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Jamshedpur News : शहीद निर्मल महतो की जयंती पर विशेष, पढ़िये किसने क्या कहा

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गुरुजी करते थे छोटे भाई की तरह प्रेम, हमेशा निर्मल बाबू कहकर ही पुकारा

25 दिसंबर 1950 को उलियान में हुआ जन्म

15 दिसंबर 1980 को आदित्यपुर में की झामुमो में शामिल

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गुरुजी करते थे छोटे भाई की तरह प्रेम, हमेशा निर्मल बाबू कहकर ही पुकारा

25 दिसंबर 1950 को उलियान में हुआ जन्म

15 दिसंबर 1980 को आदित्यपुर में की झामुमो में शामिल होने की घोषणा

20 फरवरी 1981 को पहली बार मिले शिबू सोरेन से

सिंहभूम जिला झामुमो के उपाध्यक्ष चुने गये

1-2 जनवरी, 1983 को धनबाद में पहले महाधिवेशन में बने केंद्रीय सदस्य

6 अप्रैल 1984 को बोकारो में झामुमो का केंद्रीय अध्यक्ष बनाया गया.

26 से 28 अप्रैल 1986 को दोबारा महाधिवेशन में केंद्रीय अध्यक्ष चुने गये.

आठ अगस्त 1987 को बिष्टुपुर के चमरिया गेस्ट हाउस के पास उनकी हत्या कर दी गयी

Jamshedpur (Sanjeev Bhardwaj) :

झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन और झारखंड आंदोलनकारी रहे शहीद निर्मल महतो के बीच काफी मधुर संबंध थे. गुरुजी निर्मल महतो का अपने छोटे भाई के समान प्रेम व सम्मान करते थे. गुरुजी से निर्मल महतो छह साल छोटे भी थे. यही कारण था कि वे हमेशा सम्मान से उन्हें ””””निर्मल बाबू”””” कहकर ही पुकारते थे. गुरुजी के साथ निर्मल महतो का परिचय काफी कम दिनों का रहा, बावजूद इस छोटी सी अवधि में उन्होंने एक अलग ही जगह बना ली थी. निर्मल महतो 1980 में ही झामुमो में शामिल हुए, महज सात साल में उन्होंने न केवल संगठन को मजबूत किया, बल्कि अपनी शहादत देकर उन्होंने झारखंड अलग राज्य का मार्ग भी प्रशस्त कर दिया. भले ही उनकी शहादत के 13 साल बाद राज्य का गठन हुआ. निर्मल महतो की शहादत के दो दिनों बाद बिष्टुपुर रीगल मैदान (अब गोपाल) आयोजित सभा में झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन ने कहा था कि निर्मल महतो का बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा, यह झारखंडियों को हमेशा याद रहेगा. यही कारण है कि न केवल केंद्रीय नेता बल्कि जयंती समारोह और शहादत दिवस पर दूर-दराज से कार्यकर्ता, सामान्य जन मानस भी उनकी समाधि पर नमन के लिए पहुंचता है. बुधवार को शहीद निर्मल महतो की 75वीं जन्म जयंती पर भी लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचेंगे.

पहली मुलाकात में एक-दूसरे की कद्र और बढ़ गयी : शैलेंद्र महतो

झारखंड आंदोलनकारी शैलेंद्र महतो ने बताया कि निर्मल महतो का झामुमो और शिबू सोरेन से जुड़ने का एक आधार गुवा गोलीकांड रहा. आठ सितंबर 1980 को गुवा में हुई पुलिस फायरिंग में 11 आदिवासी मारे गये थे. घटना में भुवनेश्वर महतो गिरफ्तार हो गये. पुलिस को बहादुर उरांव और उनकी (शैलेंद्र महतो) तलाश थी. तय हुआ कि चाईबासा में पुलिस कार्रवाई के विरोध में 28 अक्टूबर 1980 को एक बड़ी सभा होगी, जिसमें शिबू सोरेन, एके राय और विनोद बिहारी महतो को बुलाया जायेगा. श्री महतो ने कहा कि पंपलेट छपवाने की जिम्मेदारी उन्हें प्रदान की गयी. वे चक्रधरपुर से जमशेदपुर आये. निर्मल महतो ने दो-तीन दिन शैलेंद्र महतो को अपने घर पर रखा और पंपलेट छपवा कर दिये.

खुद के लिए नहीं, दूसरों के लिए हर वक्त खड़े रहते थे निर्मल दा : सूर्य सिंह बेसरा

झारखंड आंदोलनकारी सूर्य सिंह बेसरा ने कहा कि जिस तरह शिबू सोरेन ने निर्मल महतो को आगे बढ़ाने का काम किया, उसी लाइन पर चलते हुए निर्मल दा ने उन्हें भी आगे बढ़ाया. उन्हें आजसू का अध्यक्ष बनाया. आंदोलन को धार देने के लिए असम भेजा. 1984 के अधिवेशन में शिबू सोरेन चाहते तो अध्यक्ष बन सकते थे, लेकिन उन्होंने निर्मल दा को आगे बढ़ाया. निर्मल दा की सबसे बड़ी खासियत थी कि वे अपने लिए कभी कुछ नहीं बोलते थे, लेकिन दूसरों के लिए हमेशा खड़े रहते थे. इस दौरान आजसू का भी गठन हो चुका था. शिबू सोरेन चाहते थे कि निर्मल महतो भी सांसद-विधायक बनें. 1984 में रांची संसदीय क्षेत्र से निर्मल महतो को उतारा गया. वे चुनाव हार गये. 1985 के विधानसभा चुनाव में निर्मल महतो को ईचागढ़ से उतारा, वहां भी हार गये. निर्मल महतो को इसमें कोई रुचि नहीं थी, लेकिन शिबू सोरेन की इच्छा थी कि निर्मल महतो सांसद-विधायक बनें. बिहार में एक पद एमएलसी का खाली हुआ. शिबू सोरेन ने निर्मल दा से नामांकन को कहा. निर्मल महतो ने अपनी जगह छत्रपति शाही मुंडा को एमएलसी बनवा दिया.

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डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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