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नयी बहू के साथ ससुराल वाले कैसे आएं पेश, न लें परीक्षा, बल्कि दें साथ…

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बहू भी तो बेटी समान होती है. गर ससुराल वाले नये परिवेश में नयी बहू की ‘परवरिश’ की जिम्मेदारी सही ढंग से निभाते हैं, तो बहू भी जल्द ही अपने इस नये परिवार को दिल से अपना लेती है.

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‘शादी’ का नाम सुनते ही एक लड़की के मन में कई ख्याल आते हैं. नये वैवाहिक जीवन को लेकर उसके मन में कई उम्मीदें और शंकाएं होती हैं. भारतीय समाज में एक लड़की को बचपन से वयस्क होने तक कई बार बताया जाता है कि किस तरह एक दिन उसकी शादी हो जायेगी और उसकी सारी जिंदगी बदल जायेगी. पर बहू भी तो बेटी समान होती है. अगर ससुराल वाले नये परिवेश में नयी बहू की ‘परवरिश’ की जिम्मेदारी सही ढंग से निभाते हैं, तो बहू भी जल्द ही अपने इस नये परिवार को दिल से अपना लेती है. वरना, जिन पूर्वाग्रहों को लेकर वह ससुराल में कदम रखती है, वे हमेशा बने रहते हैं. इसलिए कुछ ऐसा करें, जिससे नयी बहू सबकी चहेती बन जाये.

खबारों या पत्रिकाओं में अक्सर ‘ससुराल में सबके प्रिय कैसे बनें’ जैसे शीर्षकों से लेख छापे जाते हैं, जिसमें बहुओं को ससुराल वालों का दिल जीतने के टिप्स दिये जाते हैं, लेकिन कोई ससुराल वालों को यह नहीं कहता कि आप अपनी नयी बहू के साथ ऐसा व्यवहार करें कि वह आपके परिवार में आसानी से घुल-मिल जाये और खुद को बेगाना न समझें. एकदम नयी पृष्ठभूमि और एक अलग परिवार में पली-बढ़ी बहू को अपना बनाने के लिए ससुराल के सदस्यों को भी कुछ बातों पर अमल करना चाहिए.

सही मायने में सम्मान दें

अपनी बहू को परिवार का अभिन्न सदस्य बनाने, उसका दिल जीतने और उसे अपना बनाने के लिए आप उसे सही मायने में सम्मान दें और घर में मनचाहे तरीके से रहने, अपने शौक पूरे करने, मनपसंद भोजन करने का अधिकार भी दें. उसकी तबीयत नासाज हो, मन खराब हो या थकान हो, तो उसे आराम करने दें और हालचाल पूछें. उसे आपसे सही मायने में मां जैसा प्यार मिलेगा, तो वह भी आपके साथ सम्मानपूर्वक अपनेपन से पेश आयेगी.

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परीक्षा न लें, बल्कि साथ दें

चाहे घर के काम करने हों, खाना पकाना हो, व्रत-त्योहार हो या कोई दूसरे काम हों, कभी भी बहू को मुश्किल में डालने, उसका उपहास करने या परीक्षा लेने की कोशिश न करें. इससे आप अनजाने में ही बीच में एक विभाजन रेखा खींचकर परिवार और बहू को दो अलग-अलग पक्षों में बांट देती हैं. जाहिर है आप अपने दांव-पेंच खेलेंगी, तो बहू भी मिट्टी की माधो बनकर तो रहेगी नहीं, वह भी अपनी हर संभव कोशिश करके आपको नीचा दिखाने की कोशिश करेगी.

इस तरह जाने-अनजाने में नयी बहू के मन में आपके लिए कड़वाहट का बीज आप खुद ही रोप देंगी. बेहतर होगा कि उसकी परीक्षा न लेकर आप हर काम में उसकी साथी बनें. मदद करें और उसका प्रेमपूर्वक मार्गदर्शन करें.

नयी बहू के कामों को सराहें

किसी भी इंसान के लिए तारीफ सबसे नायाब तोहफा होता है. सच्ची प्रशंसा और हौसला आफजाई किसी का भी दिल जीतने के लिए काफी है. अगर आप सचमुच बहू को अपना बनाना चाहती हैं, तो उसकी प्रशंसा न सिर्फ उसके सामने, बल्कि दूसरे लोगों के सामने भी करें. इससे बहू के मन में आपके लिए सम्मान बढ़ेगा. वह भी अपने पीहर या अन्य जगह आपकी प्रशंसा करेगी.

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पड़ोस की बहुओं से तुलना न करें

कई घरों में सास, ननद या जेठानी बहू को कमतर साबित करने या उसे ‘उत्साहित’’ करने के लिए आस-पड़ोस की दूसरी बहुओं की खूब प्रशंसा करती हैं. उसकी पढ़ाई-लिखाई, कर्मठता, हुनर और कमाई को बढ़ा-चढ़ा कर बताती हैं. कई जगह लालची स्वभाव की सास व ननद बातों ही बातों में यह भी सुनाती हैं कि फलां बहू तो तगड़ा माल लायी है, उसके पिताजी ने फ्लैट दिलाया है आदि. इन बातों से सिवाय खटास के और कुछ भी हासिल नहीं होता. बहू के पास भी तुलना के लिए तमाम उदार और सहजमन सास और ननद के उदाहरण होते हैं, जिन्हें सुनना आपको कतई अच्छा नहीं लगेगा. बेहतर होगा कि आप अपनी बहू में अच्छाइयां ढूंढें और उसके स्वभाव या आदतों के कमजोर पक्ष को नजरअंदाज करें.

थोड़ा आप भी एडजस्ट करें

एडजस्टमेंट की उम्मीद सिर्फ बहू से न करें, बल्कि आप भी खुद को उसके स्वभाव और कामकाज के तरीकों के अनुसार बदल लें. अगर उसका ऑफिस सुबह जल्दी है या शाम को देर तक रहता है, तो उसी मुताबिक खाना आदि बनाने की जिम्मेदारी लें. घर के बाकी लोगों को भी बहू की सुविधा के मुताबिक अपने खान-पान या व्यवहार में तोड़ा बहुत परिवर्तन कर लेना चाहिए. इससे घर में बेवजह तनाव नहीं फैलेगा और माहौल खुशनुमा रहेगा.

घर के संस्कार को समझने के लिए समय दें

कुछ महिलाएं अपने साथ हुए दुर्व्यवहार या किन्हीं पूर्वाग्रहों की वजह से सोचती हैं कि नयी-नयी बहू को शुरू से ही दबाकर न रखा, तो वो हाथ से निकल जायेगी. नयी बहू को नकेल करना बहुत जरूरी होता है. इसलिए सास-ननद उसकी आदतें, शौक और सुविधाओं की फिक्र न करते हुए उस पर अपने परिवार के नियम-कायदे सख्ती से लागू करने में जुट जाती हैं. नयी-नयी बहू लोकलाज या अपने संस्कारों की वजह से शुरू-शुरू में भले ही कुछ न बोले, लेकिन ससुराल में सास, ननद या जेठानी का ऐसा कठोर व्यवहार देख कर मन ही मन उसके मन में दुराव और उनके प्रति रुखेपन की भावना आने लगती है. इससे रिश्ते भी खराब होने लगते हैं. बेहतर यह होगा कि बेशक आप नयी बहू को अपने परिवार के रीति-रिवाज और परंपराओं के बारे में बताएं, लेकिन यह उस पर छोड़ दें कि वह अपनी नौकरी, सेहत और सुविधा के अनुसार उनका पालन करे या न करे. इससे रिश्तों में कभी दरार नहीं आयेगी.

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