23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

मिड डे मील पर भारत से सीखे ब्रिटेन

Advertisement

जहां ब्रिटेन जैसा समृद्ध देश अपने स्कूली बच्चों को खाना देने में आनाकानी करने लगा है, वहीं भारत में ब्रिटेन की पूरी आबादी के दोगुना बराबर बच्चों को स्कूलों में हर रोज मुफ्त खाना दिया जाता है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

भारतीय अर्थव्यवस्था की चर्चा इन दिनों फिर दुनियाभर में है. पिछले दिनों जैसे ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) ने बताया कि भारत एक बार फिर दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और उसने 2019 के बाद दोबारा ब्रिटेन को पीछे छोड़ दिया है, सबकी निगाहें भारत और ब्रिटेन की तुलना पर जा टिकीं. श्रीलंका के आर्थिक संकट के बाद दबी जुबान भारत पर भी सवाल उठने लगी थी, लेकिन यहां तो आर्थिक प्रगति ने दूसरी कहानी शुरू कर दी है.

- Advertisement -

जाहिर है कि देश को सुदृढ़ और मजबूत करने के लिए अर्थव्यवस्था का मजबूत होना सबसे ज्यादा जरूरी होता है. जब कोविड के बाद पूरी दुनिया में एक तरह की मंदी देखी जा रही है, तब आर्थिक मोर्चे पर भारत की प्रगति निस्संदेह तारीफ के काबिल है. अब जब भारत अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर ब्रिटेन से आगे है, तो कई पहलुओं पर निगाह चली जाती है. जिस देश ने भारत पर 200 साल से ज्यादा समय तक शासन किया हो, उससे उसकी तुलना होने लगे, तो निश्चित ही इसे भारत की तरक्की से जोड़ कर देखना चाहिए.

ब्रिटेन में इन दिनों राजनीतिक उठापटक का दौर है. नये प्रधानमंत्री के कंधे पर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की मुख्य जिम्मेदारी है. बोरिस जॉनसन के कार्यकाल में अप्रैल 2022 में ब्रिटेन में बिजली और गैस के दाम में 35-50 फीसदी की बढ़ोतरी की गयी थी, जिससे आम लोगों पर भारी बोझ बढ़ा था. बाद में सरकार ने काउंसिल टैक्स में छूट देकर इसे कुछ कम करने की कोशिश की,

लेकिन जब तक लोगों को राहत मिलती, देश में राजनीतिक अस्थिरता का दौर आ गया. अब एक तरफ देश को नया प्रधानमंत्री मिल रहा है, तो दूसरी तरफ ब्रिटेन के लोग महंगाई और जीवनयापन के खर्चे में बढ़ोतरी की वजह से इतने परेशान हैं कि देश के अलग-अलग हिस्सों में ‘इनफ इज इनफ’ यानी अब बहुत हो चुका जैसे कैंपेन चल रहे हैं.

इसके केंद्र में है ब्रिटिश स्कूलों में मिड डे मील योजना. महंगाई के कारण कई स्कूलों ने बच्चों को मुफ्त खाना देने से इनकार कर दिया है. अगर हम इसी योजना की भारत के मिड डे मील योजना से तुलना करें, तो कई बातें साफ हो जाती हैं. जहां ब्रिटेन जैसा समृद्ध देश अपने स्कूली बच्चों को खाना देने में आनाकानी करने लगा है, वहीं भारत में ब्रिटेन की पूरी आबादी के दोगुना बराबर बच्चों को स्कूलों में हर रोज मुफ्त खाना दिया जाता है.

भारत सरकार ने मिड डे मील योजना को सफल रखने के लिए हर संभव प्रयास किये हैं और इसके लिए सांसदों को मिलने वाली भोजन सब्सिडी बंद कर दी गयी है. भारतीय संसद में इस सब्सिडी को खत्म कर सालाना 10 करोड़ से ज्यादा रुपये बचाये जा रहे हैं, लेकिन ब्रिटेन के आंकड़े बताते हैं कि वहां के सांसद अपने खाने पर मोटी सब्सिडी लेते हैं.

इतना ही नहीं, ब्रिटिश अखबार मिरर यूके में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटिश सांसदों ने पिछले छह सालों में 12 लाख किलो से ज्यादा भोजन फेंक दिया है और वह भी तब जब देश के करीब 20 लाख लोगों को इन दिनों में दोनों वक्त का खाना नसीब नहीं हो रहा है. ब्रिटेन में यह योजना पहली बार तब लागू हुई थी, जब भारत आजाद हुआ था, यानी 1947 में. बीच-बीच में इसे रोका जाता रहा और अस्सी के दशक में ब्रिटिश स्कूलों में मिड डे मील योजना की विधिवत शुरुआत की गयी थी,

लेकिन भोजन के नाम पर चिप्स और जंक फूड दिये जाने लगे. समय-समय पर उसका विरोध हुआ, लेकिन योजना चलती रही. साल 2005 के चुनाव में यह एक बड़ा मुद्दा बना और उसके बाद इस योजना में काफी सुधार दिखने लगा. कोविड के दौरान योजना स्थगित रही, लेकिन जब स्कूल खुले, तो यह उस तरह से सुचारु रुप से नहीं चल पाया, जैसे इसे चलना चाहिए. फिर जब कई स्कूल इसके बदले पैसे मांगने लगे, लोगों का विरोध सड़क पर आ गया.

कोरोना काल में सबसे पहले तत्कालीन ब्रिटिश चांसलर (वित्तमंत्री) ऋषि सुनक ने इस योजना का विरोध किया था. आम तौर पर मददगार छवि के सुनक के इस कदम पर उनके इलाके का एक रेस्तरां इतना नाराज हुआ कि उसने सुनक को आजीवन प्रतिबंधित करने की घोषणा कर दी.

जर्मनी से 18वीं शताब्दी के आखिरी दशक में शुरु हुई यह योजना आज कई देशों की शिक्षा नीति का मुख्य अंग है. ऐसे में ब्रिटेन जैसे शक्तिशाली देश में अचानक कुछ स्कूलों में इसे बंद करने का विरोध होना लाजिमी है, लेकिन उससे ज्यादा जरूरी है इस योजना की जरूरत को समझना और इसे लागू करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति होना. तमाम विरोधाभासों और बाधाओं के बावजूद भारत में यह योजना दशकों से सुचारु रूप से चल रही है.

इसकी चर्चा हमने इसलिए की, क्योंकि जब भी किसी देश की अर्थव्यवस्था में सुधार की बात होती है, तो सबसे पहले नजर उन योजनाओं पर जाती है, जिनमें आम लोगों को सुविधाएं मुफ्त मुहैया करायी जाती हैं. भारत में इन दिनों सदन से लेकर अदालत तक रेवड़ी कल्चर पर चर्चा है. तो क्या स्कूलों में बच्चों को मुफ्त खाना देना रेवड़ी कल्चर के अंतर्गत आता है, और क्या ब्रिटेन में ऐसा ही मान कर स्कूलों ने इसे बंद करने का प्रयास किया है और सरकार खामोश है? इस मामले से पर्दा जल्दी ही उठेगा,

जब नये प्रधानमंत्री का सुचारु रूप से कार्यकाल शुरू होगा और नये वित्तमंत्री को ऐसी तमाम योजनाओं को नये सिरे से एक बार फिर समझना होगा. ऐसी स्थिति में इतना तो तय है कि मिड डे मील जैसी योजनाओं को समझने के लिए ब्रिटेन के पास भारत जैसा मजबूत उदाहरण है, जहां रेवड़ी कल्चर पर अक्सर चर्चा होती है, लेकिन कोई भी मिड डे मील योजना को उस खांचे में नहीं रखता,

क्योंकि राजनेताओं से लेकर जनता तक और नौकरशाहों से लेकर अदालत तक सबको अहसास है कि दो जून की रोटी की जद्दोजहद कर रही अवाम के घरों से बच्चों को अगर शिक्षा के लिए प्रेरित करना है, तो उन्हें इस तरह की सुविधाएं मुहैया करानी होगी. ब्रिटेन में इस योजना के ठीक से नहीं चल पाने का हो रहा कड़ा विरोध यह भी साबित करता है कि देश की आर्थिक स्थिति को बेहतर करने के लिए और अधिक प्रयास किये जाने की जरूरत है.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें