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जब बुनियाद ही कमजोर तो उच्च शिक्षा कैसे होगी मजबूत, जहां शिक्षकों की हो कमी

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जिले के 1285 विद्यालयों में 1758 स्वीकृत पदों के विरुद्ध केवल 631ही हैं शिक्षक

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साहिबगंज. नयी शिक्षा नीति के तहत शिक्षा में बदलाव को लेकर केंद्र या राज्य सरकार लाख दावे कर ले परंतु जमीन पर हकीकत कुछ और ही है. शिक्षा की बुनियाद प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में दी जाने वाली शिक्षा है, जहां शिक्षकों की घोर कमी है. साहिबगंज जिले की अगर बातें करें तो जिले में वर्ग 1 से 5 तक संचालित होने वाले 761 विद्यालय हैं, जबकि वर्ग 1 से 8 तक संचालित होने वाले 463, वर्ग 6 से 8 तक संचालित होने वाले मॉडल विद्यालय और एडेड विद्यालयों की संख्या 12 है. इस प्रकार जिले में कल 1285 विद्यालय संचालित हैं. इन विद्यालयों के लिए इंटर प्रशिक्षित शिक्षकों के स्वीकृत पद 1537 है, जबकि जिले में केवल 575 इंटर प्रशिक्षित शिक्षक थे और कार्यरत है. इसी प्रकार स्नातक प्रशिक्षित विषय बार शिक्षकों की अगर बात करें तो जिले को विज्ञान और कला के लिए 77 प्रति विषय शिक्षक के स्वीकृत पद हैं, जिनके विरुद्ध विज्ञान में केवल 17, भाषा में केवल 29 और कला में केवल 10 शिक्षक ही वर्तमान में कार्यरत हैं. बुनियादी शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षकों की घोर कमी का सीधा असर बच्चों पर पड़ रहा है. कला में सबसे कम केवल 10 शिक्षक ही हैं कार्यरत स्नातक प्रशिक्षित विषय वार शिक्षकों की बात अगर की जाए तो स्वीकृत पद के विरुद्ध सबसे कम कला के शिक्षक जिले में हैं. कला के लिए साहिबगंज जिले में स्वीकृत पद 77 है, जिसके विरुद्ध केवल 10 शिक्षक ही वर्तमान में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इसमें भी तालझारी प्रखंड में एक भी शिक्षक कला के मौजूद नहीं हैं, जबकि बरहेट पतना राजमहल और मंडरो में कला के लिए केवल एक-एक शिक्षक ही वर्तमान में सेवाएं दे रहे हैं. इसी प्रकार विज्ञान के लिए स्वीकृत 77 पदों के विरुद्ध केवल 17 शिक्षक ही जिले में उपलब्ध हैं, जिसमें साहिबगंज सदर प्रखंड में पांच, बोरियो में दो, तालझारी में एक, राजमहल में पांच, पतना में दो तथा बरहेट में दो शिक्षक सेवाएं दे रहे हैं, जबकि मंडरो प्रखंड में विज्ञान के एक भी शिक्षक नहीं हैं. भाषा की अगर बात की जाए तो भाषा के लिए भी 77 शिक्षकों में केवल 29 शिक्षक ही जिले में सेवारत हैं. भाषा में साहिबगंज प्रखंड में छह, बोरियो में दो, मंडरो में दो, तालझारी में दो, राजमहल में पांच, पतना में चार व बरहेट में आठ शिक्षक सेवारत हैं. इंटर प्रशिक्षित शिक्षकों की संख्या भी लगभग एक तिहाई ही है. जिले के लिए स्वीकृत 1537 (जिसमें बरहरवा प्रखंड शामिल नहीं है) के विरुद्ध केवल 575 शिक्षक ही सेवाएं दे रहे हैं. सबसे बुरा हाल राजमहल प्रखंड का रहा है, जहां 222 स्वीकृत पदों के विरुद्ध केवल 54 शिक्षक ही कार्यरत हैं. जिले में कैसे की जा सकती है मैट्रिक व इंटर में हो बेहतर परिणाम शिक्षा की बुनियाद प्राथमिक और मध्य विद्यालय की शिक्षा ही है. परंतु प्राथमिक एवं मध्य विद्यालयों में शिक्षकों के स्वीकृत पदों के विरुद्ध अपेक्षाकृत एक तिहाई से भी कम शिक्षक अपनी सेवा दे रहे हैं. ऐसे में बुनियाद ही जब कमजोर हो तो जिले में मैट्रिक एवं इंटर की बेहतर परिणाम की आशा कैसे की जा सकती है. शिक्षा विभाग के साथ-साथ जिला प्रशासन भी मैट्रिक एवं इंटर के परीक्षा परिणाम में अपेक्षाकृत सुधार को लेकर प्रयत्नशील है. परंतु सवाल यह उठता है कि जब बच्चों की नींव ही मजबूत ना हो तो उच्च शिक्षा में अचानक से मजबूती कैसे लाई जा सकती है. विद्यालयों में कई प्रकार के कार्यों का हो रहा है संचालन जिले में एक तो शिक्षकों की घोर कमी अपने आप में चिंता का विषय है. शिक्षकों की कमी के कारण बच्चों की पढ़ाई ऐसे ही पूरी नहीं हो पा रही है उसके ऊपर से नई शिक्षा नीति के तहत सरकार की नयी-नयी योजनाएं प्रतिदिन घोषित किया जा रहे हैं. इन सभी के अनुपालन के लिए शिक्षकों को समयबद्ध तरीके से लगाया जाता है. आज के डिजिटल युग में यह सभी योजनाएं डिजिटल माध्यम से अपलोड करने का निर्देश प्राप्त होता रहता है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि विद्यालय में शिक्षक शैक्षणिक गतिविधि को अंजाम दें या शिक्षा विभाग के निर्देशों का पालन करें. यू डाइस पर बच्चों की उपस्थिति दर्ज करना हो या अपार आइडी जनरेट करना यह सभी काम डिजिटल माध्यम से किये जा रहे हैं, जिसमें समय की अच्छी खासी बर्बादी भी होती है. मध्याह्न भोजन योजना भी शिक्षा व्यवस्था में बाधक केंद्र व राज्य सरकार की अति महत्वाकांक्षी योजना मध्याह्न भोजन योजना है. सरकार का ऐसा मानना है कि बच्चे भोजन के नाम पर विद्यालय में स्थाई रूप से रहेंगे और शिक्षा ग्रहण करेंगे, परंतु व्यावहारिक रूप में अगर इसे देखा जाए तो इसके बिलकुल उलट हो रहा है. जिले के लगभग 500 विद्यालय एकल शिक्षक संचालित विद्यालय हैं. इन विद्यालयों के शिक्षक या तो मध्याह्न भोजन योजना का संचालन कर सकते हैं या फिर शिक्षा ही दे पाते हैं. कई जगहों पर यह भी देखने को मिला है कि विद्यालय में बच्चे केवल भोजन के समय ही नजर आते हैं. इससे पूर्व या इसके बाद बच्चों की संख्या आधी से भी काम रह जाती है. ऐसे में सरकार की योजना अपने सोच के अनुरूप कहीं भी कारगर होती नहीं दिखाई पड़ रही है. वर्ष 2024 में प्राथमिक और मध्य विद्यालय के लिए नियुक्त हुए केवल दो शिक्षक उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद शिक्षकों की नियुक्ति को लेकर काउंसलिंग की प्रक्रिया अपनायी गयी. काउंसलिंग में भाग लेने के लिए साहिबगंज जिले के अलावा झारखंड और बिहार के कई भागों से हजारों की संख्या में अभ्यर्थी उपस्थित हुए. सभी के अंक पत्र आदि की जांच की गयी. पूरी प्रक्रिया में एक सप्ताह से अधिक का लंबा समय बीत गया. इस पूरी प्रक्रिया के संचालन के बाद साहिबगंज जिले में केवल दो शिक्षकों की ही नियुक्ति हो पाई. पदों की संख्या के विरुद्ध नियुक्ति की संख्या को अगर देखें तो अपने आप में न केवल हास्यास्पद लगता है, बल्कि पूरी व्यवस्था पर सवालिया निशान भी खड़ा करता है. एक सप्ताह की लंबी चौड़ी प्रक्रिया के बाद जिले को केवल दो ही शिक्षक मिल पाये. क्या कहते हैं अधिकारी जिले के विद्यालयों में खासकर प्राथमिक एवं मध्य विद्यालयों में शिक्षकों की कमी है. शिक्षकों की कमी को दूर करना राज्य सरकार का काम है. जिला की ओर से समय-समय पर राज्य को पूरी रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है. नियुक्ति का कार्य राज्य सरकार से ही कराया जा सकता है. -कुमार हर्ष, डीएसइ, साहिबगंज शिक्षकों की कमी तो है जिसे दूर करने को लेकर राज्य सरकार गंभीर भी है. इस दिशा में पहल भी कर रही है. परंतु शिक्षकों ती कमी के बावजूद वैकल्पिक माध्यमों से शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त बनाने का कार्य झारखंड शिक्षा परियोजना की ओर से कराया जा रहा है. हम सभी की नजर विद्यालयों में संचालित होने वाले सभी गतिविधियों पर बनी हुई है. -डॉ दुर्गानंद झा, डीइओ, साहिबगंज

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डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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