16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

बढ़ता उपचार खर्च

Advertisement

एक आकलन के अनुसार, 75 प्रतिशत भारतीय उपचार के लिए अपने पास से खर्च करते हैं. नीति आयोग के एक अध्ययन के अनुसार 42 करोड़ लोगों के पास किसी तरह का कोई बीमा नहीं है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

हमारे देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा की समुचित उपलब्धता नहीं होने के कारण बड़ी संख्या में मरीजों को निजी अस्पतालों में जाना पड़ता है. हालांकि केंद्र और राज्यों की बीमा योजनाओं से गरीब आबादी को कुछ राहत मिली है, लेकिन निम्न और मध्य आय वर्ग के लोगों को उपचार के खर्च का बड़ा हिस्सा अपनी जेब से देना पड़ता है. यह सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा के लक्ष्य को पूरा करने की राह में बड़ी बाधा है. एक आकलन के अनुसार, 75 प्रतिशत भारतीय उपचार के लिए अपने पास से खर्च करते हैं.

- Advertisement -

नीति आयोग के एक अध्ययन के अनुसार 42 करोड़ लोगों के पास किसी तरह का कोई बीमा नहीं है. जानकारों की मानें, तो वास्तव में यह संख्या कहीं अधिक हो सकती है. ऐसी शिकायतें भी लगातार आ रही हैं कि सरकार द्वारा प्रायोजित बीमा योजनाओं के लाभार्थियों के साथ अस्पतालों का व्यवहार ठीक नहीं है. उन्हें बिस्तर मिलने में मुश्किल का सामना करना पड़ता है तथा कमतर गुणवत्ता के उपकरण लगाये जाते हैं.

अस्पतालों एवं चिकित्सा सुविधाओं पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लगाने से मरीजों का बोझ और बढ़ने की आशंका है. हालांकि सरकार की ओर से कहा गया है कि पांच हजार रुपये से अधिक के कमरों पर जीएसटी लगाने से बहुत बड़ी संख्या में लोग प्रभावित नहीं होंगे, लेकिन निजी अस्पतालों के रवैये को देखते हुए आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता है. कुछ समय पहले एक संसदीय समिति ने निजी अस्पतालों में मनमाने ढंग से पैसा लेने पर गंभीर चिंता व्यक्त की थी और सरकार से इस संदर्भ में ठोस कदम उठाने को कहा था.

हाल ही में एक जांच में पाया गया है कि कुछ बड़े अस्पताल अपने यहां दवाएं अधिक कीमत पर बेचते हैं. कई बार तो अस्पताल के ही प्रयोगशाला से जांच कराने तथा वहीं से दवा खरीदने का दबाव भी रोगियों के परिजनों पर डाला जाता है. गैर-जरूरी जांच करने और अधिक दवाएं देने के मामले में भी निजी अस्पतालों की आलोचना होती रहती है. अस्पतालों में पारदर्शिता बरतने तथा सही ढंग से पैसा लेने को लेकर सरकार को कुछ प्रावधान करना चाहिए.

कोरोना महामारी के दौर में बार-बार यह देखा गया कि निजी अस्पतालों ने इसे भारी कमाई का मौका बना लिया था. संसदीय समिति ने तो यहां तक कहा था कि अगर अस्पतालों ने मानवीय व्यवहार किया होता, तो बहुत से लोगों को मौत से बचाया जा सकता था. हमारा देश दुनिया के उन देशों में शामिल है, जो अपने सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का बहुत मामूली हिस्सा स्वास्थ्य के मद में खर्च करते हैं.

हालांकि केंद्र सरकार ने बजट में इस मद में आवंटन में लगातार बढ़ोतरी की है तथा कुल खर्च में भी उल्लेखनीय वृद्धि का लक्ष्य रखा गया है, पर इन प्रयासों के असर बाद में सामने आयेंगे. फिलहाल कुछ ऐसे तात्कालिक उपाय किये जाने चाहिए ताकि लोगों को उपचार के नाम पर बहुत अधिक खर्च न करना पड़े.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें