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420 IPC Review: फाइनेंशियल क्राइम पर आधारित यह फिल्म एक बार देखी जा सकती हैं

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420 IPC Review: कोर्टरूम ड्रामा इनदिनों ओटीटी का सफल फार्मूला बनता जा रहा है. इसी फेहरिस्त में लेखक और निर्देशक मनीष गुप्ता की यह फ़िल्म भी जुड़ती है.

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फ़िल्म: 420 आईपीसी

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निर्देशक- मनीष गुप्ता

कलाकार: विनय पाठक, गुल पनाग, रोहन मेहरा, रणवीर शौरी,आरिफ जकारिया और अन्य

प्लेटफार्म- ज़ी 5

रेटिंग : ढाई

कोर्टरूम ड्रामा इनदिनों ओटीटी का सफल फार्मूला बनता जा रहा है. इसी फेहरिस्त में लेखक और निर्देशक मनीष गुप्ता की यह फ़िल्म भी जुड़ती है. पुरूषों पर लगने वाले झूठे रेप केस के समस्या पर आधारित फिल्म सेक्शन 375 के बाद यह उनकी यह फिल्म 420 आईपीसी फाइनेंशियल क्राइम पर बेस्ड है.

बंसी केसवानी (विनय पाठक) अपनी पत्नी पूजा केसवानी (गुल पनाग) के साथ एक बेहद मामूली से घर में रहता है. वह एक मिडिल क्लास आदमी है. चार्टेड अकाउंटेंट है. शहर के हाई प्रोफाइल लोगों के टैक्स का काम देखता है. अचानक एक दिन एमएमआरडीए का बड़ा अधिकारी बड़े स्कैम में पकड़ा जाता है और उंगली उठती है इसी मिडिल क्लास आदमी पर. लेकिन फिर जांच के बाद उसे क्लीन चिट मिल जाती है.

अब एक बार फिर उसी मिडिल क्लास आदमी पर फर्जी चेक अपने नाम करवाने का आरोप लगता है एक और बड़े बिल्डर की तरफ से. अब यहां से असली खेल शुरू हो जाता है. बंसी को जब जेल हो जाती है तो पूजा बड़ी मुश्किल से एक वकील ( रोहन मेहरा ) को हायर कर पाती है. अब ड्रामा शुरू होता है. क्या बंसी केसवानी पर लगे सारे आरोप बेबुनियाद हैं. आखिर किसने बोगस चेक बनाया.

इन सब सवालों के जवाब यह फ़िल्म आगे देती है. फिल्म की शुरुआत एंगेजिंग हैं लेकिन फिर कहानी में ज़रूरत से ज़्यादा ट्विस्ट एंड टर्न विषय के प्रभाव को कम कर गए हैं. उदाहरण के तौर पर कभी लगता है कि बंसी केसवानी मासूम आदमी है फिर कहानी में ट्विस्ट दिखाया गया है कि केसवानी शातिर भी कम नहीं हैं. उसने एक भ्रष्ट सरकारी अधिकारी के करोड़ों की ब्लैक मनीको वाइट करने में उसकी मदद की थी.

कहानी का यह कन्फ्यूजन फ़िल्म अपने विषय के साथ न्याय नहीं कर पाता है. संवाद की बात करें, तो ऐसी कोई डायलॉगबाजी नहीं है लेकिन दृश्यों को सार्थक करने के लिए संवादों में उपमा और अलंकार का उपयोग किया गया है जो संवादों के साथ न्याय करते हैं. फिल्म की लम्बाई थोड़ी ज़्यादा है. एडिटिंग में काम करने की ज़रूरत थी. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी औसत है.

अभिनय की बात करें तो इस फिल्म के कलाकारों ने अपना पूरा एफर्ट दिखाया है. विनय पाठक ने अपनी सादगी से, सहजता से एक आम आदमी का किरदार पकड़ा है कि वे प्रभावित करते हैं. गुल पनाग कम दृश्यों में नजर आई हैं, लेकिन उन्होंने सशक्त तरीके से अपनी उपस्थिति दर्ज की है. रोहन मेहरा के लिए यह दूसरी फिल्म है. उनका अभिनय इस फिल्म में रंग लाता है. रणवीर शोरी के पास कुछ खास करने को नहीं था. फिल्म के संगीत पक्ष की बात करें तो मामला थोड़ा कमज़ोर रह गया है कुल मिला कर यह कोर्ट रूम ड्रामा कलाकारों के परफॉरमेंस की वजह से एक बार देखी जा सकती है.

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