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श्रद्धांजलि के अवसर पर राजनीति, प्रभु चावला का खास आलेख

Manmohan Singh Demise : किसी भी दिवंगत प्रधानमंत्री का अंतिम संस्कार आम आदमी की तरह नहीं हुआ था. भाजपा सरकार ने एक तरफ तो मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के लिए राजघाट के आसपास जगह नहीं दी, दूसरी ओर, उसने कांग्रेस पर हमला बोला कि उसने जीवित रहते हुए कभी मनमोहन सिंह का सम्मान नहीं किया.

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Manmohan Singh Demise : जब श्रद्धांजलि अपमान का रूप ले ले, तब इतिहास कदम पीछे खींच लेता है. पिछले दिनों 92 की उम्र में मनमोहन सिंह के देहावसान के बाद राजनीतिक बौनों और स्वार्थी चापलूसों ने जब उन पर कीचड़ उछालने शुरू किये, तब हमारे सार्वजनिक जीवन का स्याह पक्ष सामने आया. एक दशक तक प्रधानमंत्री रहे मृदुभाषी और सरल मनमोहन सिंह अचानक अपने दोस्तों और आलोचकों के बीच चर्चा में आ गये. अब तक जो लोग मनमोहन सिंह को सोनिया गांधी की हां में हां मिलाने वाले बताते थे, उन्होंने उनकी उपलब्धियों और व्यक्तिगत ईमानदारी का बखान करने के लिए नये विशेषण ढूंढ निकाले. उनके लिए अब वह वैश्विक नेताओं के रोल मॉडल और अंतरराष्ट्रीय स्तर के अर्थशास्त्री बन गये. जो भाजपा मनमोहन सिंह का अपमान करने का कोई मौका नहीं चूकती थी, उसकी तरफ से श्रद्धांजलि की जैसे बाढ़-सी आ गयी.


इसे मुद्दा बना कर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप राजनीतिक बैडमिंटन मैच की तरह हो गया, जिसमें दिवंगत मनमोहन सिंह शटलकॉक थे. उनका शव उनके घर से एआइसीसी के मुख्यालय तक भी नहीं पहुंचा था कि वह एक ट्रॉफी की तरह हो गये, जिसे अपने राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सब अपने पास रखना चाहते थे. जिस कांग्रेस ने मनमोहन सिंह को केंद्र सरकार के सचिव से लेकर प्रधानमंत्री तक की जिम्मेदारी सौंपी थी, उसे अचानक उनकी मृत्यु से अपने राजनीतिक उत्थान का अवसर नजर आया. मृत्यु के 24 घंटे के भीतर जवाहरलाल नेहरू से भी मनमोहन सिंह का कद बड़ा हो गया. उनके अंतिम संस्कार में पूरा गांधी परिवार मौजूद था. एनडीए सरकार ने मनमोहन सिंह के निधन पर राष्ट्रीय शोक घोषित किया और उनके सम्मान में वे तमाम कदम उठाये, जो पूर्व प्रधानमंत्री के निधन के बाद उठाये जाते हैं, लेकिन कांग्रेस की मांग थी कि उनका अंतिम संस्कार राजघाट में किया जाए, जहां कुछ नेताओं का अंतिम संस्कार पूर्व में किया जा चुका है. उसने उसी इलाके में जमीन आवंटित करने की सरकार से मांग की, जिससे कि कांग्रेस वहां उनकी स्मृति में स्मारक बना सके. चर्चा में आने और सहानुभूति पाने के लिए कांग्रेस ने यह तक आरोप लगा दिया कि भाजपा सरकार देश के पहले सिख प्रधानमंत्री का अपमान कर रही है.


यह सब कहते हुए कांग्रेस भूल गयी कि कैसे वरिष्ठ पार्टी नेताओं ने अपने निष्ठावान आइएएस अधिकारियों और मंत्रियों को थोपकर मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री काल में उनके अधिकारों में हस्तक्षेप किया था. ज्यादा सुनने और कम बोलने के लिए पार्टी के भीतर मनमोहन सिंह की खिंचाई तक की जाती थी. कांग्रेस द्वारा मनमोहन सिंह की सिख पहचान पर जोर देने की कवायद ने सिख समुदाय के एक हिस्से को नाराज कर दिया. कुछ सिख नेता मनमोहन सिंह को समुचित सम्मान न दिये जाने पर एनडीए सरकार पर हमलावर हो गये. उन्होंने मनमोहन सिंह को राष्ट्रीय नायक की जगह एक समुदाय के नेता के रूप में तब्दील कर दिया. मनमोहन सिंह के देहावसान के बाद पैदा विवाद के लिए मोदी सरकार भी कमोबेश जिम्मेदार थी. संभवत: नौकरशाही सरकार को समय रहते बता नहीं पायी कि ऐसे अवसरों पर क्या परंपरा रही है. कुछ नेताओं को छोड़ कर ज्यादातर पूर्व प्रधानमंत्रियों और उप-प्रधानमंत्रियों का अंतिम संस्कार यमुना तट पर ही हुआ है. मनमोहन सिंह की मृत्यु के बाद केंद्रीय केबिनेट की बैठक में उनके स्मारक के लिए उपयुक्त जगह की तलाश करने का फैसला लिया गया, लेकिन उनका अंतिम संस्कार निगमबोध घाट में होना तय किया गया.


इससे पहले किसी भी दिवंगत प्रधानमंत्री का अंतिम संस्कार आम आदमी की तरह नहीं हुआ था. भाजपा सरकार ने एक तरफ तो मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के लिए राजघाट के आसपास जगह नहीं दी, दूसरी ओर, उसने कांग्रेस पर हमला बोला कि उसने जीवित रहते हुए कभी मनमोहन सिंह का सम्मान नहीं किया. एकाधिक भाजपा नेताओं ने कांग्रेस द्वारा मनमोहन सिंह का अपमान करने वाले वीडियो जारी किये. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हालांकि अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री की प्रशंसा की और उनके अंतिम संस्कार में भी वह शामिल हुए, लेकिन आइटी और रेल मंत्री ने, जिनके एक्स पर 15 लाख फॉलोअर हैं, ट्वीट किया, ‘डॉ. मनमोहन सिंह एक प्रॉक्सी प्रधानमंत्री बनकर रह गये थे. जबकि राष्ट्रीय सलाहकार समिति के जरिये वास्तविक ताकत सोनिया गांधी ने अपने पास रखी थी.’ उन्होंने यह भी लिखा, ‘डॉ सिंह का चरम अपमान तो 2013 में तब किया गया, जब राहुल गांधी ने उस अध्यादेश की प्रति फाड़ दी थी, जिसे प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट ने पारित किया था. ‘ जाहिर है, मनमोहन सिंह के निधन के बाद पैदा स्थिति से निपटने में केंद्र सरकार अनजाने में ही विफल रही, लेकिन उसके समर्थकों ने अपने नेताओं के प्रति कांग्रेस के अपमानजनक व्यवहारों का खुलासा शुरू कर दिया.


सच यह है कि गांधी परिवार अपने आलोचकों के प्रति बेहद कठोर रहा. उदाहरण के लिए, पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई का अंतिम संस्कार अहमदाबाद में हुआ, जबकि पीवी नरसिंह राव और वीपी सिंह का अंतिम संस्कार क्रमश: हैदराबाद और इलाहाबाद में हुआ. देश में कहीं भी इनका स्मारक नहीं है. उन्होंने वीपी सिंह को कभी पार्टी तोड़ने के लिए माफ नहीं किया. दूसरी ओर, भाजपा ने इन सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों को नयी दिल्ली स्थित प्राइम मिनिस्टर्स म्यूजियम में जगह दी है. अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, मोदी सरकार अटल बिहारी वाजपेयी के स्मारक की तरह मनमोहन सिंह का स्मारक बनवायेगी और ट्रस्ट में उनकी पत्नी और बेटी को रखेगी. कांग्रेस और गांधी परिवार को इससे बाहर रखा जायेगा. चूंकि राजघाट परिसर में बहुत बड़े क्षेत्र में नेहरू-गांधी परिवार के चार दिवंगतों के स्मारक हैं, लिहाजा वहीं कुछ जगह मनमोहन सिंह के स्मारक के लिए दी जायेगी, ताकि गांधी-नेहरू परिवार के दिवंगतों को श्रद्धांजलि देने आने वाले मनमोहन सिंह के स्मारक पर भी श्रद्धांजलि अर्पित कर सकें.

मनमोहन सिंह के देहावसान पर हुई जहरीली राजनीति से उनका सम्मान बढ़ना तो दूर, उल्टे इससे नेहरू-गांधी का कद बढ़ाने की कोशिश कमतर हुई है. मनमोहन सिंह कांग्रेस के शहंशाह नहीं, बल्कि उसका विरल वैकल्पिक व्यक्तित्व थे. यह उस व्यक्ति के लिए सबसे उपयुक्त श्रद्धांजलि है, जिसने भारतीय जीवन को बदल कर रख दिया, जो अलबत्ता कांग्रेस का लक्ष्य नहीं था. सार्वजनिक जीवन रूपी सर्कस में इतिहास ही रिंग मास्टर है, जबकि इसमें भाग लेने वाले प्रतिभागी कलाबाज होते हैं. बेशक इनमें से कुछ विदूषक भी होते हैं.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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