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Bihar News: रहिए तैयार खाने पर पड़ने वाली है GST की मार, देखिए लिस्ट क्या सब हो रहे महंगे

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Bihar News: जीएसटी का असर अब खाने पर भी दिखने लगा है. आटा, चावल समेत सभी खाद्य पदार्थों की कीमत बढ़ गई है. 18 जुलाई को जैसे ही जीएसटी के नए प्रावधान लागू होने पर बिहार में गेहूं, चावल, मैदा, आटा बहुत महंगे हो जाएंगे. सरकार ने लस्सी, छाछ, दही और पनीर को भी जीएसटी के दायरे में लाया है.

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जीएसटी लालू होने के साथ ही खाने पीने की सामग्री बढ़ जायेगी. आटा, चावल समेत अन्य सभी खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ जायेगी. खाने पीने की जो सामग्री खुले में बिकती उसकी भी कीमतें बढ़ जायेगी. व्यवसायियों का कहना है कि पैकेट बंद ब्रांडेड और खुले में बिकने वाली सामग्री की कीमत एक हो जायेगी. बिहार खुदरा विक्रेता संघ के सदस्यों के अनुसार चावल और दालों की कीमतें पांच रुपये प्रति किलो तक बढ़ सकती हैं. इससे गरीबों के सामने दो जून की दाल रोटी की भी समस्या उत्पन्न हो जायेगी. उनका कहना है कि 18 जुलाई को जैसे ही जीएसटी के नए प्रावधान लागू होंगे बिहार में गेहूं, चावल, मैदा, आटा बहुत महंगे हो जाएंगे. बीते 28 और 29 जून को हुई जीएसटी काउंसिल की बैठक के बाद से ही खुले खाद्य पदार्थों की कीमतों में 50 पैसे से दो रुपये की बढ़ोत्तरी हो चुकी है. जबकि अभी वो प्रवधान लागू ही नहीं हुए हैं.

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बिहार खुदरा विक्रेता महासंघ के महासचिव रमेश तलरेजा का कहना है कि अभी कौन सी खाद्य पदार्थों की कीमत कितनी होगी यह कहा नहीं जा सकता. लेकिन खाने पीने की सामग्री पर मूल्य जरुर बढ़ेंगे. उन्होंने सरकार से मांग किया कि ब्रांडेड की तरह अनाज और उससे बने खाद्य पदार्थों की खुदरा बिक्री को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा जाए. ताकि निम्न मध्यम वर्ग को राहत मिल सके.

संघ के सदस्यों का कहना है कि यह बढ़ोत्तरी तब हुई है जब बिहार के लोगों की औसत कमाई घटी है और राज्य में बेरोजगारी बढ़ी है. निर्माण क्षेत्र में रोजगार के अवसर कम होने से ग्रामीण बेरोजगारी चरम पर है. ऐसे में खाना महंगा होने का सीधा असर आम लोगों पर ही पड़ेगा. सरकार ने लस्सी, छाछ, दही और पनीर को भी जीएसटी में लाने का फैसला किया है.

हालांकि अभी ये साफ नहीं हुआ है कि खुले खाद्य पदार्थों में जीएसटी की दर क्या होगी. 5 से 18 फीसदी के बीच जो भी जीएसटी दर लागू होगी उसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ना तय है. सरकार के इस फैसले से कारोबारी भी बेहद चिंतित हैं. कारोबारियों का मानना है कि इससे लोगों की क्रय शक्ति कम होगी और छोटे दुकानदारों के सामने दुकान को बचाए रखने की चुनौती होगी.

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