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My Mati: मुंडारी भाषा साहित्य की समृद्धि में मुंडा विद्वानों का यह है योगदान

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मुंडारी भाषा का प्राचीन और गौरवशाली इतिहास है. मौखिक और कंठ में सुरक्षित मुंडारी भाषा में इतिहास, भूगोल, शासन-प्रशासन, समाज, संस्कृति, आर्थिक, धर्म दर्शन के सभी तत्व मौजूद हैं. प्राचीनकाल में यह सशक्त रूप में थी. वर्त्तमान में भी शहरों को छोड़कर ज्यादा प्रभावित नहीं हुआ है.

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My Mati: ऐतिहासिक दृष्टिकोण से पाषाणकालीन सभ्यता ऑस्ट्रिक वर्ग के मुंडाओं की देन है. मुंडारी भाषा का प्राचीन और गौरवशाली इतिहास है. मौखिक और कंठ में सुरक्षित मुंडारी भाषा में इतिहास, भूगोल, शासन-प्रशासन, समाज, संस्कृति, आर्थिक, धर्म दर्शन के सभी तत्व मौजूद हैं. प्राचीनकाल में यह सशक्त रूप में थी. वर्त्तमान में भी शहरों को छोड़कर ज्यादा प्रभावित नहीं हुआ है.

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मौखिक से शिष्ट साहित्य देने का आरंभ लगभग वर्ष 1830 है. तमाड़ राजदरबार में गायक के रूप में कार्यरत गौर सिंह शिखर के पुत्र बुधनाथ शिखर के मुंडारी गीतों की रचना से आरंभ होता है. गीतों का विषय रामायण एवं महाभारत के पात्रों का चरित्र चित्रण. गीतों से प्रसिद्धि के कारण बुधनाथ शिखर से बुदुबाबु हुए.

वर्ष 1844-45 के आसपास छोटानागपुर में अंग्रेज ईसाई मिशनरियों का आगमन हुआ. 1851 में पहली बार दो मुंडा व्यक्ति ने ईसाई धर्म को अपनाया. मंगता मुंडा और बांदया मुंडा, दोनों का नाम परिवर्तित कर ख्रीस्तानंद और ईश्वरदत्त रखा गया. शिक्षा, चिकित्सा, सेवा और धर्म प्रचार हेतु काफी कार्य किये गये. मुंडारी भाषा का गहन अध्ययन किया गया. बाइबल का अनुवाद मुंडारी में किया गया. ‘मुंडारी ग्रामर एंड एक्सरसाइज’ पुस्तक निर्मित हुई. प्रचार के विभिन्न माध्यमों में मुंडारी भाषा को शामिल किया गया. मुंडारी भाषा शिष्ट रूप में परिणत होने लगी. फादर जॉन हॉफमैन के अगुवाई में ‘इन्साइक्लोपीडिया मुंडारिका’ वृहत्त कोष का निर्माण हुआ. बुरमा गांव के मेनस ओड़ेया, रूफूस होरो, मुरहू, सहदेव चुटिया पुर्ति(ओटोंगा गांव), दानियल और जोसेफ लोंकाटा गांव के, ये सभी इन्साइक्लोपीडिया मुंडारिका वृहत्त शब्दकोष निर्माण के अग्रणी सहयोगी थे. मुंडारी शब्दों का संकलन, उसका व्यावहारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक उपयोग पर वृहत्त ज्ञान एकत्रित किया गया.

उन दिनों मेनस ओड़ेया जागरूक और शिक्षित व्यक्ति थे. साहित्य की रचना करते थे. मेनस ओड़ेया ने ‘सिड.बोंगा ओड़ो: एटा: एटा: बोंगा को’ पुस्तक लिखी. ‘मतुराअ कानि’ वृहत्त मुंडारी उपन्यास की रचना मुंडारी भाषा में की.

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1947 के बाद मुंडा समुदाय के कई रचनाकार उभरे. स्वतंत्रता सेनानी भइयाराम मुंडा ने ‘दंड़ा जमाकन होड़ो कानि को’ लिखी. ‘बांसुरी बज रही’, मुंडा लोककथाएं’ पुस्तक, जगदीश त्रिगुणायत के नेतृत्व में मुंडा समुदाय के जागरूक व्यक्तियों के सहयोग से निर्मित हुआ. प्रमुख नाम ये हैं– भइयाराम मुंडा, मानकी सिंहराज सिंह, बलदेव मुंडा, मानकी जूरन सिंह, मरकस होरो, राम सिंह मुंडा, हाथी राम मुंडा, कुंजल सिंह टुटी, साउ मुंडरी, खुदिया पाहन, दुलायचंद्र मुंडा, दसाय पुर्ती, गोमेश्री मानकी, बलिराम नाग, सुंदर सिंह हस्सा, कांडे मुंडा, एतवारी देवी, सुनंदा देवी, मुचिराय मुंडा, बेंजामिन डांगवार, चमरा मुंडा, रामदयाल मुंडा, कडि़या सारू, बिनोद बरय नाग, लेमसा टुटी, सोहराई मुंडा, भीमसिंह मुंडा, बाघराय मुंडा, रामेश्वर मांझी, हरिसिंह मुंडा, लेंगा टुटी, रामदी मुंडू, रूपचंद मुंडा, अहिल्या कुमारी, उषा कुमारी आदि थे. मुंडारी भाषा साहित्य को वर्त्तमान परिस्थिति में संरक्षण, संवर्द्धन एवं प्रोत्साहन की आवश्यकता है.

(सहायक प्राध्यापक, स्नातकोत्तर मुंडारी विभाग, रांची विवि, रांची)

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