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आपातकाल में जबरिया नसबंदी

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आपातकाल ने बता दिया कि जनसंख्या नियंत्रण, शिक्षा और जागरूकता से ही हो सकता है न कि कठोर नियंत्रण या कानून से.

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सुशील कुमार मोदी

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पूर्व उप मुख्यमंत्री बिहार, सांसद, राज्य सभा

sushilkumarmodi@yahoo.co.in

श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा 1975 में सत्ता को बचाने के लिए लगाये गये आपातकाल के दौरान एक लाख 10 हजार राजनीतिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी, प्रेस पर सेंसरशिप, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध, संविधान में असंवैधानिक संशोधन, राजनीतिक दलों की गतिविधियों पर पाबंदी लगा दी गयी थी. जनसंख्या विस्फोट को नियंत्रित करने के नाम पर जबरिया नसबंदी और शहरों के सौंदर्यीकरण की आड़ में हजारों गरीबों के घर उजाड़ कर जो ज्यादतियां की गयीं, उसका खामियाजा श्रीमती गांधी को भुगतना पड़ा.

आपातकाल के दौरान सामाजिक, आर्थिक बदलाव के लिए 20 सूत्रीय कार्यक्रम की घोषणा की गयी. इसी दौरान असंवैधानिक सत्ता का केंद्र बने संजय गांधी ने भी चार सूत्रीय कार्यक्रम का एलान किया, जिसमें एक जनसंख्या नियंत्रण भी था. परिवार नियोजन कार्यक्रम जहां पहले स्वैच्छिक था, उसे अनिवार्य कर दिया गया. परिवार नियोजन के अनेक विकल्प थे, वे केवल नसबंदी पर केंद्रित हो गये. प्रत्येक राज्य को नसबंदी के बड़े-बड़े लक्ष्य दिये गये. केवल स्वास्थ्य विभाग ही नहीं, बल्कि शिक्षक, पंचायत सेवक, जिला अधिकारी, अंचलाधिकारी, प्रखंड अधिकारी से लेकर पुलिस तक पूरी सरकारी मशीनरी को झोंक दिया गया.

प्रत्येक राज्य में नसबंदी के लक्ष्य को पाने वालों को प्रोत्साहित करने और लक्ष्य से विफल रहने पर दंडित करने के लिए नियम बनाये गये. वर्ष 1975-76 में जहां 26.24 लाख नसबंदी हुई थी, वहीं 1976-77 में लक्ष्य बढ़ा कर 42.55 लाख कर दिया गया. संजय गांधी को खुश करने के लिए मुख्यमंत्रियों में होड़ मच गयी. बिहार ने तीन लाख के टारगेट को बढ़ा कर छह लाख कर दिया और हासिल किया छह लाख 80 हजार. महाराष्ट्र में 14.44 लाख, बंगाल में 10.86 लाख, आंध्र में 9.06 लाख, मध्य प्रदेश में 10 लाख नसबंदी की गयी. पूरे देश में आपातकाल के 19 माह में रिकॉर्ड एक करोड़ सात लाख 56 हजार लोगों की नसबंदी की गयी.

सभी सरकारी कर्मचारियों को नसबंदी के व्यक्तिगत टारगेट दिये गये. साथ ही दो से ज्यादा बच्चे होने पर नसबंदी अनिवार्य कर दी गयी. कुछ राज्यों ने तो कायदा-कानून बना दिया. बिहार कैबिनेट की उप-समिति ने फैसला किया कि जो कर्मचारी नसबंदी के लक्ष्य का 200 प्रतिशत हासिल करेंगे उन्हें एक अग्रिम वेतन वृद्धि दी जायेगी. वहीं लक्ष्य का 50 प्रतिशत हासिल करनेवालों को प्रतिवर्ष एक ऋणात्मक अंक दिया जायेगा. तीन ऋणात्मक अंक पाने वालों को सेवा से निकाला जा सकता है. वर्ष 1976 तक 1,500 कर्मचारियों को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया.

बिहार में बिहार सरकारी सेवक (परिवार नियोजन से संबंधित विशेष प्रावधान) नियमावली, 1976 एवं बिहार राज्य आवश्यक वस्तु (अनियोजित परिवारों को वितरण पर नियंत्रण) आदेश 1976 लागू किया गया. अधिकांश राज्यों में इसी प्रकार के विभिन्न आदेश निकाले गये. इसके अंतर्गत तीन से ज्यादा बच्चों के बावजूद नसबंदी नहीं कराने वालों को सरकारी सेवा से जुड़ी किसी परीक्षा या साक्षात्कार में शामिल होने पर रोक, सरकारी अस्पतालों में मुफ्त चिकित्सा, महंगाई भत्तों की किस्तों, स्थानांतरण भत्ता, किराया भत्ता, सरकारी कोटे से मिलने वाले स्कूटर, कार, आवासीय प्लॉट, जन वितरण से मिलने वाले सस्ते अनाज आदि से वंचित करने का प्रावधान किया गया. किसी भी प्रकार का लाइसेंस, केंद्रीय विद्यालय में नामांकन प्राप्त करने के लिए नसबंदी सर्टिफिकेट अनिवार्य कर दिया गया.

टारगेट पाने की होड़ में 55 वर्ष से ऊपर, अविवाहित, दो से कम बच्चे वाले लोगों की भी नसबंदी कर दी गयी. आपातकाल की ज्यादतियों की जांच के लिए गठित शाह कमीशन के अनुसार, एक लाख आठ हजार वैसे लोगों की नसबंदी हुई, जिनके दो से कम बच्चे थे, जिसमें आंध्र (21,562) ओडिशा (19,237) पंजाब (19,831) कर्नाटक (10,244) शामिल है, 548 अविवाहित एवं 55 वर्ष से अधिक आयु के 1099 लोगों की नसबंदी के मामले प्रतिवेदित हुए. अनेक राज्यों ने तो आंकड़े उपलब्ध ही नहीं कराये.

केवल उत्तर प्रदेश में नसबंदी का विरोध करने पर 1244 लोग गिरफ्तार किये गये, जिनमें 1159 लोगों को आंतरिक सुरक्षा अधिनियम एवं 62 लोगों को मीसा में गिरफ्तार किया गया. जबरिया नसबंदी के विरोध में जगह-जगह प्रदर्शन होने लगे. उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर, गोरखपुर, मुजफ्फरनगर, रामपुर, बरेली, प्रतापगढ़ में नसबंदी विरोधी प्रदर्शन पर पुलिस को गोलियां चलानी पड़ी जिसमें 12 लोगों की मृत्यु हो गयी. बिहार में पूर्णिया, पटना, धनबाद में पुलिस फायरिंग हुई. नसबंदी के लिए अस्पतालों में पर्याप्त चिकित्सक, नर्स, ऑपरेशन थियेटर भी उपलब्ध नहीं थे. नसबंदी बाद की दिक्कतों को देखने वाला कोई नहीं था.

शाह कमीशन के अनुसार, देश में नसबंदी के बाद की जटिलताओं के कारण कुल 1774 लोगों की मृत्यु प्रतिवेदित है जिसमें राजस्थान (217) उत्तर प्रदेश (201) महाराष्ट्र (151) बिहार (80) शामिल है. वहीं सौंदर्यीकरण के नाम पर शहरों की गरीब बस्तियों को बुलडोजर लगा कर उजाड़ दिया गया. दिल्ली में एक लाख 50 हजार मकान, दुकान आदि को बिना नोटिस, बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किये अचानक पहुंचकर ध्वस्त कर दिया गया. दिल्ली का भगत सिंह मार्केट, अर्जुन नगर, सुल्तानपुर माजरा, आर्य समाज मंदिर ग्रीन पार्क, पीपल थला, तुर्कमान गेट इसके प्रमुख उदाहरण थे. दिल्ली अजमेरी योजना अंतर्गत तुर्कमान गेट इलाके में जबरदस्त अतिक्रमण विरोधी अभियान चला. दर्जनों बुलडोजर लगा दिये गये. पुलिस को 35-45 राउंड गोलियां चलानी पड़ी, 20 लोग मारे गये,146 लोग घायल हो गये.

पूरे देश से शाह कमीशन को 4039 शिकायतें मिली, जिसमें सर्वाधिक दिल्ली (1248) मध्य प्रदेश (628) उत्तर प्रदेश (425) से थी. बिहार ने तो 1976 से बिहार पब्लिक लैंड इन्फोर्समेंट (संशोधन) अध्यादेश, 1976 लागू कर दिया, जिसके अनुसार बिना अग्रिम सूचना के सार्वजनिक भूमि पर अस्थायी ढांचे को गिराया जा सकता है. सिविल कोर्ट को हस्तक्षेप करने से रोक दिया गया. आपातकाल में लोगों को अंधाधुंध गिरफ्तारियों, सेंसरशिप से जितना गुस्सा था, उससे कहीं ज्यादा गुस्सा जबरिया नसबंदी और अतिक्रमण विरोधी अभियान से था. हर व्यक्ति आतंकित और भयभीत था. आपातकाल ने बता दिया कि जनसंख्या नियंत्रण, शिक्षा और जागरूकता से ही हो सकता है ना कि कठोर नियंत्रण या कानून से.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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