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झारखंड के विश्व प्रसिद्ध कन्हैयास्थान नाट्यशाला ISKCON Temple में जन्माष्टमी का उल्लास

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Janmashtami 2022: साहिबगंज जिले में वैसे तो कई मनोरम पर्यटक स्थल हैं. इनमें से पसंदीदा पर्यटक स्थलों में से एक राजमहल का कन्हाई नाट्यशाला इस्कॉन मंदिर भी है. जिला मुख्यालय से करीब 26 किलोमीटर दूर गंगा तट पर स्थित कन्हाई नाट्यशाला इस्कॉन मंदिर का नाम देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी चर्चित है.

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Janmashtami 2022: झारखंड के साहिबगंज जिले में वैसे तो कई मनोरम पर्यटक स्थल हैं. इनमें से पसंदीदा पर्यटक स्थलों में से एक राजमहल का कन्हाई नाट्यशाला इस्कॉन मंदिर भी है. जिला मुख्यालय से करीब 26 किलोमीटर दूर गंगा तट पर स्थित कन्हाई नाट्यशाला इस्कॉन मंदिर का नाम देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी चर्चित है. प्रकृति की गोद में बसा विश्व प्रसिद्ध कन्हैयास्थान नाट्यशाला इस्कॉन मंदिर को कृष्णभक्त इसे भगवान श्री कृष्ण की लीला स्थली मानते हैं. विश्व प्रसिद्ध कन्हाई नाट्यशाला इस्कॉन मंदिर में दो वर्षों के बाद धूमधाम से जन्माष्टमी मनाई जा रही है. शनिवार को नंद उत्सव मनाया जाएगा.

चैतन्य महाप्रभु को बाल रूप का दर्शन

प्रेम विलास नामक पुस्तक के अनुसार सन् 1505 में यहां भव्य मंदिर था, जिसमें राधा कृष्ण की प्रतिमा स्थापित थी. कहा जाता है की प्राचीन काल में भगवान श्री कृष्ण ने वैष्णव धर्म के प्रचारक चैतन्य महाप्रभु को यहां पर बाल रूप का दर्शन दिया था. हिंदू धर्म ग्रंथ श्री चैतन्य चरितामृत के अनुसार श्री चैतन्य महाप्रभु बिहार के गया जिले से अपने पिता का पिंड दान कर अपने घर नवद्वीप वापस लौटने के क्रम में तमाल वृक्ष के नीचे विश्राम करने के लिए यहां पर रुके थे. जहां पर चैतन्य महाप्रभु को मोर मुकुट धारण किए भगवान श्री कृष्ण अपने बाल रूप का दर्शन दिया. श्रीकृष्ण के बाल रूप को देख श्री चैतन्य महाप्रभु भावविभोर हो गए और उनसे भावविह्वल हो कर आलिंगन वध होना चाहा. जैसे ही उन्होंने आलिंगन करना चाहा भगवान श्रीकृष्ण गायब हो गए. श्रीकृष्ण के गायब होते ही चैतन्य महाप्रभु कृष्ण-कृष्ण कह कर उन्हें ढूंढने लगे और लोगों को आपबीती सुनाई.

गुप्त वृंदावन के नाम से मशहूर

कहा जाता है कि इससे पूर्व द्वापर युग में भी भगवान श्रीकृष्ण यहां पर आए थे. ग्रंथों के अनुसार श्री कृष्ण गोपियों के साथ महारास कर रहे थे. इस दौरान देवी राधा के मन में द्वेष उत्पन्न हो गई. श्री कृष्ण राधा रानी की अंतरात्मा के विचारों को जान लिया और एक गोपनीय स्थान पर चले गए, जिससे देवी राधा परेशान हो गईं. उनके काफी अनुनय विनय के बाद श्रीकृष्ण ने देवी राधा को कन्हाई नाट्यशाला में लाकर प्रेम भावना प्रकट की. इस लीला के बाद श्रीकृष्ण व देवी राधा ने अपने पद चिन्ह यहां छोड़ गए, जो आज भी कन्हैयास्थान मंदिर में स्थापित है. इस कालांतर में इस स्थान का नाम कन्हैयास्थान पड़ गया. जिसे गुप्त वृंदावन नाम से भी जाना जाता है. जानकारी के लिए बता दें कि चैतन्य महाप्रभु पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के नवद्वीप शहर के रहने वाले थे. जिसे अब नवद्वीप धाम के नाम से जाना जाता है. यहां के मायापुर में इस्कॉन का अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय है. इस मंदिर में हर वर्ष विदेशी पर्यटक आते हैं. इनमें से अधिकतर पर्यटक कन्हैयास्थान स्थान मंदिर भ्रमण करने आते हैं.

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कृष्ण भक्त उत्तम प्रभु ने कही ये बात

कन्हैयास्थान मंदिर के कृष्ण भक्त उत्तम प्रभु ने बताया पहले यहां भव्य मंदिर हुआ करता था. इस भव्य मंदिर को औरंगजेब के शासनकाल में ध्वस्त कर दिया गया. जिसमें राधा कृष्ण की अष्ट धातु प्रतिमा स्थापित थी जो सन् 1994 में चोरी हो गई. उन्होंने बताया कि इसकी खुदाई की जाए तो इतिहास के परतों पर जमी धूल साफ हो सकती है. सन् 1995 में नरसिंह दास बाबा जी महाराज जो उस समय के तत्तकालीन महन्त थे उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ (इस्कॉन) को सौंपा. जिसमें इस्कॉन के द्वारा सन् 1997 के मार्च माह में राधा कन्हैयालाल सिंध महाप्रभु ने उसकी स्थापना की. वर्तमान में यहां के मुख्य संचालक ब्रजराज कन्हाई दास तथा सहायक संचालक कृष्ण कृपा सिंधु प्रभु हैं तथा वर्तमान में यहां पर भव्य मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है. तथा कन्हैयास्थान इस्कॉन मंदिर में अतिथि भवन, प्रवेश द्वार, शौचालय, ठहरने की उत्तम व्यवस्था की गई है.

क्या है आकर्षण का केंद्र

मंदिर में भगवान श्री कृष्ण और देवी राधे का पद् चिन्ह, मनमोहक प्रतिमा तथा मंदिर गंगा नदी के तट पर होने से कन्हैया स्थान और भी ज्यादा रमणिक जान पड़ता है. मंदिर प्रांगण को छूती गंगा नदी की धाराको देखकर लगता है मानो मां गंगा भगवान श्री कृष्ण के चरण पखारना चाहती हो. मंदिर में प्रवेश करने से पहले गंगा नदी ओर से उपवन में आती ठंडी हवा आपका चित्त और आत्मा शुद्ध कर देती है. इस समय नमामि गंगे परियोजना के तहत सीढ़ी घाट बना दी गई है जो मंदिर के आकर्षण को और भी बढ़ा देती है तथा परिक्रमा स्थल भी है जिसको बीचोंबीच पीपल का पेड़ मौजूद है. श्रद्धालुओं का मानना है कि इसी पीपल के वृक्ष के नीचे भगवान श्री कृष्ण और देवी राधे ने झूला झूला था, जो भी हमारे बीच मौजूद है.

क्या है तमाल का वृक्ष की विशेषता

यदि आप कन्हाई नाट्यशाला इस्कॉन मंदिर आते हैं तो तमाल के वृक्ष से मंदिर में प्रवेश करने के बाद उस वृक्ष से आलिंगनबद्ध जरूर हों जिससे अत्यंत शांति व भक्ति भावना का भाव उत्पन्न होता है. मंदिर के क्षेत्र में तमाल वृक्ष का भी एक अद्भुत कथा है. कहा जाता है तमाल वृक्ष भगवान श्री कृष्ण को अति प्रिय था जो श्रीकृष्ण के स्थान पर उपस्थित होने का साक्ष है. पूरे विश्व में जहां पर भी भगवान श्री कृष्ण अपने लीलाएं किए हैं या उस स्थल से उनका कोई संबंध रहा हो वहां पर तमाल का वृक्ष खुद ब खुद उत्पन्न हो जाता है. यदि इस वृक्ष को उखाड़ कर दूसरे स्थान यानि उसके क्षेत्र से बाहर परति रोपण किया जाए तो वह वृक्ष नहीं लगेगा. कन्हैयास्थान इस्कॉन मंदिर में तमाल का कई वृक्ष हैं. मंदिर के भव्य निर्माण के साथ-साथ यहां पर ठहरने का उत्तम प्रबंध है. जहां रहने, खाने से लेकर अन्य जरूरी दिनचर्या का सारी सुविधा उपलब्ध है. कई पर्यटक तथा कृष्ण भक्ति यहां आने के बाद कुछ दिन बिताने के बाद ही जाते हैं.

कहां-कहां से आते हैं पर्यटक

छोटी सी पहाड़ी पर अवस्थित कन्हाई नाट्यशाला इस्कॉन मंदिर में भारतीय के विभिन्न राज्यों से सैलानी तो आते ही है. इसके अलावा नेपाल, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, ब्रिटेन यूनान, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, वेस्टइंडीज, दक्षिण अफ्रीका, जर्मनी, मलेशिया, रूस, फ्रांस व अन्य देशों से सालों भर विदेशी पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है. कन्हैया स्थान इस्कॉन मंदिर में जन्माष्टमी पर्व काफी धूमधाम से मनाया जाता है. यहां पड़ोसी राज्य बंगाल, बिहार अन्य राज्यों सहित विदेश से भी हजारों की संख्या में कृष्ण भक्त त्यौहार में शरीक होते हैं.

रात्रि में होगा महाभिषेक

विश्व प्रसिद्ध कन्हाई नाट्यशाला इस्कॉन मंदिर में दो वर्षों के बाद धूमधाम से जन्माष्टमी मनाई जा रही है. 2020 और 2021 में वैश्विक महामारी कोरोनावायरस के कारण इसे धूमधाम से नहीं बनाया गया था. केवल मंदिर के पुरोहित व मंदिर के सेवकों ने ही अनुष्ठान में हिस्सा लिया था, लेकिन इस बार इसे पहले की तरह भव्य तरीके से जन्माष्टमी मनायी जाएगी. सुबह से ही कृष्ण भक्त गंगा स्नान कर गंगा आरती, मंगल आरती, गुरु पूजा, राजवेश दर्शन आरती, भजन कीर्तन प्रवचन में लीन रहने के बाद शाम सात बजे से मनोरंजन के लिए भगवान श्रीकृष्ण पर आधारित नाटक का मंचन किया जायेगा. सांस्कृतिक कार्यक्रम खत्म होने के बाद रात्रि 11 बजे बाल रूपी भगवान श्रीकृष्ण का महाभिषेक कराया जायेगा. दूसरे दिन यानी शनिवार को नंद उत्सव मनाया जाएगा. इसमें 56 प्रकार के व्यंजनों का भगवान श्री कृष्ण को भोग लगाया जाएगा.

रिपोर्ट : उदित यादव, साहिबगंज

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