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Azadi Ka Amrit Mahotsav: अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करने पर छोड़नी पड़ी थी नौकरी

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भारत की स्वतंत्रता के 75 साल पर हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के योद्धाओं को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं. आजादी के संग्राम में कई ऐसे लोग भी थे, जिन्हें देश-दुनिया मुकम्मल तौर पर अब भी नहीं जानती. ऐसे ही सूरमाओं में से एक हैं सनातन पाट पिंगुवा.

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Azadi Ka Amrit Mahotsav: पश्चिमी सिंहभूम के दो हाट बाजारों में दुकानदारों को महसूल देने से मना करने (डकारा करने) के कारण मझगांव के नयागांव निवासी स्वतंत्रता सेनानी सनातन पाट पिंगुवा को न केवल टीचर की नौकरी छोड़नी पड़ी थी, बल्कि तीन बार जेल की सजा काटनी पड़ी थी. उनके पौत्र खगेश पाट पिंगुवा बताते हैं कि दादाजी का जन्म 1822 में तथा निधन 1972 में हुआ था. वह पोखरिया मध्य विद्यालय के शिक्षक तथा महात्मा गांधी के अनुयायी थे. जब उनकी उम्र करीब 40 साल थी, उस समय देश में आजादी का आंदोलन जोर पकड़ चुका था.

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अग्रणी नेताओं के आह्वान पर वे भी आंदोलन में कूद पड़े और अंग्रेजों के कानून का विरोध करने लगे. उन्होंने व्यापरियों को महसूल नहीं देने के लिए जागरूक करना शुरू कर दिया. इसी क्रम में एक दिन जब वह अंधारी बाजार में व्यापारियों को महसूल नहीं देने के लिए डकारा कर रहे थे, तो सिपाहियों ने उन्हें गिरफ्तार कर चाईबासा जेल भेज दिया. कुछ दिनों के बाद उन्हें छोड़ा गया. इसके बाद वे फिर आंदोलन में शामिल हो गये. वे जैंतगढ़ बाजार में भी महसूल वसूली के खिलाफ डकारा करने लगे. सूचना पाकर वहां भी पुलिस पहुंची और उन्हें गिरफ्तार कर चंपुआ जेल भेज दिया. वहां छह माह तक बंद रहे. जेल से छूटने के बाद भी उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत का विरोध जारी रखा. इस वजह से उनके खिलाफ कुर्की वारंट जारी किया गया.

पौत्र खगेश पाट पिंगुवा के मुताबिक, पुलिस उन्हें खोजने के लिए घर पर दबिश देने लगी. 1942 में उन्होंने शिक्षक की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और चाईबासा में आत्मसमर्पण कर दिया. उन्हें हजारीबाग जेल भेज दिया गया. वहां तीन साल तक जेल में रहे. रिहा होने पर दादाजी गांव पहुंचे व आश्रम विद्यालय खोला, जहां कक्षा पांच तक की शिक्षा दी जाती थी. स्कूल खुलने के दो साल बाद देश आजाद हुआ. आजादी के बाद बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह ने आश्रम विद्यालय का उद्घाटन किया था. बाद में उसे आदिम जाति सेवा मंडल स्कूल का नाम दिया गया. अब उस जगह पंचायत भवन बन गया है. कुछ दिन बाद जयप्रकाश नारायण भी सनातन पाट पिंगुवा से मिलने पहुंचे थे. दादाजी के निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार गांव में ही किया गया. जहां उनकी आज भी समाधि है.

बारिश थमने पर पुलिस ने करण व अन्य को छोड़ा था

खगेश पाट पिंगुवा ने बताया कि गांव के ही करण पिंगुवा दादाजी के अच्छे मित्र थे. वे भी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ थे. इस वजह से एक दिन उन्हें पकड़ लिया गया. ब्रिटिश पुलिस करण पिंगुवा सहित कई लोगों को पकड़ कर चाईबासा ले जा रही थी. लेकिन तालाबुरू गांव पहुंचने तक शाम हो गयी. इस वजह से सभी लोग वहीं रुक गये तथा भोजन बनाने की तैयारी की जाने लगी. तभी तेज आंधी- पानी शुरू हो गया. अंग्रेज सिपाहियों ने करण पिंगुवा से कहा कि यदि वह गांधी के सच्चे अनुयायी हैं, तो आंधी- पानी को रोकवा दें. इतना सुन करण पिंगुवा वहीं ध्यान में लीन हो गये. थोड़ी देर बाद जहां भोजन तैयार हो रहा था, वहां आंधी- पानी रुक गया, जबकि कुछ दूरी पर तेज हवा के साथ बारिश हो रही थी. करण पिंगुवा की गांधीजी के प्रति श्रद्धा और किसी वजह से आंधी-बारिश थम जाने से ब्रिटिश सिपाही खुश हुए और सभी को छोड़ दिया.

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