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Sonpur Mela : स्वरूप बदला, लेकिन सोनपुर मेले की संस्कृति आज भी जीवंत

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Sonpur Mela : रिहर क्षेत्र सोनपुर मेला में घुमने के बाद एक बात समझ में आती है कि मॉल और डिजनीलैंड के इस दौर में हमारी परंपरा और संस्कृति आज भी जीवित है. यहां हाथों से बनी खूबसूरत खिलौने बिक रहे हैं, जिन्हें कभी बचपन में गांव के मेले में देखा जाता था. इन खिलौनों को देख कई लोगों की बचपन की यादें ताजी हो जाती है.

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सोनपुर. हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला में घुमने के बाद एक बात समझ में आती है कि मॉल और डिजनीलैंड के इस दौर में हमारी परंपरा और संस्कृति आज भी जीवित है. यहां हाथों से बनी खूबसूरत खिलौने बिक रहे हैं, जिन्हें कभी बचपन में गांव के मेले में देखा जाता था. इन खिलौनों को देख कई लोगों की बचपन की यादें ताजी हो जाती है. सोनपुर मेला में हाथ से बने खिलौने को बेचने वाले लोग इस बार बड़ी संख्या में देखे जा रहे हैं. इसमें बुजुर्ग, युवा और महिलाए भी शामिल हैं. जो आसपास के जिलों के विभिन्न गांवों से मेले में घूम-घूम कर मिट्टी की सीटी और घिरनी बेच रहे हैं. मेले में कई जगहों पर इनकी चलंत दुकानें लगी है. आज जहां हर बच्चे की जुबान पर स्मार्टफोन, लैपटॉप, रिमोट कंट्रोल कार और रोबोट का नाम रहता है, मगर महंगे खिलौने में वह भावनात्मक एहसास नहीं होता जो मेले में आकर महसूस होता है. दशकों से सोनपुर मेले का आकर्षण बना हुआ है. मेले का स्वरूप बदला, इसकी अवधि में तब्दीलियां हुई सब कुछ बदला मगर मिट्टी की सीटी और घिरनी नहीं बदली, मेले में पहुंचने वाले बुजुर्गों ने बताया कि चाहे कितनी भी आधुनिकता जाये लेकिन इस सीटी का रूप नहीं बदला, उनका मानना है कि मेले में पहुंचने वालों की उम्र कितनी भी क्यों न हो जाये, लेकिन लकड़ी की बनी गाड़ीऔर मिट्टी की बनी सीटी व घिरनी आदि की मांग हमेशा बनी रहेगी. डिजिटल इंडिया की ओर बढ़ते जमाने में भी हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले में बिक रहे मिट्टी के बने खिलौने हर लोगों को उनके बचपन के दिनों की याद दिलाते हैं.

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डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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