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Vivah Panchami: 28 नवंबर को है विवाह पंचमी, ऐसे करने से सुखमय होगा दांपत्य

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Vivah Panchami: राम-सीता की जोड़ी में प्रेम व शक्ति का संतुलन था. इस उत्सव को खासतौर से अयोध्या और जनकपुर सहित मिथिलांचल में अत्यंत भव्यता से मनाया जाता है. पूर्ण भक्ति व समर्पण के साथ विवाह पंचमी अनुष्ठान को संपन्न करने की परंपरा है.

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Vivah Panchami: हिंदू धर्म में मार्गषीर्ष शुक्ल पक्ष की पचंमी तिथि का खास महत्व है. इसी पावन तिथि पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और जनक दुलारी माता सीता का विवाह जनकपुर धाम में संपन्न हुआ था. इस बार विवाह पंचमी सोमवार, 28 नवंबर को है. राम-सीता के विवाह को अलौकिक माना जाता है, जहां प्रेम व शक्ति का संतुलन था. जब भी दांपत्य जीवन की बात आती है, वहां राम-सीता की आदर्श जोड़ी की उपमा अवश्य दी जाती है.

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इस उत्सव को खासतौर से अयोध्या और नेपाल स्थित जनकपुर सहित मिथिलांचल में अत्यंत भव्यता से मनाया जाता है. इस दिन रामायण के बालकांड का पाठ करने की परंपरा है. इस दिन भक्तों द्वारा पूर्ण अनुग्रह, भक्ति व समर्पण के साथ इस अनुष्ठान को संपन्न करने की परंपरा है. कहते हैं कि जो इस दिन राम और सीता का विवाह अनुष्ठान, पूजा-पाठ, करता है, उनके दांपत्य जीवन की हर परेशानियों का अंत होता है. कुंवारी कन्याएं सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए इस दिन व्रत रखकर सीता-राम की आराधना करती हैं. हालांकि हिंदू धर्म में इस दिन शादी-ब्याह की मनाही है, खासकर मिथिलांचल और नेपाल में इस दिन विवाह नहीं करने की परंपरा है. दरअसल, माता सीता का वैवाहिक जीवन दुखद रहा था, पग-पग में उन्हें पीड़ा झेलनी पड़ी. शादी के बाद 14 साल तक उन्होंने पति संग वनवास में गुजारे. इसी वजह से लोग विवाह पंचमी के दिन विवाह करना उचित नहीं मानते.

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पौराणिक मान्याताओं के अनुसार, माता सीता का जन्म धरती से हुआ. कहा जाता है कि राजा जनक हल जोत रहे थे, तब उन्हें एक बच्ची धरती के गोद से मिली और उसे वे अपने राजमहल में लाये व पुत्री के रूप में लालन-पालन किया. मान्यता है कि माता सीता खेल-खेल में एक बार मंदिर में रखे भगवान शिव के धनुष को उठा लिया था. उस धनुष को भगवान परशुराम के अलावा किसी ने नहीं उठाया था. ऐसा देख उसी दिन राजा जनक ने निर्णय लिया कि वे अपने पुत्री का विवाह उसी के साथ करेंगे, जो इस धनुष को उठा पायेगा. आखिरकार सीतास्वयंवर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने एक बार में ही धनुष को उठा लिया तथा जैसे ही प्रत्यंचा चढ़ाने लगे, धनुष टूट गया. तत्पश्चात माता सीता ने उनके गले में वरमाला डाल दी, फिर विवाह संपन्न हुआ. मान्यता है कि सीता ने जैसे ही राम के गले में वर माला डाली, तीनों लोक खुशी से झूम उठा था. यही वजह है कि विवाह पंचमी के दिन आज भी धूमधाम से भगवान राम और माता सीता का गठबंधन कर विवाह संपन्न कराया जाता है.

पूजन-विधान

  • विवाह पंचमी के दिन प्रात: उठकर स्नान आदि से निवृत होकर श्रीराम विवाह का संकल्प लें.

  • पूजा स्थान पर श्रीराम और माता सीता की प्रतिमा स्थापित करें.

  • इसके बाद भगवान राम को पीले वस्त्र और माता सीता को लाल रंग के वस्त्र अर्पित करें.

  • इसके बाद बालकांड में विवाह प्रसंग का पाठ करें.

  • साथ ही साथ ‘ओम् जानकीवल्लभाय नमः’ मंत्र का 108 बार जाप करें.

  • इसके बाद माता सीता और श्रीराम का गठबंधन कर उनकी आरती करें.

  • अब भगवान को भोग लगाएं और पूरे घर में प्रसाद बांटकर स्वयं ग्रहण करें.

  • पूजन के बाद गांठ लगे वस्त्र को अपने पास सुरक्षित रख लें.

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