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Jharkhand Sabar Tribe News: जमशेदपुर के पास तामुकबेड़ा सबर टोला में एक महीने में सर्पदंश से दो सबर की मौत

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Jharkhand Tribe News: एक महीने पहले गुरुवारी सबर के पोता सुकू सबर को सांप ने काट लिया. उसकी मौत हो गयी. तामुकबेड़ा सबर टोला की बालिका सोरेन (55) की भी एक महीने पहले सर्पदंश से मौत हो गयी. करीब 8 महीने पहले गुरुवारी के पति और सुकू के दादा कंचन सबर की टीबी से मौत हो गयी थी.

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Jharkhand Tribe News: झारखंड की औद्योगिक नगरी और पूर्वी सिंहभूम के जिला मुख्यालय जमशेदपुर से करीब 21-22 किलोमीटर की दूरी पर बोड़ाम प्रखंड अंतर्गत एक सबर टोला है. नाम है तामुकबेड़ा सबर टोला. गांव में बिजली और पानी है. तीन दशक पहले सरकार ने मकान बनाकर दिया था, लेकिन अब उसकी छत ढह चुकी है. टूट चुकी है. एक महीने के भीतर यहां दो सबर की मौत हो चुकी है. दोनों मौतें सर्पदंश से हुई हैं.

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एक महीने में दो लोगों को सांप ने काटा

एक उम्रदराज महिला को सांप ने काट लिया, तो एक बच्चे की भी सर्पदंश से मौत हो गयी. इस टोला की गुरुवारी सबर अपने बेटे बिपिन सबर और उसकी पत्नी एवं बेटे के साथ घर के पीछे बने शौचालय में रह रही है. एक महीने पहले गुरुवारी सबर के पोता सुकू सबर को सांप ने काट लिया. उसकी मौत हो गयी. तामुकबेड़ा सबर टोला की बालिका सोरेन (55) की भी एक महीने पहले सर्पदंश से मौत हो गयी. करीब 8 महीने पहले गुरुवारी के पति और सुकू के दादा कंचन सबर की टीबी से मौत हो गयी थी.

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8 महीने में 3 सबर की हो गयी मौत

इस तरह बोड़ाम प्रखंड मुख्यालय से करीब 8 किलोमीटर दूर दलमा की तराई में बसे तामुकबेड़ा सबर टोला में 8 महीने में तीन सबर की मौत हो चुकी है. इस टोला में इस समय आदिम जनजाति के 11 परिवार निवास करते हैं. बिजली-पानी तो इनके टोले में है, लेकिन अन्य कोई सुविधा नहीं है. मुख्य सड़क से गांव में जाने के लिए पगडंडी है, लेकिन इस गांव में गाड़ी नहीं पहुंच सकती.

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टोले में आज तक न अधिकारी आया, न जनप्रतिनिधि

तामुकबेड़ा सबर टोला के लोग बताते हैं कि इस गांव में न तो कभी कोई अधिकारी पहुंचा, न ही कोई जनप्रतिनिधि उनकी सुध लेने के लिए आया. लुकान सबर को छोड़कर किसी को भी पेंशन नहीं मिलती. हालांकि, 18 साल की उम्र के बाद हर सबर पेंशन पाने का हकदार है. सरकार इन्हें सिर्फ चावल और नमक देती है. बाकी किसी सरकारी योजना का लाभ इन्हें नहीं मिल रहा.

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लकड़ी चुनकर लाते हैं, तो मिलते हैं 20-3- रुपये

पांचवीं पास लव सबर बताता है कि रोजी-रोटी जंगल के भरोसे ही है. एक दिन लकड़ी चुनकर लाते हैं, तो बदले में 30 रुपये मिलते हैं. उसी से गुजारा करते हैं. आसपास में जो थोड़े-बहुत खेत हैं, उसमें अनाज उगा लेते हैं. घर के ही पास की जमीन पर बैंगन और खेक्सा की खेती कर लेते हैं. चिकन और मीट तो हमें नसीब नहीं होता है, लेकिन बारिश के सीजन में घोंघा का मांस जरूर खा लेते हैं.

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