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गांव की सरकार : साइकिल से प्रचार-प्रसार कर मुखिया बने थे गुरुपद महतो, सरायकेला के छोटादावना का जानिए हाल

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सरायकेला की जुगरगुड़िया पंचायत (वर्तमान में छोटादावना पंचायत) के पूर्व मुखिया गुरुपद महतो वर्ष 1971 में पहली बार मुखिया बने. पूर्व मुखिया प्रचार प्रसार के लिए साइकिल से जाते थे. कहते हैं मुखिया के अधिकार से लेकर क्षेत्र के विकास में काफी बदलाव आया.

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Jharkhand Panchayat Chunav 2022: सरायकेला प्रखंड की जुगरगुड़िया पंचायत (वर्त्तमान छोटादावना) के पूर्व मुखिया गुरुपद महतो महज 2000 रुपये खर्च कर वर्ष 1971 में पहली बार मुखिया बने थे. इसके बाद वर्ष 1978 में चुनाव हुए, तो फिर से जीत कर मुखिया बने, जो वर्ष 1998 तक रहे. मुखिया के साथ-साथ वे उपप्रमुख एवं जिला परिषद भी चुने गये थे. क्षेत्र में आज भी मुखिया जी के नाम से जाने जाते हैं.

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साइकिल से किया था प्रचार-प्रसार

पूर्व मुखिया गुरुपद महतो ने कहा कि पहली बार 1971 में मुखिया चुनाव में खड़ा हुआ था, तब यहां पेशा एक्ट लागू नहीं था और मुखिया के पद भी अनारक्षित होते थे. चुनाव में नामांकन किया और साइकिल से प्रचार-प्रसार कर महज 2000 रुपये खर्च कर 600 वोट से जीत हासिल किया था. चुनाव में नौ प्रत्याशी थे जिसमें गुरुपद को 884 वोट मिले थे, जबकि प्रतिद्धंदी को 284 वोट ही मिल पाये थे. वर्ष 1978 में हुए चुनाव में 500 वोट से जीत हासिल किये थे.

उम्मीदवार के आचरण, शिक्षा और व्यक्तित्व में आया काफी बदलाव

पूर्व और वर्तमान चुनाव पर उन्होंने कहा कि आज बहुत बदलाव आ गया है. आज चुनाव में पानी की तरह पैसा बहाया जाता है. पहले उम्मीदवार को देखकर लोग वोट देते थे. पहले यह पद समाजसेवा था. जनता उम्मीदवार के आचरण, शिक्षा और व्यक्तित्व को देख कर वोट देती थी. आज इसमें काफी बदलाव आया है. पहले मुखियाओं के अधिकार अधिक थे. आज अधिकार सीमित हो गये हैं.

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पहले सरपंच की व्यवस्था थी

पंचायत में बगैर मुखिया के इजाजत के प्रशासन और पुलिस के पदाधिकारी गांव नहीं घुसते थे. पहले सरपंच की व्यवस्था थी जिसमें सरपंच न्यायिक पार्ट हुआ करते थे. गांव में कचहरी बैठता था. छोटे-छोटे मामलों को सरपंच गांव में ही पंच बैठा कर निपटारा करते थे. उसमें मुखिया का कार्यकारी सदस्य के रूप में उपस्थित रहना जरूरी होता था. राजस्व लगान का उठाव पंचायत सेवक एवं मुखिया को उठाने को अधिकार था.

पूर्व में मुखिया को नहीं मिलता था फंड

पहले मुखिया को फंड की व्यवस्था नहीं थी. पंचायत से उठने वाले राजस्व से ही वो खर्च कर सकते थे. उस समय पंचायत को लगान से 2000 रुपये का आवंटन मिलता था, उसी से पंचायत का विकास करते थे. पहले मुखिया का रूतबा अलग था. आज काफी फर्क आया है. अधिकार भी सीमित हुए है. पहले अधिक अधिकार थे. पहले चुनाव में पैसे का बोलबाला नहीं था. आज पैसों का बोलबाला हो गया है.

रिपोर्ट : प्रताप मिश्रा, सरायकेला.

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