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शहद उत्पादन कर अपने व परिवार का भविष्य संवार रहे सनोज

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– मधुमक्खी पालन कर आत्मनिर्भर हो रहे हैं, व्यवसाय में उठन्नी खर्च व रुपया की आमदनी एडी खुशबू, कोढ़ा मधुमक्खी पालन का गणित मधु की तरह मिठास भरा है. मधुमक्खी पालन में कोई परेशानी नहीं होती है. न ही ज्यादा मेहनत. कोढ़ा प्रखंड क्षेत्र में भी युवा मधुमक्खी पालन करने लगे हैं. मधुमक्खी पालनकर अपने वह अपने परिवार की जिंदगी संवार रहे हैं. मधुमक्खी पालक सनोज कुमार की सफलता की कहानी न केवल कोढ़ा प्रखंड में बल्कि आसपास के क्षेत्रों में भी चर्चा का विषय बन चुकी है. उनकी मेहनत और सफलता ने यह साबित कर दिया कि सही दिशा और प्रयास से कोई भी व्यक्ति अपनी मंजिल तक पहुंच सकता है. मधुमक्खी पालन कर रहे 21 वर्षीय सनोज कुमार प्रत्येक वर्ष लाखों का शहद बेचते हैं. वैशाली जिले के रहने वाले युवा किसान सनोज कुमार प्रशिक्षण और अनुभव के आधार पर जिले के कोढ़ा प्रखंड में मधुमक्खी पालन का बड़ा प्रोजेक्ट शुरू किया है. वर्तमान में उनके पास 450 मधुमक्खी के डिब्बे हैं. जिसकी कुल लागत लगभग दो लाख रुपये है. मधुमक्खी पालन कर किस्मत संवार रहे कोढ़ा प्रखंड क्षेत्र में मधुमक्खी पालन के माध्यम से स्वरोजगार की एक मिसाल कायम हो रही है. वैशाली जिले के रहने वाले सनोज कुमार ने अपनी मेहनत और लगन से यहां मधुमक्खी पालन को व्यवसाय के रूप में अपनाया है और सफलता की नई कहानी लिखने को बेताब दिख रहे हैं. सरसों में फूल ज्यादा होने के कारण शहद ज्यादा होने की उम्मीद कहा, गांव में पहले कुछ ग्रामीणों द्वारा मधुमक्खी पालन कर रहे थे. गांव में मधुमक्खी पालन करते देखा उनके मन में भी मधुमक्खी पालन की लालसा जाग उठी. उन्होंने सोचा कि मधुमक्खी पालन कर वे अपनी जिंदगी को संवार सकते हैं. तब जाकर उन्होंने यूट्यूब के माध्यम से मधुमक्खी पालन करने की जानकारी प्राप्त किया. जानकारी प्राप्त करने के बाद विभाग से प्रशिक्षण भी लिया. प्रशिक्षण और अनुभव के आधार पर अब वे कटिहार जिले के कोढ़ा प्रखंड में मधुमक्खी पालन का बड़ा प्रोजेक्ट शुरू किया है. उन्होंने कहा कि कोढ़ा में ही मधुमक्खी पालन का प्रोजेक्ट करना तैयार करने का मकसद यह था कि यहां बागवानी एवं सरसों की खेती भारी पैमाने पर होती है. सरसों में फूल ज्यादा होने के कारण शहद ज्यादा होने की उम्मीद है. बताया कि वर्तमान में उनके पास 450 मधुमक्खी के डिब्बे हैं. जिसकी कुल लागत लगभग दो लाख रुपये है. इस वर्ष उन्हें अच्छी आमदनी होने की उम्मीद है. अठन्नी खर्चा, रुपया आमदनी युवा किसान बताते हैं कि इन डिब्बों से तैयार होने वाले शहद को बाजार में बेचने में कोई परेशानी नहीं होती है. शहर बाजार में आसानी से बिक जाता है. शहद बाजार में बेचने के बाद उन्हें हर सीजन में दो से ढाई लाख रुपये की आमदनी हो जाती है. मधुमक्खी पालन के इस व्यवसाय से न केवल उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है. बल्कि अन्य युवाओं को भी प्रेरणा मिली है. युवाओं से मधुमक्खी पालन क्षेत्र में आने की अपील उनका कहना है कि मधुमक्खी पालन एक कम लागत और अधिक मुनाफे वाला व्यवसाय है. जिसे कोई भी व्यक्ति सीखकर शुरू कर सकता है. उन्होंने अन्य युवाओं से भी आह्वान किया कि वे स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ायें और मधुमक्खी पालन जैसे लाभदायक कार्यों में शामिल होकर आत्मनिर्भर बनें.

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डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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