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शौर्य गाथा: जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में मेजर कुमार अंकुर ने घुसपैठ की साजिश को किया था विफल

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मेजर कुमार अंकुर जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में अपने दल का नेतृत्व कर रहे थे. आतंकवादियों का दल घुसपैठ करना चाह रहा था, लेकिन अपनी बहादुरी के बल पर मेजर अंकुर ने आतकियों की साजिश को विफल कर दिया था. इसी बहादुरी एवं रणकौशल के लिए उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया.

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Shaurya Ghata: 27 जुलाई 2009 का दिन, मेजर कुमार अंकुर जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में अपने दल का नेतृत्व कर रहे थे. आतंकवादियों का दल घुसपैठ करना चाह रहा था, लेकिन अपनी बहादुरी के बल पर मेजर अंकुर ने आतकियों की साजिश को विफल कर दिया. मेजर अंकुर जब निगरानी कर रहे थे, उसी दौरान उन्होंने हथियारों से लैस तीन आतंकवादियों को देखा. वे जानते थे कि फायरिंग करने पर आतंकी भाग जायेंगे. दूरी होने के कारण गोली उन्हें लगेगी भी नहीं. ऐसी स्थिति में उन्होंने तेजी से रणनीति बनायी. उन्होंने तीनों आतंकियों को पहले अपने मारक क्षेत्र में आने दिया. जब वे आश्वस्त हो गये कि अब आतंकियों पर हमला करने का सही वक्त है, तो उन्होंने आगे की कार्रवाई की. दृढ़ता और धैर्य दिखाते हुए उन्होंने पहले निशाने में ही एक आतंकवादी को यहीं पर मार गिराया.

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आतंकवादियों के मंसूबों पर फेरा पानी

एक आतंकवादी को गोली लगते ही अन्य दो आतंकवादी चौकस हो गये. उन्हें पता चल गया कि भारतीय फौज ने उन्हें देख लिया है और वे निशाने पर हैं. जान बचाने के लिए दोनों आतंकवादी भागकर बड़ी चट्टानों के पीछे छिप गये और वहीं से मेजर अंकुर के दल को निशाना बनाते हुए अंधाधुंध गोलीबारी करने लगे. मेजर अंकुर ने व्यक्तिगत सुरक्षा की परवाह किये बिना आतंकवादियों के बच निकलने के रास्तों को बंद करना चाहा. आतंकवादी लगातार गोली चला रहे थे. दौड़ कर जाना खतरे से खाली नहीं था. इसलिए मेजर अंकुर रेंगते हुए आगे बढ़ने लगे. जब वे उस चट्टान के करीब आ गये, जिसकी आड़ में आतंकवादी छिपे थे, तो उन्होंने आतंकवादियों पर हथगोले फेंके. हथगोला निशाने पर लगा. एक आतंकवादी वहीं मारा गया. मेजर अंकुर की इस कार्रवाई ने आतंकवादियों के मंसूबों पर पानी फेर दिया. इस असाधारण वीरता, साहस, बेहतर रणनीति और कुशल नेतृत्व के कारण उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया.

अंकुर का लक्ष्य था एनडीए में जाकर देश सेवा करना

कुमार अंकुर का जन्म 4 अप्रैल 1976 को धनबाद में हुआ था. सैनिक स्कूल, तिलैया में उन्होंने पढ़ाई की. बचपन से ही वे बहादुर रहे. स्कूल के मैदान में एक आम की तरह वे अक्सर अपने दोस्तों के साथ न सिर्फ हंसी मजाक करते थे, बल्कि भविष्य की योजना भी बनाते थे. बातों और हंसी मजाक के दौर में एक-दूसरे की खिंचाई भी करते, टीचरों की मिमिकरी भी करते. वे सब भविष्य में एनडीए, आइआइटी, मेडिकल, सीए आदि क्षेत्र में जाने की योजनाएं बनाया करते थे, लेकिन अंकुर का लक्ष्य तो एनडीए में जाकर देश सेवा करने का था. वे अपने फैसले पर अडिग थे, और शायद इसीलिए उन्होंने अन्य पब्लिक स्कूल की जगह सैनिक स्कूल को चुना था.

बिहार रेजिमेंट में सेकेंड लेफ्टिनेंट का मिला पद

वर्ष 1993 में प्लस टू के बाद, उन्होंने एसएसबी की परीक्षा पास कर एनडीए में अपना स्थान पक्का किया. जिस उम्र में नयी आती दाढ़ी-मूंछ के साथ किशोर करियर के विभिन्न विकल्पों में से एक का चुनाव करने के लिए उधेड़बुन की स्थिति में रहते हैं, उस उम्र में अंकुर ट्रेनिंग के दौरान सटीक निशानों पर गोलियां दागा करते थे. भविष्य की आने वाली मुश्किलों से बेफिक्र अंकुर हर पल को जीने में विश्वास रखते थे. एनडीए ट्रेनिंग की हर चुनौती जैसे ऊंची कूद, लंबी कूद, लंबी दौड़, पहाड़ की चढ़ान में वह हमेशा आगे रहने की कोशिश में रहते थे. तीन साल की ट्रेनिंग में अपना एक खास स्थान बनाने के बाद, 1996 में उन्हें इंडियन मिलिट्री एकेडमी में दाखिला मिला. वहां उन्हें अपने सपनों को पूरा करने के लिए बिहार रेजिमेंट में सेकेंड लेफ्टिनेंट का पद मिला.

शौर्य चक्र से किया गया सम्मानित

फौज के ट्रेनिंग के दौरान अंकुर को लगभग हर रोज चुनौतियों का सामना करना पड़ता. वे कभी पीछे नहीं हटते. सीधी चट्टानों पर चढ़ते, खून को जमा देने वाली बर्फीली ठंड का सामना करते, कभी-कभी घने जंगल में कंटीली झाड़ियों के बीच जंगली जानवरों का सामना होता. वे जख्मी भी होते लेकिन उफ तक नहीं करते. अंकुर युवाओं के लिए आदर्श हैं, वीरता की प्रतिमूर्ति रहे हैं. शायद यही कारण है कि जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में घुसपैठ की साजिश को विफल करने के लिए, अपनी जान की बाजी लगाने में उन्होंने एक पल की भी देरी नहीं की. खुद जोखिम लिया और दुश्मनों को मात दी. उनकी इसी बहादुरी एवं रणकौशल के लिए उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया.

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