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Maja Ma Review: माधुरी दीक्षित की फिल्म मजा मा..एक निराशाजनक अनुभव

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Maja Ma Review in Hindi: निर्देशक आनंद तिवारी की अमेज़न प्राइम वीडियो पर बीते साल आयी वेब सीरीज बंदिश बैंडिट भेड़चाल से दूर एक उम्दा सुरीली सीरीज थी. जिसने कई मायनों में ओटीटी पर नए मानकों को स्थापित किया था. जिसके बाद से उनकी हालिया रिलीज फ़िल्म मज़ा मा से भी उम्मीदें बढ़ गयी थी.

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फ़िल्म-मज़ा मा

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निर्देशक-आनंद तिवारी

कलाकार-माधुरी दीक्षित,गजराज राव,बरखा सिंह,रजत कपूर,शीबा,रितिक भौमिक, सिमोन सिंह और अन्य

रेटिंग-डेढ़

प्लेटफार्म-अमेज़न प्राइम वीडियो

निर्देशक आनंद तिवारी की अमेज़न प्राइम वीडियो पर बीते साल आयी वेब सीरीज बंदिश बैंडिट भेड़चाल से दूर एक उम्दा सुरीली सीरीज थी. जिसने कई मायनों में ओटीटी पर नए मानकों को स्थापित किया था. जिसके बाद से उनकी हालिया रिलीज फ़िल्म मज़ा मा से भी उम्मीदें बढ़ गयी थी. आनंद तिवारी की इस फ़िल्म में माधुरी दीक्षित ,गजराज राव के साथ साथ कहानी में परिवार है.उसके बीच तनाव, जेनेरेशन गैप है इसके साथ समलैंगिकता का मुद्दा और सेक्स पर चर्चा भी है लेकिन इन सबके बावजूद यह फ़िल्म एक निराशाजनक अनुभव साबित होती है क्योंकि फ़िल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले बहुत कमजोर है.

ट्रेलर से बिल्कुल अलग है फ़िल्म

फ़िल्म की कहानी की बात करें तो फ़िल्म ली शुरुआत यूएस में होती है. तेजस (ऋत्विक भौमिक) अपनी गर्लफ्रेंड ईशा(बरखा सिंह) के सुपर रिच मां पापा को इम्प्रेस करने में कामयाब हो चुका है कि वह उसकी बेटी से सच्चा प्यार करता है. पैसों या ग्रीन कार्ड के लिए वह उससे प्यार में नहीं है. ईशा की फैमिली अब तेजस की फैमिली से मिलने भारत आती है ताकि तेजस और ईशा की शादी हो सके लेकिन तेजस की मम्मी पल्लवी (माधुरी दीक्षित)का एक सीक्रेट सभी के सामने आ जाता है.जो सिर्फ तेजस और ईशा की शादी ही नहीं उनके पूरे परिवार पर सवालिया निशान लगा जाता है . क्या होगा पल्लवी और उसके परिवार का यह आगे की कहानी है.फ़िल्म का ट्रेलर जब रिलीज हुआ था यह फेस्टिवल सीजन वाली एक पारिवारिक फ़िल्म लग रही थी लेकिन फ़िल्म ट्रेलर से बिल्कुल अलग है.फ़िल्म में समलैंगिक शब्द का इस्तेमाल तक नहीं हुआ है और पूरी कहानी उसी के इर्द-गिर्द घूमती है.

बहुत खराब और रिग्रेसिव है ट्रीटमेंट

फ़िल्म लेस्बियन के मुद्दे को उठाती है जो अब तक कई फिल्मों में उठाया जा चुका है .फ़िल्म की कहानी आज के दौर में सेट भी है लेकिन उसका ट्रीटमेंट बीते दौर की तरह किया गया है. जिससे मामला पूरी तरह से बोझिल हो गया है. बीते ढाई दशक से समलैंगिक का मुद्दा सिनेमा में दिखाया जा रहा है.स्वीकृति से आगे के मुद्दे और पहलुओं को अब कहानी में जोड़ने की ज़रूरत है.फ़िल्म के किरदार बहुत ही खराब तरीके से लिखे गए हैं.शीबा चड्ढा,रजत कपूर और बरखा सिंह जैसे अच्छे कलाकारों का चित्रण बेहद कमजोर है.अमेरिका से हैं तो क्या अजीबोगरोब एक्सेंट देना ज़रूरी था. जिससे इतने प्रभाशाली कलाकार होने के बावजूद स्क्रीन पर इन्हें देखना किसी टॉर्चर से कम नहीं रह जाता है.

एक वक्त में शीबा का किरदार पंजाबी भी बोलने लगता है और उस वक़्त एक्सेंट गायब हो जाता है. किरदार ही नहीं बल्कि फ़िल्म के सिचुएशन भी अजीबोगरोब है. किसी की सच्चाई पता करनी है तो लाई डिटेक्टर टेस्ट से फ़िल्म में उसको गुजरना पड़ता है.यह पहलू किसी टॉर्चर टेस्ट की तरह दर्शकों के लिए है. ऐसा ही कुछ फ़िल्म में समलैंगिकता को दिखाने के लिए जिन रेफरेंस पॉइंट का इस्तेमाल किया गया है.वह भी बेहूदा से हैं. फ़िल्म के ट्रेलर में फ़िल्म कॉमेडी फैमिली ड्रामा की फील लिए थे लेकिन फ़िल्म में मुश्किल से एक या दो मौकों पर ही हंसी आ पायी है.

इस फ़िल्म को म्यूजिकल बताया गया था लेकिन म्यूजिक के मामले में भी यह फ़िल्म कमतर ही रह गयी है. हां फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी और कॉस्ट्यूम डिपार्टमेंट ज़रूर कुछ अच्छा फ़िल्म में जोड़ गए हैं.

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औसत रह गया कलाकारों का अभिनय

अभिनय की बात करें फ़िल्म की कास्टिंग में अभिनय के कई भरोसेमंद नाम जुड़े हैं लेकिन कहानी,स्क्रीनप्ले और संवाद तीनों ही पहलू जब किसी फिल्म के कमजोर रह जाते हैं तो बड़े से बड़े एक्टर का अभिनय भी फ़िल्म को एंगेजिंग नहीं बना सकता है.यह बात इस फ़िल्म को देखते हुए शिद्दत से महसूस की जा सकती है.माधुरी ,दीक्षित,गजराज राव और सिमोन सिंह ने अपने हिस्से की भूमिका ठीक निभायी है. इसकी वजह इन तीन किरदारों को कहानी में थोड़े ढंग से लिखा गया है. बाकी के किरदार कहानी में कमज़ोर रह गए हैं.

देखें या ना देखें

यह एक बेहद कमजोर फ़िल्म है.

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