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झारखंड में कॉम्बिनेशन दवाओं पर नियंत्रण नहीं, कंपनियां वसूल रहीं दोगुना पैसा, मुनाफे में डॉक्टर भी शामिल

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दो या दो से अधिक दवाओं को मिलाकर बनी दवाओं पर किसी तरह का कोई नियंत्रण नहीं है, झारखंड के बाजारों में इन दवाओं की कीमत दोगुनी हो गयी है. दवा कंपनियों के इस मुनाफे में डॉक्टर भी शामिल है

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रांची: दवा कंपनियां कॉम्बिनेशन दवाओं (दो या उससे अधिक दवा को मिलाकर बनी दवा) को बाजार में उतारकर मरीजों से दोगुना पैसा वसूल रही हैं. लाइफस्टाइल की बीमारी जैसे: डायबिटीज, बीपी और हार्ट की दवाओं पर कंपनियां मुनाफे का काराेबार करती हैं. जानकार बताते हैं कि कॉम्बिनेशन की कई दवाओं पर एनपीपीए (नेशनल फार्माश्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी) का नियंत्रण नहीं है. इसका फायदा कंपनियां उठा रही हैं.

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झारखंड के सैकड़ों मरीज दवा कंपनियों के इस मकड़जाल में फंसे हुए हैं और हर माह उनकी जेब पर भार बढ़ रहा है. दवा कंपनियों के इस मुनाफे में डॉक्टर भी शामिल है, क्योंकि उनको भी इस मुनाफे का कुछ अंश किसी न किसी मद में मिल जाता है. शुगर की एक एमजी की एक दवा की कीमत 4 रुपये प्रति गोली है, लेकिन 0.5 एमजी की उसी कंपनी की दवा 5.50 रुपये प्रति गोली हो जाती है.

मैटफॉरमिन और ग्लीमेप्राइड के अलग-अलग रसायन की दवा क्रमश: दो और चार रुपये में मिल जाती है, लेकिन यही दवा जब कॉम्बिनेशन में आती है, तो इसकी कीमत 10.50 रुपये प्रति गोली पड़ती है.

हार्ट और कॉलेस्ट्रोल की दवाएं हो जाती हैं महंगी :

हार्ट और कॉलेस्ट्रोल की दवाओं की कीमत भी इसी तरह महंगी हो जाती है. एट्रोवास्टेटिन और फेनोफाइब्रेट के अलग- अलग रसायन की दवा 252 रुपये में आ जाती है, लेकिन यही दवा उसकी कंपनी की जब कॉम्बिनेशन में आती है, तो 350 रुपये में हो जाती है. बीपी की दवाओं में यही हाल है. टेल्मीसार्टेन और एम्लोडिपीन की अलग-अलग की दवा की 220 रुपये में पड़ जाती है, लेकिन कॉम्बिनेशन में यही दवा 330 से 350 रुपये में आता है. इंसुलीन की दवाओं की कीमत भी इसी तरह बढ़ा दी जाती है.

रुपये, लेकिन कॉम्बिनेशन में इसकी कीमत हो जाती है 10.50 रुपये प्रति गोली

एट्रोवास्टेटिन और फेनोफाइब्रेट की अलग-अलग की कीमत 252 रुपये, लेकिन कॉम्बिनेशन में आते ही कीमत हो जाती है 350 रुपये

एक्सपर्ट बोले

दवा कंपनियों की है बड़ी लॉबी

एक डॉक्टर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि दवा कंपनियों की बड़ी लॉबी है, जिसमें ईमानदारी से प्रैक्टिस करनेवाले डॉक्टर भी उनसे छूट नहीं पाते हैं. उनके पास गरीब मरीज आते हैं, लेकिन चाहकर भी अलग-अलग मॉलिक्यूल की दवाएं नहीं लिख पाते हैं.

Posted by: Sameer Oraon

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