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अमेरिका में भारतीयों पर बढ़ते हमले

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भारतीयों के साथ भेदभाव की एक बड़ी वजह अमेरिका में उनका सफल होना भी है. अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों की औसत आय पचासी हजार डॉलर सालाना है, जबकि बाकी अमेरिका की औसत सालाना आय चालीस हजार डॉलर है.

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अमेरिका में पिछले कुछ सालों तक भारतीय मूल के लोगों या भारत से काम करने आये लोगों को मॉडल माइनॉरिटी या आदर्श अल्पसंख्यक कहा जाता था. आदर्श इस अर्थ में कि अमेरिका आकर नौकरी करना, पैसे कमाना और अमेरिकी रंग में रंग जाना. साठ के दशक में जब अमेरिकी नियमों में बदलाव हुआ, तो बड़ी संख्या में भारत से लोगों का अमेरिका आना हुआ. उस दौरान आने वाले लोगों में खास तौर पर वे लोग थे, जो विज्ञान और मेडिसिन के क्षेत्र से जुड़े थे.

उन्हें यहां अच्छी नौकरियों पर बुलाया गया और उन्हें यहां बेहतर जिंदगी मिली. नब्बे के दशक में सूचना प्रौद्योगिकी में आयी उछाल के बाद बड़ी संख्या में भारतीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर अमेरिका आये. धीरे-धीरे अमेरिका के पश्चिमी इलाके यानी कैलिफोर्निया और आसपास के राज्यों में भारतीय लोगों की बड़ी आबादी बसी. पूर्वी तट, जहां कंप्यूटर से जुड़ी कंपनियों का काम था, पर भी भारतीय इंजीनियर बसते चले गये.

साठ और सत्तर के दशक में भारतीयों के प्रति नस्ली भेदभाव की घटनाएं बहुत कम हुआ करती थीं, क्योंकि साठ के दशक में अमेरिका में सिविल राइट्स आंदोलन चल रहा था. सत्तर व अस्सी के दशक तक भारतीय लोगों की संख्या भी कम थी. नब्बे के दशक में जब भारतीयों की संख्या बढ़ी, तो उनके खिलाफ भेदभाव की छिटपुट घटनाएं घटने लगीं. इसका एक कारण यह भी था कि नब्बे के दशक तक भारतीय मूल के लोगों की एक नयी पीढ़ी खड़ी हो गयी थी, जो बस दिखने में भारतीय लगती थी, पर वह यहीं पैदा हुई और पली-बढ़ी थी.

इस पीढ़ी ने भेदभाव का सामना किया और अपने साथ होने वाले भेदभाव की रिपोर्ट भी करने लगे. इसी दौरान, 2001 में 11 सितंबर की घटना हुई तथा अरबी और भारतीय लोगों, खास कर सिक्खों, के साथ मारपीट की कई घटनाएं हुईं. बीसेक साल बीतने पर ऐसी घटनाएं कम हुईं, लेकिन अमेरिका में राइट विंग के उभार के साथ एक बार फिर भारतीय लोगों के साथ भेदभाव और नस्ली हिंसा की खबरों में तेजी आयी हैं. पिछले दिनों कैलिफोर्निया राज्य में एक ही परिवार के चार सदस्यों की हत्या हुई है. इस मामले में गिरफ्तारी हुई है और पुलिस का कहना है कि हत्यारा मानसिक रूप से परेशान है, लेकिन इसकी जड़ में नस्ली भेदभाव होने को नकारा नहीं जा सकता है.

वर्ष 2017 में ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के कुछ समय बाद ही केन्सास के एक रेस्तरां में एक भारतीय युवक की हत्या कर दी गयी थी और वहां ऐसे नारे लगे थे कि बाहरी लोग हमारे देश से निकल जाओ. ऐसी घटनाएं आम तो नहीं हुईं, लेकिन गाली-गलौज, मारपीट की घटनाएं, त्वचा के रंग को लेकर टिप्पणियां आदि होती रही हैं. वर्ष 2020 में भारतीय लोगों के बीच हुए एक सर्वे में यह बात सामने आयी है कि हर दो में से एक भारतीय को अपने रंग के कारण भद्दी टिप्पणियों या भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

करीब बारह सौ भारतीयों के बीच हुए इस इंडियन-अमेरिकन एटीट्यूड सर्वे में कई चौंकाने वाली बातें सामने आयी हैं. सर्वे करने वाले बताते हैं कि सत्तर और अस्सी के दशक में न्यूयॉर्क में भारतीयों के साथ मारपीट की कई घटनाएं हुईं, लेकिन उन्हें मीडिया में बड़ा मुद्दा नहीं बनाया गया. इस कड़ी में 1987 में सिटी बैंक के एक भारतीय अधिकारी की हत्या भी शामिल है.

इस सर्वे के अनुसार करीब 31 प्रतिशत लोगों का मानना था कि भारतीयों के खिलाफ भेदभाव एक बड़ा मुद्दा है, जबकि बाकी लोगों के अनुसार इसे एक छोटी समस्या के रूप में देखा जाना चाहिए. हालांकि सर्वे में हिस्सा लेने वाले हर दो में से एक आदमी का कहना था कि पिछले बारह महीनों में उन्होंने कम से कम एक बार भेदभाव झेला है अपने रंग के कारण. रंग के अलावा भारतीय लोगों के साथ भेदभाव की वजह उनका धर्म, तौर-तरीके और लिंग रहा है. सर्वे के अनुसार भारतीय मुस्लिम महिलाओं को सबसे अधिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है और ऐसा करने वाले ज्यादातर गैर भारतीय होते हैं.

भारतीयों के साथ भेदभाव की एक बड़ी वजह अमेरिका में उनका सफल होना भी है. अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों की औसत आय पचासी हजार डॉलर सालाना है, जबकि बाकी अमेरिका की औसत सालाना आय चालीस हजार डॉलर है. इसका कारण यह है कि यहां अधिकतर भारतीय अच्छे पेशों में अच्छे वेतन पर आये और फिर उनके बच्चों ने डॉक्टरी, इंजीनियरिंग या ऐसे पेशों को अपनाया, जिनमें अधिक पैसा था.

आम तौर पर भारतीय लोगों के बारे में राय है कि वे अपने बच्चों को कॉलेज की शिक्षा जरूर देते हैं और उनके बच्चे पढ़ने-लिखने में अच्छे होते हैं. भारतीय लोगों में अपने ही लोगों के साथ रहने का एक चलन भी उन्हें अमेरिकी समाज से थोड़ा अलग-थलग करता है. अमेरिका के हर शहर में जहां भी भारतीय लोगों की संख्या अधिक है, वे एक ही इलाके में रहना पसंद करते हैं, जिसका कारण अच्छे स्कूल और जान-पहचान के लोगों का पड़ोसी होना बताया जाता है. ऐसे में भारतीय बच्चों और परिवारों का अमेरिकी मूल के लोगों के साथ उठना-बैठना या उस संस्कृति में घुलना अच्छे से नहीं हो पाता.

इन सब कारणों के बीच अमेरिका में जब से राइट विंग राजनीति का उभार हुआ है, तो ऐसी राजनीति को सपोर्ट करने वाले ये भी मानने लगे हैं कि भारतीय लोग सारी अच्छी नौकरियां ले लेते हैं और उनके लिए कम विकल्प बचते हैं. हालांकि यह बहुत ही गलत धारणा है, लेकिन जैसा कि होता है, राइट विंग की राजनीति में चीजों का सामान्यीकरण कर दिया जाता है.

इस सरलीकरण के कारण आम अमेरिकी के मन में भारतीय लोगों के लिए नफरत पैदा होने की आशंका बढ़ गयी है, जो गाली गलौज, मारपीट या यहां तक कि हत्या के रूप में तब्दील होती दिखती है. यह दुखद है कि नस्ली हिंसा के मामले में जहां अमेरिकी मीडिया अश्वेत लोगों के खिलाफ होने वाले भेदभाव को अत्यंत गंभीरता से लेता है, वहीं भारतीय लोगों के साथ होने वाले भेदभाव पर मीडिया में वैसी तत्परता नहीं दिखती है.

इसका एक कारण भारतीयों की संख्या का कम होना हो सकता है. कैलिफोर्निया में हुए हालिया हत्याकांड के बाद उम्मीद की जा रही है कि भारतीयों के खिलाफ हो रहे भेदभाव और हिंसा की घटनाओं को भी मीडिया गंभीरता से लेगा. जब ऐसा होगा, तो इस तरह की घटनाओं में निश्चित रूप से कमी आयेगी.

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