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चौंकानेवाले रहे उपचुनाव के नतीजे

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लोकसभा चुनावों में भाजपा की स्थिति अन्य पार्टियों के मुकाबले थोड़ी अधिक मजबूत प्रतीत होती है. अगर स्थिति ऐसी ही बनी रही, तो 2024 में भी चुनाव परिणाम भाजपा के ही पक्ष में आयेंगे.

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हाल में संपन्न उपचुनावों के परिणाम को देखें, तो कई बातें स्पष्ट होती हैं. पंजाब में आम आदमी पार्टी की हार का मतलब है कि यह पार्टी जनता के बीच अपना विश्वास बरकरार रख पाने में सफल नहीं हो पायी, वहीं दिल्ली में लोगों का आम आदमी पार्टी पर विश्वास बना हुआ है. दिल्ली की राजेंद्रनगर विधानसभा उपचुनाव में आम आदमी पार्टी की जीत हुई है. दिल्ली में लोगों को आम आदमी पार्टी का काम पसंद है, लेकिन पंजाब में इतनी जल्दी जनता में नाराजगी-सी आ गयी, यह थोड़ा अटपटा-सा है.

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लोगों में कहीं न कहीं यह संदेश गया है कि सरकार चलाना आम आदमी पार्टी के लिए आसान नहीं है. वहां नयी सरकार को इस स्थिति को संभालना होगा. साथ ही, मुख्यमंत्री भगवंत मान को अच्छी नौकरशाही टीम देने की आवश्यकता होगी. उत्तर प्रदेश में रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा की दोनों सीटों पर भारतीय जनता पार्टी की जीत हुई, जबकि पारंपरिक तौर पर ये सीटें समाजवादी पार्टी जीतती आयी है. आजम खान की खुद की सीट पर सपा की हार आश्चर्यजनक है.

वहीं आजमगढ़ सीट पर धर्मेंद्र यादव सपा को जीत दिलाने में कामयाब नहीं हो पाये. इन सीटों पर लग रहा था कि भाजपा के लिए राह आसान नहीं होगी. हालांकि, उपचुनाव के परिणाम अक्सर सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में जाते रहे हैं, लेकिन गौर करनेवाली बात है कि ये दोनों ही सीटें सपा की पारंपरिक सीटें थीं. इस हार के बाद सपा को हार के कारणों का विश्लेषण करना पड़ेगा. उत्तर प्रदेश पूरी तरह से भगवामय होता जा रहा है.

साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भी इन दोनों सीटों पर सपा जीत दर्ज करने में कामयाब रही थी. इस बार भी सपा की हार कड़े मुकाबले में हुई है. दरअसल, जिस तरह से उत्तर प्रदेश में भाजपा का प्रभाव बढ़ रहा है, उसका असर इन सीटों पर भी देखने को मिला है.

लोग उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पसंद कर रहे हैं. विधानसभा चुनाव में लोग क्षेत्रीय पार्टियों को प्राथमिकता देते हैं, लोकसभा चुनावों में मुद्दे थोड़े अलग तरह के होते हैं. लोकसभा चुनावों में भाजपा की स्थिति अन्य पार्टियों के मुकाबले थोड़ी अधिक मजबूत प्रतीत होती है. अगर स्थिति ऐसी ही बनी रही, तो 2024 के चुनाव में भी चुनाव परिणाम भाजपा के ही पक्ष में आयेंगे.

खान के बीच थोड़ी-बहुत मनमुटाव की खबरें भी सामने आयी थीं. अखिलेश का रुझान थोड़ा सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ हुआ था या कहें उनकी चुनावी रणनीति में थोड़ा बदलाव आया था. कपिल सिब्बल को स्वतंत्र समर्थन देने का एक मतलब यह भी था कि उनकी आजम खान के साथ नजदीकी है. इससे लगता था कि सिब्बल अखिलेश और आजम खान के बीच में एक कड़ी का काम करेंगे.

विचाराधारा के तौर पर विपक्ष का क्या रुख होना चाहिए, इसे लेकर विपक्ष की स्थिति स्पष्ट नहीं है. हिंदुत्व की राजनीति इतनी आक्रामक हो गयी है कि उसके सामने धर्मनिरपेक्षता की राजनीति बहुत कमजोर नजर आती है. जब सेकुलर राजनीति (जैसा कि पार्टियां दावा करती हैं) की बात होती है, तो उसे अल्पसंख्यक हितैषी राजनीति कह दिया जाता है. हिंदुत्व और अल्पसंख्यक विरोधी नहीं, बल्कि हिंदुत्व और अल्पसंख्यक समर्थक राजनीति को किस तरह से पक्ष में लिया जाए, यह विपक्ष को समझ में ही नहीं आ रहा है. विचाराधारा की लाइन क्या है, धर्मनिरपेक्षता की राजनीति क्या है, अगर आप किसी के खिलाफ नहीं हैं, तो हिंदू समाज को यह बात किस तरह से समझायेंगे. यह कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष के सामने बहुत बड़ी चुनौती है.

जिस तरह भगवंत मान की सीट पर आम आदमी पार्टी की हार हुई है और कुछ महीनों में लोगों की सोच में परिवर्तन आ गया है, यह बहुत ही बड़ी चिंता की बात है या कहें कि पंजाब का चुनाव परिणाम सबसे ज्यादा चिंताजनक है. सिमरनजीत सिंह मान की जीत समझ से परे है, वे खालिस्तान के समर्थक माने जाते हैं. लोगों का विचार किस तरह से बदला है, यह समझने की जरूरत है. यह आम आदमी पार्टी बनाम शिरोमणि अकाली दल या अमृतसर की कहानी भर नहीं है. सवाल है कि क्या सिखों का मूड बदल रहा है और यह क्यों बदल रहा है. अभी कुछ ही महीनों में इतना बड़ा बदलाव कैसे हुआ? उपचुनावों में सबसे महत्वपूर्ण चुनाव परिणाम यही है.

पंजाब में इतनी सारी जो हिंसा और हत्याएं हुई हैं, वह भी राज्य के लिए अजीबोगरीब स्थिति है. सवाल है कि पंजाब में इस तरह की घटनाएं अचानक क्यों होने लगी हैं? यह सवाल सामने आता है कि इस तरह की घटनाएं पहले तो नहीं हो रही थीं. समाज तो वही है, राजनीति भी वही है. क्या कुछ लोगों द्वारा आम आदमी पार्टी की सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश है? दूसरा, पहले दिन से ही माना जा रहा है कि भगवंत मान को दिल्ली चला रही है.

तीसरा, भगवंत मान के पास शासनिक-प्रशासनिक अनुभव नहीं है. वे वक्ता बहुत अच्छे हैं, लेकिन सरकार चलाने के लिए उन्हें एक अच्छी और मजबूत टीम की जरूरत है. उन्हें नौकरशाहों की एक अच्छी टीम चाहिए, जिसके पास प्रशासनिक कार्यों का भरपूर अनुभव हो. आम आदमी पार्टी के नेतृत्व को इस विषय पर गंभीरता से विचार करना होगा. नयी सरकार के लिए यह चेतावनी की तरह है. (बातचीत पर आधारित).

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