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JKLF द्वारा कश्मीरी पंडितों की हत्या की याचिका पर सुनवाई नहीं करेगा SC, इनकार की बताई ये वजह

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अधिवक्ता आशुतोष टपलू की ओर से दायर याचिका में परिवार के सदस्यों की सुरक्षा, पुनर्वास और जांच और उन लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग की गई है, जो उनके पिता की हत्या में शामिल थे.

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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1989 के दौरान घाटी में जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) द्वारा कश्मीरी पंडितों की हत्या की जांच वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. यह याचिका अधिवक्ता आशुतोष टपलू के द्वारा दायर की गई है. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने याचिका पर सुनवाई करने से इनकार करते हुए कहा कि इस पर विचार नहीं किया जा सकता, क्योंकि अदालत में इस तरह की एक याचिका पहले ही दायर की जा चुकी है.

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जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने याचिकाकर्ता को वैकल्पिक उपायों का लाभ उठाने की स्वतंत्रता देते हुए कहा कि हम हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं. अदालत के इनकार के बाद याचिकाकर्ता और अधिवक्ता आशुतोष टपलू ने अपनी याचिका वापस ले ली. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका एक प्रमुख कश्मीरी पंडित और भाजपा के पूर्व उपाध्यक्ष टीका लाल टपलू के बेटे आशुतोष टपलू ने दायर की थी, जिन्हें उस समय जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के आतंकवादियों ने मार दिया था.

अदालत ने ‘वी द सिटिजन’ की याचिका को भी किया था खारिज

अधिवक्ता आशुतोष टपलू की ओर से दायर याचिका में परिवार के सदस्यों की सुरक्षा, पुनर्वास और जांच और उन लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग की गई है, जो उनके पिता की हत्या में शामिल थे. हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने 1990 के दशक के दौरान कश्मीरी पंडितों की हत्याओं की जांच की मांग करने वाले एनजीओ ‘वी द सिटिजन’ द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था. इसने उन लोगों के पुनर्वास की भी मांग की थी, जिन्हें कश्मीर घाटी से भागना पड़ा था. सर्वोच्च अदालत ने एनजीओ को केंद्र सरकार के समक्ष एक अभ्यावेदन पेश करने की स्वतंत्रता दी.

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वी द सिटीजन सरकार से की एसआइटी गठन की मांग

बता दें कि 1989-2003 के दौरान जम्मू-कश्मीर में हिंदुओं और सिखों के नरसंहार में कौन लोग शामिल थे? इन्हें किन लोगों से सहायता मिली? इन अपराधियों की पहचान के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन करने की मांग की गई है. ‘वी द सिटीजन’ नामक एक गैर सरकारी संगठन ने भारत सरकार के सामने 17 सितंबर को मांग रखी थी. एनजीओ ने भारत सरकार की ओर से गठित एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर आरोपियों पर मुकदमा चलाने की बात कही है. इन लोगों ने जम्मू-कश्मीर के उन हिंदुओं और सिखों की जनगणना करने की भी मांग की है, जो आज देश के विभिन्न हिस्सों में रहने को मजबूर हैं. इस एनजीओ ने भारत सरकार से अपील की है कि जनवरी 1990 में पलायन के बाद यहां हुई सभी तरह की संपत्ति की बिक्री को रद्द कर दिया जाए. चाहे वो धार्मिक, आवासीय, कृषि, वाणिज्यिक, संस्थागत, शैक्षिक या कोई अन्य अचल संपत्ति ही हो.

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