना के तहत बच्चों और गर्भवती माताओं के बीच आइएफए दी जाती है. डायरिया पर नियंत्रण के लिए सघन डायरिया नियंत्रण पखवाड़ा चलाया जाता है. स्तनपान और ऊपरी आहार को बढ़ावा देने के लिए मां कार्यक्रम के तहत जागरूकता अभियान चलाया जाता है.

आंगनबाड़ी केंद्रों पर दिया जाता है पौष्टिक भोजन

झारखंड में कुपोषण से निपटने के लिए 38,432 अांगनबाड़ी केंद्र चलाये जा रहे हैं. इन केंद्रों पर छह माह से तीन वर्ष के 16 लाख 38 हजार 820 बच्चों, तीन से छह वर्ष के 11 लाख 49 हजार 136 बच्चों और सात लाख 27 हजार 533 गर्भवती माताओं को अभी पौष्टिक आहार दिया जा रहा है. छह माह से तीन वर्ष के बच्चों के लिए चावल, अरहर दाल, मूंगफली दाना, चना, गुड़, आलू देने का प्रावधान है.

इसमें प्रोटीन 19.75 ग्राम और कैलोरी 655.77 ग्राम होता है. एक लाभुक पर आठ रुपये प्रतिदिन खर्च किये जाते हैं. वहीं गर्भवती माताओं के लिए इसी अनाज की मात्रा बढ़ा दी जाती है. इसमें 890.62 ग्राम कैलोरी दी जाती है. इनके ऊपर 9.50 रुपये प्रतिदिन प्रति लाभुक खर्च किये जाते हैं, जबकि अति कुपोषित बच्चों पर 12 रुपये प्रतिदिन प्रति बच्चे खर्च करने का प्रावधान है. इन्हें 937.99 कैलोरी ग्राम देने का प्रावधान है. सुबह के नाश्ता में सूजी का हलवा देने का प्रावधान है.

पर्याप्त व पौष्टिक भोजन प्राप्त करनेवाले बच्चों की संख्या में वृद्धि का लक्ष्य

ताजा राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण के अनुसार राज्य के 42.9 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं. यह संख्या देश में सर्वाधिक है. एनीमिया से 69 प्रतिशत बच्चे और 65 प्रतिशत महिलाएं प्रभावित हैं. इसे देखते हुए झारखंड सरकार महाअभियान चलाने जा रही है़ कुपोषण और एनीमिया के खिलाफ यह अभियान 20 नवंबर से शुरू होगा, जो 1000 दिनों तक चलेगा़ इसकी मॉनिटरिंग मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खुद करेंगे़ इसका उद्देश्य है पर्याप्त और पौष्टिक भोजन प्राप्त करनेवाले बच्चों की संख्या में वृद्धि करना.

साथ ही गर्भावस्था के दौरान मातृ-शिशु मृत्यु और मातृ व बाल स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं को कम करना है़ महाअभियान को सफल बनाने के लिए झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी, एकीकृत बाल विकास योजना और स्वास्थ्य विभाग जुटे हुए हैं. यह परियोजना संबंधित आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, एएनएम, आंगनबाड़ी सहायिका और जेएसएलपीएस के एसएचजी को जोड़कर एक मुहिम के साथ राज्य के सभी 34, 800 आंगनबाड़ी केंद्रों में शुरू होगी.

घर-घर होगा सर्वे

इस अभियान के दौरान स्वास्थ्य कार्यकर्ता, अांगनबाड़ी सेविका, सहिया की टीम घर-घर जाकर पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण से जुड़ी जानकारी लेगी. जिनका भी पोषण स्तर मानक से कम होगा, उन्हें हजार दिनों तक अांगनबाड़ी केंद्रों में पोषक आहार दिया जायेगा. एेप की मदद से डाटा संग्रह होगा़ एनीमिया से पीड़ित 15-35 वर्ष आयु वर्ग की किशोरियों, महिलाओं और स्तनपान करानेवाली माताओं की स्वास्थ्य की भी जानकारी ली जायेगी. किसी में भी एनीमिया और कुपोषण के लक्षण दिखने पर निकटतम आंगनबाड़ी केंद्र में सघन जांच होगी़ जांच रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्यवाही की जायेगी. वहीं एनीमिया पीड़ित किशोरियों के लिए आहार भत्ता देने की भी योजना है.

Posted by: Pritish Sahay

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