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श्रीनारायण दास ने आजादी की खातिर छोड़ी पढ़ाई, गये थे जेल, गांधीजी के असहयोग आंदोलन में था बड़ा योगदान

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श्रीनारायण दास को असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह, व्यक्तिगत सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कई बार जेल जाना पड़ा. गांधीजी, डॉ राजेंद्र प्रसाद और लोकनायक जय प्रकाश नारायण के साथ आजादी की लड़ाई में शामिल रहे.

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आजादी की लड़ाइ में मिथिलांचल का बड़ा योगदान रहा है. असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह और 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन, सभी में मिथिलांचल के लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. दरभंगा जिले के केउटी गांव के एक युवक श्रीनारायण दास ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष का शंखनाद करते हुए अपनी स्कूली पढ़ाई छोड़ दी.

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बाद में बिहार विद्यापीठ से मैट्रिक की परीक्षा की. उन्हें असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह, व्यक्तिगत सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कई बार जेल जाना पड़ा. गांधीजी, डॉ राजेंद्र प्रसाद और लोकनायक जय प्रकाश नारायण के साथ आजादी की लड़ाई में शामिल रहे. इस वजह से श्रीनारायण दास को अंग्रेजों ने यातना दी. जीवनभर खादी वस्त्र धारण करने वाले श्रीनारायण दास आजादी के बाद दरभंगा लोकसभा की सीट से तीन बार लगातार सांसद हुए.

स्कूली जीवन के दौरान श्रीनारायण दास 1920 में गांधीजी के असहयोग आंदोलन में शामिल हुए. वे वाटसन विद्यालय के छात्र थे. स्कूल-कॉलेज तथा विश्वविद्यालय और अदालत के बहिष्कार के आह्वान पर उन्होंने स्कूल त्याग दिया. इससे पिता परमेश्वर लाल बहुत नाराज हुए, पर बालक श्रीनारायण दास पर इसका कोई असर नहीं हुआ.

असहयोग आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. गांधीजी के सुझाये मार्ग पर चलते हुए राष्ट्रीय आंदोलन में अपनी पहली भागीदारी दर्ज की. इस दौरान उन्होंने तिलक स्वराज फंड कार्यक्रम के माध्यम से सैंकड़ों सहपाठियों को असहयोग आंदोलन से जोड़ा.

घर वालों की जिद पर उन्होंने 1921 में राष्ट्रीय विद्यालय में परिणत सरस्वती स्कूल में मैट्रिक में प्रवेश किया, लेकिन स्कूल पर ब्रिटिश शासन के प्रभुत्व स्थापित होने से गांधीजी के आह्वान पर इस स्कूल का भी परित्याग कर दिया. इसके बाद उन्होंने 1921 में ही नव स्थापित राष्ट्रीय विद्यालय बिहार विद्यापीठ से छात्रवृत्ति के साथ मैट्रिक प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की.

1922 में सदाकत आश्रम स्थित राष्ट्रीय महाविद्यालय, पटना में प्रथम वर्ष में प्रवेश किया. सदाकत आश्रम में शिक्षा के दौरान उनकी मुलाकात डॉ राजेंद्र प्रसाद से हुई. धीरे-धीरे उनकी घनिष्ठता डॉ राजेंद्र प्रसाद से बढ़ती गयी.

श्रीनारायण दास को 1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान सरकार के खिलाफ भाषण देने के अभियोग में गिरफ्तार कर मथुरा जेल भेज दिया गया. करीब 16 महीने जेल की सजा काटने के बाद वे 1931 में काशी विद्यापीठ गये, जहां उनकी भेंट कन्हाईलाल तथा केसकर से हुई. इसके कुछ ही दिनों के बाद भगत सिंह की गिरफ्तारी एवं फांसी के विरोध में सरकार के खिलाफ भाषण देने के अभियोग में उन्हें गिरफ्तार कर फैजाबाद जेल भेज दिया गया. गांव लौटने के बाद स्वतंत्रता आंदोलन को नयी धार प्रदान की तथा अंग्रेजों के दमन के खिलाफ लोगों को जगाने का अभियान शुरू किया.

इसकी भनक सरकार को मिलते ही फिर उनकी गिरफ्तारी हो गयी तथा आरंभ में दरभंगा, बाद में पटना कैंप जेल भेज दिये गये, जहां से उसी साल सितंबर में उनकी रिहाई हो सकी. 1935 में वे गांधीजी के हरिजन आंदोलन से जुड़ गये तथा हरिजन सेवक संघ, बिहार शाखा, पटना कार्यालय में कार्य स्वीकार किया.

  • जनवरी 1934 के प्रलयंकारी भूकंप के समय डाॅ राजेंद्र प्रसाद के निर्देशन में पर वे बिहार वेरिलीफ कमेटी के अंदर सहायता कार्य से जुड़ कर लोगों की अपूर्व सेवा की.

  • 1940 में इन्होंने केवटी में रामजुलुम उच्च विद्यालय की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. यह विद्यालय आजादी पूर्व और आजादी बाद ग्रामीण क्षेत्र के छात्रों की शिक्षा के लिए वरदान साबित हुआ.

  • 1939 में ही वे दरभंगा डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के वाइस चेयरमैन निर्वाचित हुए. 1941 में वे वाइस चैयरमैन के पद से इस्तीफा देकर गांधी जी द्वारा शुरू किये गये व्यक्तिगत सत्याग्रह में शामिल हो गये.

  • व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान श्री कृष्ण सिंह से उनका संपर्क हुआ. व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान सरकार के खिलाफ भाषण देने के अभियोग में उन्हें एक वर्ष से ज्यादा की जेल यातना झेलनी पड़ी. इस दौरान आरंभ में उन्हें वी क्लास दरभंगा जेल, मोतिहारी स्पेशल जेल तथा हजारीबाग सेंट्रल जेल में सजा काटनी पड़ी.

  • 1942 में रिहाई के कुछ ही दिनों बाद 09 अगस्त, 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में कूद गये. 1943 में नेपाल से घर वापसी के दौरान उनकी गिरफ्तारी हो गयी. उन पर जयप्रकाश नारायण के आजाद दस्ते से जुड़े होने का आरोप लगाते हुए पहले नजरबंद किया गया, बाद में दरभंगा जेल तथा पटना जेल में तोड़-फोड़ के अभियोग में एक वर्ष की जेल की सजा दी गयी. आजादी के बाद वक 1950-52 में प्रोविजनल पार्लियामेंट के सदस्य निर्वाचित हुए. वे दरभंगा से तीन बार सांसद निर्वाचित हुए.

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