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East Singhbhum : गुड़ाबांदा : पानी, बिजली, सड़क और शिक्षा के अधिकार के लिए तरस रहे पहाड़ पर बसे राजाबासा के लोग

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गांव के 16 परिवारों के 150 सदस्य जीने के लिए करते हैं मशक्कत

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मो.परवेज/कुश महतो, गुड़ाबांदा

आज भारत वैश्विक स्तर पर नयी ऊंचाइयों को छू रहा है. वहीं, देश के कई गांवों में लोग स्वच्छ पानी, बिजली, सड़क और शिक्षा जैसे मूलभूत अधिकारों के लिए तरस रहे हैं. ऐसी ही स्थिति गुड़ाबांदा (पूर्वी सिंहभूम, झारखंड) प्रखंड में पहाड़ पर बसा राजाबासा गांव की है. यहां 16 परिवार के 150 सदस्य जीने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. यहां न चलने के लिए सड़क है, न बिजली व पानी की व्यवस्था और न शिक्षा का कोई साधन है. यह गांव सुविधाओं से वंचित है. ग्रामीण कहते हैं कि नेता गांव की हालत पर अफसोस जताकर चले जाते हैं. केवल आश्वासन देते हैं. यहां जीवन आसान नहीं है.

आंगनबाड़ी व स्कूल आठ किमी दूर, अधिकतर बच्चे अशिक्षित

राजाबासा गांव में आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है. छोटे बच्चों की पढ़ाई नहीं हो पाती है. गांव से आठ किमी दूर चिरुगोड़ा में आंगनबाड़ी केंद्र और स्कूल है. ऐसे में बच्चे पढ़ाई के लिए बच्चे दूर नहीं जाते हैं. गांव के अधिकतर बच्चे अशिक्षित हैं. पहाड़ी रास्ता होने के कारण बच्चे आंगनबाड़ी केंद्र नहीं जाते हैं. यहां बच्चे शिक्षा से वंचित हैं.

राशन लेने के लिए नौ किमी दूर जाते हैं लोग

गांव में राशन डीलर नहीं है. ऐसे में राशन के लिए लोगों को नौ किमी दूर रेडुआ जाना पड़ता है. राशन लाने के लिए पगडंडी से होकर जाते हैं. राशन लाने के लिए दिनभर समय लग जाता है. यहां के लोग आज भी आदिम युग में जी रहे हैं. इस गांव का हालात बहुत खराब है, जबकि गुड़ाबांदा प्रखंड कीमती खनिज संपदा से भरा है.

ग्रामीणों ने पहाड़ काटकर आठ किमी रास्ता बनाया

राजाबासा गांव पहाड़ों से घिरा है. गांव तक सड़क नहीं है. ग्रामीणों ने पहाड़ काट कर आठ किमी रास्ता चलने लायक बनाया है. लोग पैदल या साइकिल से आना-जाना करते हैं. यहां तक चार पहिया वाहन नहीं जा पाता. बीमार को खटिया पर मुख्य मार्ग तक लाना पड़ता है. तब वाहन से अस्पताल पहुंचाया जाता है.

नाला व झरना का पानी पीते हैं, गांव में नेटवर्क नहीं

गांव में पेयजल की सुविधा नहीं है. ग्रामीण पहाड़ी झरने के खाल का पानी पीते हैं. गांव में चापाकल और कुआं तक नहीं है. नाला और झरना के पानी पीने से लोग अक्सर बीमार होते रहते हैं. गांव में मोबाइल का नेटवर्क नहीं है. लोग देश-दुनिया से कटे हैं. ग्रामीण लक्ष्मण मार्डी, गणेश मार्डी, स्वरूप मार्डी, विश्वनाथ मार्डी आदि ने कहा कि हम जीने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं.

कच्चे घरों में रहते हैं लोग, जैसे-तैसे खींचा गया बिजली का तार

गांव के अधिकतर परिवार मिट्टी के घर में रहते हैं. ये अबुआ और पीएम आवास योजना से वंचित हैं. गांव में बिजली तार पांच फीट ऊपर टांग दिया गया है. इससे कभी भी हादसा हो सकता है. बिजली एक बार खराब होती है, तो महीनों बाद आती है. ग्रामीणों का कहना है कि जब नक्सलियों का गढ़ था, तब पुलिस आती थी. अब कोई नहीं आता है.

जंगल के भरोसे जीवन की गाड़ी

राजबासा के लोगों की जिंदगी की गाड़ी जंगल से भरोसे चलती है. यहां के लोग लकड़ी बेचने कोकपाड़ा जाते हैं. 70 रुपये में लकड़ी का एक बोझा बेचते हैं. जंगल से साल पत्ता, केंदू पत्ता, दतवन, चार बीज आदि लाकर बेचते हैं. कुछ लोग पहाड़ी के बीच की जमीन पर खेती करते हैं.

…क्या कहते हैं जिम्मेदार…

राजाबासा की समस्याओं को उपायुक्त के समक्ष रखेंगे. जल्द निदान की कोशिश करेंगे. लोग आदिम युग में जी रहे हैं. बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सड़क की समस्या है.

– शुभजीत मुंडा, प्रमुख, गुड़ाबांदा

———————————

आज तक गांव की समस्याओं को देखने कोई नहीं आया. हम लोगों की सरकार से मांग है कि कुछ नहीं कर सकते, तो कम से कम सड़क बना दें. लोगों की जिंदगी कुछ आसान हो सके.

– कईरुम मुर्मू, ग्राम प्रधान, राजाबासा

—————————–जिस स्तर से समस्या का समाधान होगा, उस पर पहल करते हुए जल्द निदान किया जायेगा. पानी के लिए जल्द उपाय किया जायेगा, ताकि ग्रामीणों को शुद्ध पेयजल मिल सके.

– डांगुर कोड़ाह, बीडीओ, गुड़ाबांदा

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डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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