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झारखंड में हेमंत सरकार की जीत के मायने, पढ़ें प्रभात खबर के कार्यकारी संपादक अनुज कुमार सिन्हा का खास लेख

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Jharkhand Assembly Elections : इस चुनाव में एनडीए और इंडिया गठबंधन ने पूरी ताकत लगा दी थी. लोकसभा चुनाव में झारखंड में भाजपा को आदिवासियों के लिए आरक्षित सीट में एक पर भी जीत नहीं मिली थी. 2019 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को 28 आरक्षित (एसटी) सीटों में सिर्फ दो सीट (खूंटी-तोरपा) पर जीत मिली थी.

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Jharkhand Assembly Elections: झारखंड विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झारखंड मुक्ति मोर्चा और उसके सहयोगी दलों (कांग्रेस, राजद और भाकपा-माले) ने सभी पुराने रिकॉर्ड को तोड़ते हुए ऐतिहासिक जीत दर्ज की है. इंडिया गठबंधन को 81 में से 56 सीटों पर (यानी 61.1 प्रतिशत सीट) जीत मिली है. एनडीए सिर्फ 24 सीट पर जीत दर्ज कर सका. अकेले झामुमो ने 34 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि भाजपा 21 सीटों पर सिमट गयी. झारखंड बनने के बाद झामुमो का विधानसभा चुनाव में यह सबसे अच्छा और भाजपा का सबसे खराब प्रदर्शन है. लगातार दो चुनाव से झामुमो सबसे बड़ा दल बन कर उभरा है.


इस चुनाव में एनडीए और इंडिया गठबंधन ने पूरी ताकत लगा दी थी. लोकसभा चुनाव में झारखंड में भाजपा को आदिवासियों के लिए आरक्षित सीट में एक पर भी जीत नहीं मिली थी. 2019 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को 28 आरक्षित (एसटी) सीटों में सिर्फ दो सीट (खूंटी-तोरपा) पर जीत मिली थी. ये दोनों चुनाव के नतीजे संकेत दे चुके थे कि झारखंड के आदिवासी भाजपा के साथ नहीं हैं. भाजपा जानती थी कि बगैर आदिवासियों को अपने साथ लिए झारखंड की सत्ता पर कब्जा नहीं कर सकती, इसलिए उसने आरक्षित सीटों पर पूरी ताकत लगा दी. उसने झारखंड के अपने तमाम दिग्गज आदिवासी नेताओं को चुनाव में उतार दिया. उन्हें भी, जो लोकसभा चुनाव हार चुके थे.

कोल्हान और संताल परगना झामुमो का गढ़

कोल्हान और संताल परगना झामुमो का गढ़ है. कोल्हान में 2019 के चुनाव में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली थी, इसलिए भाजपा ने झामुमो के वरिष्ठ नेता चंपाई सोरेन और लोबिन हेंब्रम को पार्टी में शामिल कर लिया. इस उम्मीद में कि चंपाई सोरेन कोल्हान और लोबिन हेंब्रम संथाल परगना में झामुमो को रोकने में मदद कर पायेंगे. ये दोनों आदिवासी वोट को भाजपा के पक्ष में करने में असफल रहे. चंपाई सोरेन सिर्फ अपनी सीट बचा पाये. 28 आरक्षित सीटों में से सिर्फ एक सीट सरायकेला भाजपा के पक्ष में गयी. इससे यह साबित हो गया कि आरक्षित सीटों पर भाजपा की पकड़ नहीं है और झामुमो से नेता आयात कर वह आदिवासी सीट नहीं जीत सकती.

हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी का असर भी चुनाव पर पड़ा

झामुमो का इतिहास रहा है कि उसके नेता दूसरे दलों में जब जाते हैं, तो उनके साथ झामुमो का आदिवासी वोट नहीं जाता. वहां तीर-धनुष पर वोट पड़ता है, न कि व्यक्ति के नाम पर. इंडिया गठबंधन जीता, क्योंकि उसके वोट बैंक (आदिवासी, मुसलिम और ईसाई) का आधार जरा-सा भी नहीं हिला, झामुमो, कांग्रेस और राजद सभी अपने-अपने समर्थकों का वोट गठबंधन के प्रत्याशी को शिफ्ट कराने में सफल रहे, हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद आदिवासियों के बीच यह बात बैठ गयी थी कि एक आदिवासी नेता को बेवजह परेशान किया जा रहा है.

जेल से रिहा होने के बाद जिस तरीके से शिबू सोरेन की तर्ज पर (लुक में भी) हेमंत सोरेन और कल्पना सारेन पूरे झारखंड में घूमे और अपनी बात रखी, उसका गहरा असर पड़ा. इस जीत का श्रेय कल्पना सोरेन के तूफानी चुनावी दौरे को भी जाता है. उनकी चुनावी सभाओं में उमड़ी भीड़ जनता से उनके बेहतर कनेक्ट को दर्शाती है. इस चुनाव में एक बड़ा फर्क दिखा सही समय पर सही निर्णय लेने का. मंईयां सम्मान योजना और बिजली बिल माफ करना तुरूप का पत्ता साबित हुआ. जेल से निकलने के बाद हेमंत सोरेन ने कल्याणकारी योजनाओं को फोकस किया.

मंईयां योजना ने महिलाओं का भरोसा दिलाया

लड़कियों और महिलाओं के लिए मंईयां योजना आरंभ कर उनके खाते में राखी के दिन से एक-एक हजार रुपये डालना आरंभ किया. चुनाव होते-होते एक-एक बहन के खाते में चार हजार जमा हो चुके थे. भाजपा इस योजना की ताकत को देख रही थी और उसने काट में गोगो दीदी योजना की घोषणा की, 2,100 रुपये देने का वादा किया. हेमंत सोरेन ने भाजपा को समय नहीं दिया और दूसरे दिन ही 2,500 रुपये दिसंबर से देने का न सिर्फ वादा किया, बल्कि चुनाव की घोषणा के 24 घंटे पहले विशेष कैबिनेट कर इस निर्णय को पास भी करवा दिया. इससे महिलाओं और लड़कियों में भरोसा बढ़ा.

बिजली बिल, कृषि ऋण माफ करने का असर दिखा. चुनाव के दो-तीन महीने पहले से सरकार ने आंदोलन कर रहे, मानदेय-वेतन बढ़ाने, स्थायी करने, ओल्ड पेंशन स्कीम देने की मांग करनेवालों की बातें सुनी और उनकी मांगें मानते गये. इससे सरकार के प्रति नाराजगी नहीं रही. हेमंत सरकार यह बताने में सफल रही कि गरीबों की सरकार है और केंद्र बकाया दे, तो हर परिवार को अधिक से अधिक राशि दी जायेगी.

भाजपा के मुद्दों से जनता नहीं जुड़ पाई

इसके ठीक विपरीत भाजपा ने बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा उठाया, जिसका असर ही नहीं पड़ा, भ्रष्टाचार झारखंड में मुद्दा नहीं बना, गोगो दीदी योजना को ठीक से समझा नहीं सकी. झारखंड ने जो मिल रहा है, उस पर भरोसा किया, जो मिलेगा, उस पर नहीं. इस चुनाव में आजसू साथ आयी थी, लेकिन उसका का बहुत लाभ भाजपा को नहीं मिल सका. इसका एक बड़ा कारण झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जयराम महतो की पार्टी) रहा. झारखंड में कुड़मी-महतो की बड़ी आबादी है. इस समुदाय के युवा भाषा-संस्कृति व रोजगार के लिए आंदोलित रहे हैं. भाजपा से महतो मतदाताओं की दूरी बढ़ी है. आजसू की पकड़ महतो मतदाताओं पर रही है, लेकिन इस चुनाव में कुड़मी समुदाय के युवाओं की पहली पसंद जयराम महतो दिखे. भले ही एक सीट पर जेएलकेएम ने एक सीट जीती हो, पर उसने 14 सीटों पर चुनाव परिणाम को प्रभावित किया. जयराम महतो के दल के प्रत्याशियों ने 20 हजार से लेकर 70 हजार से ज्यादा वोट हासिल किये, जो उनकी ताकत बताता है.

अब हेमंत सोरेन की अगुवाई में फिर से सरकार बन रही है. मजबूत सरकार होगी, लेकिन चुनौतियां बहुत होंगी. सबसे बड़ी चुनौती होगी चुनाव में की गयी घोषणाओं को लागू करने की. राज्य की आय सीमित है. इसे बढ़ाना होगा. केंद्र और राज्य में अलग-अलग सरकार है. राज्य और केंद्र दोनों को चुनावी टकराहट को भूलना होगा. बेहतर तालमेल, आपसी सम्मान, राज्य-केंद्र के बीच संबंध से आगे की यात्रा सुखद होगी. राज्य को पैसा न मिले, खजाना खाली हो जाये तो विकास का काम ठप हो जायेगा. वेतन, पेंशन, बहनों को सम्मान राशि, वृद्धावस्था पेंशन आदि समय पर मिलता रहे, राज्य की अर्थ-व्यवस्था पटरी पर रहे, यही बड़ी चुनौती है. देश के अनेक राज्यों में विपक्ष की सरकार पहले भी रही है और बेहतर संबंध के बल पर राज्यों को केंद्र से सहयोग मिलता रहा है, झारखंड को भी मिलेगा, यही भरोसा करना चाहिए.

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