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हिंसा नहीं, संवाद है एकमात्र रास्ता

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जब सरकार खुले मन से बातचीत के लिए तैयार है, तो हिंसा क्यों? विरोध का यह तरीका किसी भी तरह स्वीकार नहीं हो सकता है.

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युवाओं द्वारा बिहार के कई जिलों से सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, रेल के डिब्बों में आग लगाने की खबरें आयीं हैं. पहले तो यह बात सबको स्पष्ट होनी चाहिए कि युवाओं के पास विरोध करने का अधिकार है, लेकिन सार्वजनिक संपत्ति को जलाने का अधिकार किसी को नहीं है. इसे किसी भी तर्क से उचित नहीं ठहराया जा सकता है. सार्वजनिक संपत्ति के निर्माण में काफी वक्त और संसाधन लगता है. यदि आप किसी आवेश में बह कर इसे नष्ट करते हैं, तो यह नुकसान न केवल आपका, बल्कि हम सबका है.

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बिहार की धरती ज्ञान की भूमि रही है. कौटिल्य, गौतम बुद्ध और आर्यभट की लंबी परंपरा हमारी थाती है. यह ज्ञान-विज्ञान की परंपरा ही है, जिस पर हम गर्व करते हैं. इसके केंद्र में युवा हैं, लेकिन इस व्यवस्था में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है. केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने अग्निपथ योजना का विरोध कर रहे युवाओं से कहा कि सरकार बातचीत के लिए तैयार है. उन्होंने कहा कि सरकार खुले मन से युवाओं की शिकायतें सुनने और जरूरत पड़ी, तो बदलाव करने को भी तैयार है. जब सरकार खुले मन से बातचीत के लिए तैयार है, तो फिर हिंसा क्यों? इसके बाद तो विरोध का यह तरीका किसी भी तरह स्वीकार नहीं हो सकता है.

भारत सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश है. उनकी अपेक्षाएं और आकांक्षाओं पर देश को खरा उतरना है, लेकिन एकमात्र रास्ता संवाद ही है. मेरा मानना है कि मौजूदा दौर की सबसे बड़ी चुनौती है युवा मन को समझने और उनके साथ तारतम्य स्थापित करने की है. आज के युवा बदल चुके हैं. मुझे युवाओं से संवाद का जब भी मौका मिला है, तो मैंने पाया कि उनमें अविश्वास का भाव है.

अधिकतर युवा शिक्षा व रोजगार की व्यवस्था से संतुष्ट नहीं हैं, लेकिन उस समस्या को सुलझाने के अलग रास्ते हैं. इसी बिहार की धरती से महात्मा गांधी ने अपने आंदोलन की शुरुआत की थी और वह आंदोलन अहिंसक था. जीवन का कोई ऐसा विषय नहीं है, सामाजिक व्यवस्था का कोई ऐसा प्रश्न नहीं है, जिस पर महात्मा गांधी ने प्रयोग न किये हों और हल निकालने का प्रयास न किया हो. उनके पास अहिंसा, सत्याग्रह और स्वराज नाम के तीन हथियार थे.

सत्याग्रह और अहिंसा के उनके सिद्धांतों ने न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लोगों को अपने अधिकारों और अपनी मुक्ति के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी. यही वजह है कि इतिहास का सबसे बड़ा आंदोलन अहिंसा के आधार पर लड़ा गया. वर्ष 1909 में गांधी जी ने एक चर्चित पुस्तक हिंद स्‍वराज लिखी थी. उन्‍होंने यह पुस्‍तक इंग्‍लैंड से अफ्रीका लौटते हुए जहाज पर लिखी थी.

जब उनका सीधा हाथ थक जाता था, तो वे बायें हाथ से लिखने लगते थे. गांधी इसमें लिखते हैं कि हिंदुस्तान अगर प्रेम के सिद्धांत को अपने धर्म के एक सक्रिय अंश के रूप में स्वीकार करें और उसे राजनीति में शामिल कर ले, तो स्वराज स्वर्ग से हिंदुस्तान की धरती पर उतर आयेगा.

माना जा रहा है कि इन प्रदर्शनों को सोशल मीडिया पर चल रही फेक न्यूज ने हवा दी है. इसके मद्देनजर बिहार के अनेक जिलों में इंटरनेट सेवा बंद की गयी. हाल में रांची में हिंसा हुई और फेक न्यूज को रोकने के लिए दो दिन इंटरनेट सेवा रोक दी गयी थी. फेक न्यूज बड़ी समस्या बनती जा रही है. अगर आपको याद हो कि कुछ समय पहले सोशल मीडिया पर कोरोना को लेकर फेक वीडियो व फेक खबरें बड़ी संख्या में चल रही थीं, जिनमें किसी कथित डॉक्टर के हवाले से कोरोना की दवा निकालने का दावा किया जा रहा था, तो कभी वैक्सीन के बारे में भ्रामक सूचना फैलायी जाती थी.

ऐसी खबरें भी चलीं कि एक आयुर्वेदिक डॉक्टर की बनायी आई ड्रॉप से 10 मिनट में कोरोना संक्रमण में राहत मिलती है और ऑक्सीजन का स्तर सामान्य हो जाता है. कहीं शराब के काढ़े से कोरोना संक्रमितों की ठीक करने का दावा किया जा रहा था, तो किसी वीडियो में कहा जा रहा है कि गाय के गोबर और गोमूत्र का लेप शरीर पर लगाने से वायरस से बचाव होता है.

किसी मैसेज में कहा जा रहा था कि पुडुचेरी के एक छात्र रामू ने कोविड का घरेलू उपचार खोज लिया है जिसे डब्ल्यूएचओ ने भी स्वीकृति प्रदान कर दी है, जबकि खुद विश्वविद्यालय को ऐसे रामू और उसकी किसी ऐसी खोज की जानकारी तक नहीं थी. एक ऑडियो में दूरसंचार विभाग का कथित अधिकारी अपने एक रिश्तेदार को बता रहा होता है कि कोरोना की दूसरी लहर 5जी नेटवर्क ट्रायल का नतीजा है.

5जी नेटवर्क को लेकर ऐसी अफवाहें विदेशों में भी खूब चली थीं. ब्रिटेन में भी यह फेक न्यूज व्यापक रूप से फैली थी कि कोरोना वायरस 5जी टॉवर्स के कारण तेजी से फैल रहा है. इसका नतीजा यह हुआ कि उस दौरान लोगों ने कई मोबाइल टावर्स में आग लगा दी थी, जबकि वैज्ञानिकों ने कई बार स्पष्ट किया है कि यह सब बेबुनियाद है और इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.

फेक न्यूज के असर का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं. ऐसी ही खबरों के आधार पर कुछ समय पहले एक फिल्म अभिनेत्री ने दिल्ली हाई कोर्ट में 5जी नेटवर्क के खिलाफ जनहित याचिका दायर कर दी थी. सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने न सिर्फ याचिका को खारिज कर दिया, साथ ही उन पर जुर्माना भी लगा दिया था. इसमें कोई शक नहीं कि मौजूदा दौर की एक बड़ी चुनौती फेक न्यूज है.

हालांकि फेक न्यूज को अपराध की श्रेणी में रखा गया है और धीरे-धीरे ही सही इसको लेकर मामले दर्ज होने भी शुरू हुए हैं. देखने में आया है कि सच्ची खबर को तो लोगों तक पहुंचने में समय लगता है, लेकिन फेक न्यूज जंगल में आग की तरह फैलती है और समाज में भ्रम एवं तनाव पैदा कर देती है. अगर यह माध्यम इसी तरह अनियंत्रित रहा, तो देश में अनेक सामाजिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं. सोशल मीडिया की खबरों के साथ सबसे बड़ा खतरा यह भी रहता है कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है, उसका पता नहीं चलता है.

अखबारों और टेलीविजन के लिए तो एक नियामक तंत्र है, लेकिन सोशल मीडिया पर एक वर्ग कुछ भी लिखता और दिखाता है. हमें करना यह चाहिए कि कोई भी सनसनीखेज खबर की जांच एक बार अवश्य करें, ताकि फेक न्यूज का शिकार होने से बच सकें.

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