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Exclusive: झारखंड के फिल्ममेकर कर रहे बॉलीवुड-साउथ की नकल, अपनी संस्कृति को भूले: नंदलाल नायक

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नंदलाल नायक पिछले कई सालों से झॉलीवुड से जुड़े हुए हैं. उनका कहना है कि हमारे सिनेमा में कभी हम झारखंड की असली खूबसूरती को सामने ही नहीं ला पाये. हम नकल कर रहे हैं. हवा जिस ओर चली, हम भी उसी ओर बढ़ते जा रहे हैं. हम खुद नहीं जानते कि हम कब अपनी जड़ों से दूर होते चले गये.

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झारखंड के स्थापना दिवस से पहले हम आपको प्रदेश के जाने-माने डायरेक्टर और म्यूजिक कंपोजर हैं नंदलाल नायक से मिलवाने जा रहे हैं. इस वक्त वे बड़े बजट की एक फिल्म पर काम कर रहे हैं. खासे व्यस्त हैं. इस फिल्म की शूटिंग देश के कई लोकेशंस पर होने वाली है. सच्ची घटना पर आधारित इस फिल्म में 2,200 लोगों ने काम किया है. नंदलाल नायक ने इस फिल्म के इसके बारे में ज्यादा जानकारी साझा नहीं की है. झारखंड की स्थापना के 22 साल में प्रदेश में कला और संस्कृति के क्षेत्र में क्या बदलाव हुए हैं या किस तरह के बदलाव की जरूरत है, उस पर श्री नायक ने प्रभात खबर के साथ लंबी बातचीत की.

झारखंड की असली खूबसूरती को सामने ही नहीं ला पाये

नंदलाल नायक पिछले कई सालों से झॉलीवुड से जुड़े हुए हैं. उनका कहना है कि हमारे सिनेमा में कभी हम झारखंड की असली खूबसूरती को सामने ही नहीं ला पाये. हम नकल कर रहे हैं. हवा जिस ओर चली, हम भी उसी ओर बढ़ते जा रहे हैं. हम खुद नहीं जानते कि हम कब अपनी जड़ों से दूर होते चले गये. हमारे पास कोई मॉडल भी तो नहीं है, जिसके अनुसार हम चल सकें. हम साउथ सिनेमा की बात करते हैं. उनकी फिल्मों में माई-माटी और भाषा है. वो उसे बरकरार रखते हैं. हम साउथ की नकल कर रहे हैं, बॉलीवुड की नकल कर रहे हैं.

संस्कृति का जमकर बखान करते हैं

उन्होंने आगे कहा, ‘दक्षिण की फिल्मों से या बॉलीवुड की फिल्मों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं. लेकिन, हम सीख नहीं रहे. उसका अंधानुकरण कर रहे हैं. दक्षिण की फिल्मों में देखेंगे कि वे अपनी सभ्यता और संस्कृति का जमकर बखान करते हैं. उस पर गौरव महसूस करते हैं. दूसरी तरफ, हम उनकी देखादेखी तो करते हैं, लेकिन अपनी संस्कृति को उस मजबूती के साथ फिल्मों में पेश नहीं करते, जिस पर हमें गर्व हो सके. हम अपनी संस्कृति को बस छूकर निकल जाते हैं.’

पलायन बढ़ेगा, तो लोग संस्कृति से दूर होंगे ही

यह पूछने पर कि इसमें गलती किसकी है, नंदलाल नायक कहते हैं कि इसमें किसी की गलती नहीं है. हमारे युवाओं को इसके बारे में ज्यादा जानकारी ही नहीं है. राज्य से लोग पलायन कर रहे हैं, तो वे संस्कृति से तो दूर जायेंगे ही. जब वे अपनी जड़ों से दूर चले जायेंगे, जहां वे रहेंगे, वहां की संस्कृति में रच-बस जायेंगे, तो फिर वे अपनी संस्कृति के बारे में किसी को कैसे बता पायेंगे?

कैसे बदलाव लाया जा सकता है

नंदलाल नायक कहते हैं कि सिनेमा के जरिये हमें अपनी पहचान को सामने लाना होगा. हमें खुद से प्यार करना होगा. अपने लोगों से प्यार करना होगा. हमारी संस्कृति की समृद्ध विरासत को सामने लाना होगा. उससे नयी पीढ़ी की पहचान करानी होगी. किसी की नकल करने की जरूरत नहीं है. हमें खुद को साबित करने की भी जरूरत नहीं है. नागपुरी में सुबह से शाम तक कई तरह की राग-रागिनी है, लेकिन ‘धक चिक धक चिक’ और ‘डुबक डुबा’ में हम अपनी राग-रागिनी को भूलते जा रहे हैं. ओरिजनल म्युजिक तो सामने आ ही नहीं पा रही है. यहां ‘डुबक डुबा’ के अलावा कुछ नहीं दिखता. हमारे पूर्वजों ने इसे संभाल कर रखा है. युवा पीढ़ी को इस बारे में बताने की जिम्मेदारी हमारी है.

Also Read: ”अखरा कर कोना” से भाषा- संस्कृति बचाने में जुटे नंदलाल नायक
सरकार के पास कोई जादू की छड़ी नहीं

सिनेमा में सरकार के योगदान के बारे में पूछने पर नंदलाल नायक स्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि सरकार के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है. संस्कृति को बचाने की जिम्मेदारी हमारी है. राज्य के नागरिकों की है. कलाकारों की है. हमलोगों को सामने आना होगा. किसी को रेडिमेड कुछ नहीं मिलता. अगर हम सरकार से कोई मदद चाहते हैं, तो इसके लिए भी हमें कड़ी मेहनत करनी होगी. फिर हमें कुछ मिलता है, तो वो बोनस होगा. हमारी युवा पीढ़ी जिस तरह से स्मार्ट एजुकेशन ले रहे हैं, वैसे ही अपने अस्तित्व को भी संभालकर रखना होगा. किसी से उम्मीद नहीं करना है कि कौन क्या करेगा.

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