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पश्चिमी सिंहभूम जिले के चक्रधरपुर पुरानी बस्ती में एकरूपी आदि दुर्गा की पूजा 1857 से हो रही है. वहीं दुर्गापूजा कमिटी की ओर से यहां वर्ष 1912 से मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जा रही है.
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सबसे पहले चक्रधरपुर-पोड़ाहाट के महाराजा अर्जुन सिंह और उनके पूर्वज यह पूजा अपने राजमहल में करते थे. 1912 में इस पूजा को आयोजित करने का दायित्व आम जनता को सौंपा गया. तब से पुरानीबस्ती में आदि दुर्गा पूजा कमेटी यहां पूजा करती आ रही है.
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इस 110 साल पुराने दुर्गापूजा की सबसे प्रमुख पहचान विजयदशमी के दिन मां दुर्गा की प्रतिमा के विसर्जन के वक्त विशाल मशाल जुलूस निकाला जाना है. आदि काल की तरह हाथों में मशाल लिए सैकड़ों लोग मां दुर्गा की विशाल प्रतिमा को कंधे पर उठाकर जय दुर्गे के नारों के साथ विसर्जन जुलूस निकालते हैं.
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कोरोना जैसी वैश्विक महामारी भी राजघराने की परंपरा को बदल नहीं सकी. उस दौरान भी वर्षों पुरानी परंपरा का निर्वाह किया. सिंहभूम में मां दुर्गा की आराधना और पूजा का इतिहास सदियों पुराना है. सबसे आकर्षक और ऐतिहासिक पूजा चक्रधरपुर की पुरानाबस्ती की श्रीश्री आदि पूजा समिति की मूर्ति विसर्जन की परंपरा है.
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यहां करीबन पांच टन की प्रतिमा को 120 लोगों द्वारा कंधों में ढोकर विसर्जन करते हैं. जहां पर प्रतिमा की ऊंचाई 10 से 12 फीट रहती है. आदि दुर्गा पूजा समिति का विसर्जन जुलूस अपने आप में अनोखा है, जिसे देखने के लिए दूर दराज के हजारों लोग विजयादशमी में पहुंचते हैं.
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मशाल जुलूस महाशक्तिमयी मां दुर्गा का प्रतीक है. यह परंपरा आज भी अनवरत जारी है. इसमें लोग प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन की झलक भी देखते हैं. औपचारिक रूप से सन 1912 में नगर की जनता को पूजा अर्चना का भार सौंपे जाने के काफी पहले राजघराने की स्थापना के लगभग आठ सौ वर्ष पूर्व से ही यहां आदि शक्ति के रूप मां दुर्गा की पूजा विधिपूर्वक की जा रही है.
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1857 ई में अंग्रेज सरकार के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल संपूर्ण देश भर की भांति पोड़ाहाट क्षेत्र में भी उठा था. उस समय पोड़ाहाट नरेश महाराजा अर्जुन सिंह इस क्षेत्र में स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे. उस दौरान अंग्रेजों के साथ संघर्ष कर रहे प्रथम स्वतंत्रता सेनानी जग्गू दीवान समेत अन्य 42 लोगों को अंग्रेजों ने पकड़ कर फांसी दे दी थी. इस बीच महाराजा अर्जुन सिंह कई महीनों से भूमिगत हो गये थे.
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चक्रधरपुर पुरानाबस्ती निवासी सदानंद होता ने बताया कि दुर्गा पूजा कमेटी का विजयदशमी के दिन मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन सबसे अद्भुत होता है. आदि काल की तरह हाथों में मशाल लिए सैकड़ों लोग मां दुर्गा की विशाल प्रतिमा को कंधे पर उठाकर जय दुर्गे के नारों के साथ विसर्जन जुलूस निकालते हैं. किंवदन्ती है कि यह परंपरा 1857 ई. में ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान महाराजा अर्जुन सिंह ने शुरू की थी.