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साहिबजादों का अमर बलिदान

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अदब और सम्मान के साथ श्री गुरु गोविंद सिंह के चार पुत्रों को ‘चार साहिबजादे’ कहा जाता है. इनमें बाबा अजीत सिंह जी और बाबा जुझार सिंह जी को बड़े साहिबजादे कहा जाता है.

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अदब और सम्मान के साथ श्री गुरु गोविंद सिंह के चार पुत्रों को ‘चार साहिबजादे’ कहा जाता है. इनमें बाबा अजीत सिंह जी और बाबा जुझार सिंह जी को बड़े साहिबजादे कहा जाता है. चमकौर स्थल की लड़ाई में पंच प्यारों ने अजीत सिंह जी को समझाया कि वे युद्ध न लड़ें क्योंकि वे उन्हें अगली पीढ़ी के रूप में देख रहे थे. लेकिन गुरु गोविंद सिंह जी के लाल को मौत का डर कैसे हो सकता था! उनकी इच्छा को भांप कर गुरु गोविंद सिंह जी ने अजीत सिंह जी को अपने हाथों से तैयार किया और लड़ाई में भेजा.

वीरता से लड़ते हुए अजीत सिंह जी की कृपाण टूट गयी. मुगल सेना को पता चल गया था कि उनके पास तीर खत्म हो चुके हैं. युद्धभूमि में बाबा अजीत सिंह शहीद हुए. उस समय उनकी आयु 17 वर्ष थी. उनके छोटे भाई बाबा जुझार सिंह जी ने भी धर्मयुद्ध में शहीदी प्राप्त की. बाद में मुगल सेना ने पहाड़ी राजाओं के साथ मिल कर श्री आनंदपुर साहिब जी के किले को घेर लिया था, जहां श्री गुरु गोविंद सिंह जी का शाही निवास था.

यह घेरा लगभग छह-सात माह चला. परेशान मुगलों ने झूठी कसमें खायीं कि गुरु गोविंद सिंह जी किला छोड़ दें, मुगलिया सल्तनत उन्हें कुछ नहीं कहेगी. इस पर भरोसा करते हुए उन्होंने किला छोड़ दिया, पर कुछ दूर जाने पर ही मुगल सेना ने गुरु गोविंद सिंह जी के काफिले पर हमला कर दिया. इस युद्ध में गुरु गोविंद सिंह का परिवार उनसे हमेशा के लिए बिछड़ गया.

इस दुखद घटना में उनकी मां माता गुजरी जी और उनके दो छोटे साहिबजादे- बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी उनसे बिछड़ गये. माता गुजरी जी अपने दोनों पोतों के साथ जंगल में आश्रय खोज रही थीं कि उन्हें उनका रसोइया गंगू मिला. गंगू ने उन्हें अपने गांव चलने का निवेदन किया, जिसे माता गुजरी जी ने स्वीकार कर लिया.

रसोइया गंगू के घर पर रात में भोजन के बाद जब सभी लोग विश्राम कर रहे थे, गंगू की नजर माता के बगल में रखी सोने के मुहरों की थैली पर पड़ी और उसे लालच आ गया. माता गुजरी ने उसे थैली लेकर भागते हुए पकड़ लिया. इस पर गंगू कहने लगा कि उसने उन्हें आसरा दिया और वे उस पर चोरी का इल्जाम लगा रही हैं. माता गुजरी जी ने उससे कहा कि वह थैली रख ले और उन्हें जाने दे.

पर गंगू ने माता गुजरी जी और दो साहिबजादों के बारे में मुगलों को जानकारी दे दी तथा उसके बदले इनाम की मांग की. मुगल सेना ने माता गुजरी जी तथा नौ वर्ष के बाबा जोरावर सिंह और सात वर्ष के बाबा फतेह सिंह को गिरफ्तार कर लिया. उन्हें अगले दिन सूबा सरहिंद की वजीर खान की कचहरी में पेश किया गया. कचहरी में दोनों साहिबजादे सीना तान कर ‘वाहेगुरु जी का खालसा/वाहगुरु जी की फतेह’ की गर्जना करते हुए दाखिल हुए.

इस पर वजीर खान के दरबारी सुच्चानंद ने कहा कि ‘बच्चों, यह तुम्हारे गोविंद सिंह जी का दरबार नहीं है, वजीर खान की कचहरी है, झुककर सलाम करो.’ साहिबजादों ने कहा, ‘हमें पता है, पर यह गुरु घर का सिद्धांत और हुक्म भी है कि जहां भी जाओ, वहां पर ‘वाहेगुरु जी की फतेह’ अवश्य बुलानी है.

वजीर खान के दरबारियों ने सलाह दी कि ‘बच्चों को बहला-फुसलाकर इस्लाम धर्म में आसानी से शामिल कर सकते हैं. अगर नहीं मानेंगे, तो उन्हें लालच दिया जायेगा और तब भी उन्होंने मना किया, तो मौत का डर दिखा कर उनसे इस्लाम कबूल करा लेंगे और दुनिया को दिखा देंगे कि गोविंद सिंह के बेटों को मुसलमान बना दिया है.’ जब बच्चों से पूछा गया कि अगर उन्हें आजाद कर दिया जायेगा, तो वे क्या करेंगे, तो साहिबजादों ने कहा कि हम सिखों को एकत्र कर मुगलों पर हमला करेंगे.

इस पर उन्हें मौत की सजा का डर दिखाया गया. साहिबजादों का उत्तर था- ‘हम मौत को पहले कबूल करके फिर धर्म के मार्ग पर चलते हैं.’ भय और लालच के दांव नाकाम होने पर काजी के फतवे पर वजीर खान ने साहिबजादों को दीवार में जिंदा चिन देने का हुक्म दे दिया. रातभर दीवार में रहने से साहिबजादे बेहोश हो गये और जब सुबह दीवार गिर गयी, तो बेहोश साहिबजादों की गर्दनें काट दी गयीं.

मासूम साहिबजादे अपना धर्म निभा गये. हर साल सिख समाज 21 से 27 दिसंबर तक शहीदी सप्ताह मना कर साहिबजादों के बलिदान को याद करता है. इस वर्ष नौ जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हुई घोषणा के अनुरूप प्रत्येक वर्ष 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में मनाया जायेगा.

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