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आइटी की तरह बढ़ता आयुर्वेदिक बाजार

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आठ साल पहले देश में आयुर्वेद सेक्टर का जो बाजार आकार करीब 20 हजार करोड़ रुपये ही था, वह इस समय करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपये की ऊंचाई पर है और दुनिया भर में इसके तेजी से विस्तारित होने का संतोषजनक परिदृश्य है.

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बीते 11 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नौवें विश्व आयुर्वेद कांग्रेस के समापन समारोह और तीन राष्ट्रीय आयुष संस्थानों के उद्घाटन समारोह में कहा कि आयुर्वेद सिर्फ इलाज के लिए नहीं है, वह हमें जीवन जीने का तरीका सिखाता है. उन्होंने कहा कि भारत में आयुष के क्षेत्र में करीब 40 हजार सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग कार्यरत हैं, जो विविध उत्पाद दे रहे हैं. इनसे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बड़ी ताकत मिल रही है.

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आठ साल पहले देश में आयुष उद्योग करीब 20 हजार करोड़ रुपये था. आज यह करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपये पहुंच रहा है. ऐसे में आगामी वर्ष 2023 से सूचना तकनीक (आइटी) की तरह भारत के आयुर्वेदिक बाजार में भी तेजी से विस्तारित होने और इसके विदेशी मुद्रा की कमाई का तेजी से बढ़ता माध्यम बनने की संतोषजनक संभावनाएं उभरती दिख रही हैं.

इसमें कोई दो मत नहीं है कि कोरोना काल में आयुर्वेदिक क्षेत्र की अहमियत बढ़ने के साथ-साथ आयुर्वेदिक बाजार तेजी से बढ़ा है. कोविड महामारी की चुनौतियों के बीच इस बाजार को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए सरकार प्रयासरत रही है. महामारी के वैश्विक संकट के दौरान भारत के सदियों पुराने आयुर्वेद को दुनिया भर में अपनाया गया है. भारत सरकार ने कोविड-19 से लड़ने के प्रयासों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आयुर्वेदिक संघटकों के उपयोग की सफल रणनीति बनाकर इनका निर्यात बढ़ाया है.

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक कोरोना काल में भारत के द्वारा जिस तरह दुनिया के कई देशों को आयुर्वेदिक दवाइयों और कृषि क्षेत्र से संबंधित मसालों का निर्यात किया गया, उससे भारत ने मानव कल्याण के साथ बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की कमाई का नया अध्याय भी बनाया. पारंपरिक इलाज के तौर पर 21वीं सदी में भी पहचान बनाने में कामयाब रहे आयुर्वेद ने काफी विश्वसनीयता हासिल की है और इससे आयुर्वेदिक बाजार बढ़ा है.

केंद्र सरकार आयुर्वेद सहित पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली को अतिसक्रियता के साथ वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने के लिए आगे बढ़ी है. सरकार ने 50 से अधिक देशों के साथ आयुर्वेद सहित पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली को आगे बढ़ाने से संबंधित अनुसंधान विकास और शिक्षण-प्रशिक्षण के विभिन्न समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये हैं. यह भी उल्लेखनीय है कि 13 नवंबर, 2020 को पांचवें आयुर्वेद दिवस के अवसर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टीए ग्रेबेसस ने भारत में पारंपरिक दवाओं के लिए एक वैश्विक केंद्र की स्थापना सुनिश्चित की है. इसका उद्देश्य विश्व के विभिन्न देशों में परंपरागत और पूरक दवाओं के अनुसंधान, प्रशिक्षण और जागरूकता को मजबूत किया जाना है.

निश्चित रूप से इस समय जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत में पारंपरिक दवाओं के वैश्विक केंद्र की स्थापना सुनिश्चित की है, तब भारत के आयुर्वेदिक दवाइयों के बाजार के बढ़ने की नयी संभावनाएं बढ़ी हैं. आयुर्वेदिक दवाइयों के बाजार को देश और दुनिया में तेजी से बढ़ाने के लिए कई बातों पर ध्यान देना होगा. हमें मान्य तरीकों से आयुर्वेदिक दवाइयों के दस्तावेजीकरण की डगर पर आगे बढ़ना होगा. हमारे द्वारा औषधीय पौधों को रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल से पूरी तरह मुक्त रखा जाना होगा.

दवाओं के निर्माण में भारी तत्वों का इस्तेमाल रोकना होगा. अब सरकार के द्वारा आयुर्वेद के नाम पर फूड प्रोडक्ट और अन्य उत्पादों का कारोबार करने वाले लोगों पर सतर्क निगाहें रखनी होगी. सरकार के द्वारा ऐसे नये नियम बनाये जाने होंगे ताकि फूड प्रोडक्ट की जो कंपनियां अपने ब्रांड को आयुर्वेदिक बता कर बेचती हैं, उनके दावों की जांच हो सके. यह ध्यान भी रखना जरूरी होगा कि आयुर्वेदिक आहार प्रोडक्ट की लेबलिंग, प्रेजेंटेशन और विज्ञापन में कंपनियां अनुचित रूप से यह गारंटी नहीं दे सकें कि उनका उत्पाद किसी बीमारी के पूर्ण इलाज या उसे रोकने में पूरी तरह कारगर है.

यह भी ध्यान रखा जाना होगा कि आयुर्वेदिक दवाएं, आयुर्वेदिक पद्धति पर बनी अन्य दवाएं, मेडिसिन प्रोडक्ट और ऐसी खाद्य सामग्री जिसमें आयुर्वेदिक तत्वों का इस्तेमाल न हुआ हो, वे आयुर्वेद उत्पादों के दायरे में नहीं आ पाएं. साथ ही, आयुर्वेदिक प्रोडक्ट में सिर्फ नेचुरल फूड एडिटिव ही मिलाये जाएं. आयुर्वेदिक आहार में अनुपयुक्त रूप से विटामिन, मिनरल और अमीनो एसिड मिलाने की इजाजत नहीं हो. यह भी ध्यान रखा जाना होगा कि आयुर्वेदिक आहार बनाने वाली कंपनियां फूड प्रोडक्ट के पैकेट पर ऐसा कोई दावा नहीं करें, जिससे ग्राहक भ्रमित हों.

ग्राहकों को भ्रमित किये जाने संबंधी जांच होने पर कोई कमी निकलती है, तो कंपनियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई सुनिश्चित की जानी होगी. कोई आहार या आयुर्वेद दवा कंपनी किसी बीमारी को रोकने का दावा करती है, तो इसके लिए सुरक्षा मापदंडों के तहत पहले प्रोडक्ट की जांच कराकर लेबलिंग की अनुमति सुनिश्चित करनी होगी. आयुर्वेदिक आहार प्रोडक्ट के पैकेट पर उपयुक्त जानकारी सुनिश्चित जानी होगी.

चूंकि भारत दुनिया में औषधीय जड़ी-बूटियों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और इसे बॉटनिकल गार्डन ऑफ द वर्ल्ड यानी विश्व का वनस्पति उद्यान कहा जाता है, ऐसे में देश में औषधीय गुणों से भरपूर सैकड़ों तरह के पौधों के अधिकतम उत्पादन की नयी रणनीति बनायी जानी होगी. हमें आयुर्वेदिक दवाइयों के बाजार को बढ़ाने के लिए कई और बातों पर भी ध्यान देना होगा. भारतीय औषध प्रणाली के तहत सभी औषधीय पौधों की समुचित बॉटनिकल पहचान कायम करनी होगी.

औषधीय पौधों की प्रोसेसिंग वैज्ञानिक, आर्थिक और सुरक्षित तरीके से की जानी होगी. आयुर्वेदिक उत्पादों की क्षमता और सुरक्षा का निर्धारण करने के लिए फार्माकोलॉजिकल तथा क्लीनिकल अध्ययन बढ़ाया जाना होगा. आयुर्वेदिक दवाओं के लिए उपयुक्त नियमन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी होगी. आयुर्वेदिक इलाज की प्रक्रियाओं का मानक तय किया जाना होगा. आयुर्वेदिक दवाइयों की पुरानी स्टाइल की पैकेजिंग की जगह आधुनिक पैकेजिंग सुनिश्चित की जानी होगी. आयुर्वेदिक दवाइयों संबंधी शोध को बढ़ाना होगा. खास तौर से तत्काल परिणाम देने वाली और साइड इफेक्ट से बचाने वाली दवाइयों के शोध पर विशेष ध्यान दिया जाना होगा.

हम उम्मीद करें कि नौवें विश्व आयुर्वेद कांग्रेस में 50 देशों के पांच हजार प्रतिनिधियों ने स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद पर विचार-विमर्श के बाद जो निष्कर्ष निकाले हैं, उन पर आधारित नयी रणनीति से देश और दुनिया में आयुर्वेदिक बाजार को ऊंचाई मिलेगी और आयुर्वेदिक सेक्टर की चुनौतियों और मुश्किलों को दूर करने में मदद मिलेगी. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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