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जरूरी है बहुलतावादी लोकतंत्र

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हमारे ध्यान में यह हमेशा रहना चाहिए कि हम अभी भी एक युवा राष्ट्र हैं. राज्यों के संघ भारत की एकता एवं अखंडता तथा बहुल व विविधतापूर्ण समाज को बचाना हर सरकार का पवित्र दायित्व है.

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बीते सप्ताह केंद्रीय गृहमंत्री ने एक लेख में दावा किया कि ‘मोदी सरकार के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा राजनीति का विषय नहीं है. यह ‘राष्ट्र को सर्वोपरि’ रखने का मामला है. हमारी सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा एवं अखंडता से समझौता नहीं कर सकती है.’ फिर भी, लगता है कि केंद्र सरकार और भाजपा यह नहीं समझती कि धार्मिक असहिष्णुता और धर्मांधता भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा एवं अखंडता के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं.

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इसे अनदेखा कर, उससे भी खराब उसे बढ़ावा देकर, सत्ताधारी पक्ष द्वारा निरंतर धार्मिक कट्टरता का प्रदर्शन करना राष्ट्रीय सुरक्षा एवं अखंडता के हित में नहीं है. सभी धर्मों में छिटपुट तत्व हैं, पर उन सभी के साथ कड़ाई से निपटना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे हाशिये से मुख्यधारा न बन सकें.

हमारी सशस्त्र सेनाएं सुरक्षा की बाह्य चुनौतियों का सामना करने के लिए पूरी तरह से सक्षम हैं, यह भारत की आंतरिक सुरक्षा है, जो चिंताजनक बनी हुई है. सांप्रदायिकता, उग्रवाद, धर्मांधता व धार्मिक असहिष्णुता से पैदा हुईं चुनौतियों से राष्ट्रीय सुरक्षा प्रतिष्ठान अभी तक पार नहीं पा सका है. यह हो भी कैसे सकता है, जब विभिन्न स्तरों पर राजनीतिक नेतृत्व ही वोट की तलाश में ऐसी शक्तियों को बढ़ावा देता रहेगा?

राष्ट्रों के समुदाय में भारतीय गणराज्य दशकों से बहु-जातीयता, बहुभाषी, बहु-सांस्कृतिक और बहु-धार्मिक धर्मनिरपेक्ष और बहुलतावादी लोकतंत्र के रूप में प्रतिष्ठित रहा था. विश्व में कुछ ही देश हैं, जो अपने बारे में ऐसा दावा कर सकते हैं. हमें अपनी विविधता में एकता पर गर्व होता था. गंभीर उन्माद के समक्ष भारतीय गणराज्य की इसी विशिष्टता की रक्षा करना भारत के लिए हमेशा से मुख्य राजनीतिक एवं सुरक्षा चुनौती रहा है.

भाजपा की एक राष्ट्रीय प्रवक्ता द्वारा मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को आहत करनेवाला बयान देने के एक सप्ताह से अधिक समय तक पार्टी और सरकार चुप रही थीं, पर जब कुछ अरब देशों ने सत्ताधारी पार्टी के सदस्यों पर कार्रवाई न करने की आलोचना की, तो त्वरित कार्रवाई की गयी. एक सप्ताह पहले ही भारत में धार्मिक असहिष्णुता को रेखांकित करने के लिए अमेरिकी विदेश सचिव एंथनी ब्लिंकेन की आलोचना भारतीय विदेश मंत्रालय ने यह कहते हुए की थी कि यह अमेरिका की ‘वोट बैंक पॉलिटिक्स’ है.

एक सप्ताह बाद अरब देशों ने सरकार को एक कदम पीछे हटने पर विवश कर दिया. अरब के सामंती शासकों, जिनमें से एक भी लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नहीं हैं, की भर्त्सना के कारण भाजपा को अपने प्रवक्ताओं पर कार्रवाई करनी पड़ी और विदेश मंत्रालय को सफाई देनी पड़ी कि उन प्रवक्ताओं के बयान भारत सरकार के विचार को प्रतिबिंबित नहीं करते. यह बहु-धार्मिक और बहुलतावादी लोकतंत्र के रूप में भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा को एक आघात है.

विदेश मंत्रालय का स्पष्टीकरण भारतीय कूटनीति के समक्ष नयी चुनौतियों को भी रेखांकित करता है. अतीत में जब भी कभी बाहर के किसी स्वयंभू मुस्लिम प्रतिनिधि ने अल्पसंख्यकों से बर्ताव को लेकर भारत को नसीहत देने का विशेषाधिकार हड़पने की कोशिश की, तो भारतीय मुस्लिम नेतृत्व द्वारा उसे तुरंत जवाब दिया जाता था. धर्म के नाम पर राज करनेवाले शासनों के पास क्या नैतिक अधिकार है कि वे एक धर्मनिरपेक्ष और बहुलतावादी लोकतंत्र की भर्त्सना करें, जिसने सभी अल्पसंख्यकों को संवैधानिक अधिकार दिये हैं?

भारतीय मुस्लिम समुदाय के लिए बोलने के अधिकार का दावा करने के प्रयास में इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआइसी) कई वर्षों से बार-बार भारत सरकार और राष्ट्र के विरुद्ध बयान देता आ रहा है. भारतीय राष्ट्रीय नेतृत्व और कई मुस्लिम नेताओं ने ऐसी आलोचनाओं को खारिज किया है. इसके बावजूद धार्मिक कट्टरता से जुड़ी घरेलू चिंताओं पर कुछ करने से छह साल तक इनकार करनेवाली सरकार ने उन अरब शासनों को सफाई दी है, जो धन से और क्षेत्र में असर का कारोबार कर प्रभावशाली हुए हैं.

पाकिस्तान ने भारत में अतिवादी इस्लामिक तत्वों को बढ़ावा दिया है, तो चीन ने माओवादी उग्रवाद को उकसाया है. समय-समय पर अन्य देशों ने भी भारत को कमजोर करने की कोशिश की है, जिसने अपने लिए अपनी सोच से बोलना तय किया है. साठ व सत्तर के दशक में पश्चिमी विश्लेषक भारत के बिखरने की भविष्यवाणी कर रहे थे. भारतीय गणराज्य का अस्तित्व बना रहा. ‘नया भारत’ आज जब ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मना रहा है, भारत की एकता एवं अखंडता पर धार्मिक, भाषाई और विकासात्मक विभाजनों के असर से जुड़ी नयी चिंताएं पैदा हो रही हैं.

ऐसे समय में मुख्यधारा की पार्टियों से जुड़े तत्वों का ऐसे बयान देना गैरजिम्मेदाराना है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा एवं अखंडता और कमजोर होती हो. केंद्र और राज्यों में सत्तारूढ़ कई पार्टियों ने कमजोर तबके के बारे में चिंता जताने पर लोगों के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा थोपा है. तो फिर धार्मिक घृणा फैलानेवाले बयान देनेवाले क्यों गिरफ्तार नहीं किये गये? राजनीति में गहरे लगी सड़न के लिए केवल माफी पर्याप्त नहीं है.

तमाम प्रधानमंत्रियों ने लगातार कहा है कि भारत एक पुरानी सभ्यता है, पर एक युवा राष्ट्र है. हम भले अपनी सभ्यता के मूल्यों को याद करें, उन पर गर्व करें, पर हमारे ध्यान में यह हमेशा रहना चाहिए कि हम अभी भी एक युवा राष्ट्र हैं. राज्यों के संघ भारत की एकता एवं अखंडता तथा बहुल व विविधतापूर्ण समाज को बचाना हर सरकार का पवित्र दायित्व है.

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