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विद्यापति स्मृति समारोह कार्यक्रम आयोजित

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सैकड़ो वर्ष पूर्व महाकवि विद्यापति ने नारी संवेदना के स्वर को मुखरित किया

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महाकवि विद्यापति जनकवि युग दृष्टा, युगसष्ट्रा एवं युगांतरकारी कवि थे: डॉ कुलानंद झा सहरसा भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय के कैलेंडर में शामिल निर्धारित कार्यक्रम अनुसार गुरुवार को पीजी सेंटर में विद्यापति स्मृति समारोह का आयोजन किया गया. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ कुलानंद झा, डॉ रामनरेश सिंह, डॉ उदय कुमार, प्रो गीता कुमारी, डॉ लाला प्रवीण, डॉ प्रीति गुप्ता, डॉ अणीमा एवं सत्य प्रकाश द्वारा संयुक्त रूप से कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता एवं मंच संचालन डॉ अरुण कुमार सिंह ने किया. इस अवसर पर डॉ कुलानंद झा ने कहा कि भारत में ही नहीं पूरे विश्व में जनकवि युग दृष्टा, युग सष्ट्रा, युग परिवर्तनकारी, युगांतरकारी विश्व कवि महाकवि के रूप में विद्यापति को जाना जाता है. नारी सशक्तिकरण पर आज सरकार विशेष ध्यान दे रही है. लेकिन सैकड़ो वर्ष पूर्व महाकवि विद्यापति ने नारी संवेदना के स्वर को मुखरित किया. वे बहुमुखी प्रतिभा की धनी थे. उनका व्यक्तित्व बहूआयामी था. वहीं प्रोफेसर गीता कुमारी ने कहा कि भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महाकवि विद्यापति मैथिली कवि के रूप में स्थापित हैं. उनकी रचना संस्कृत एवं अवहट्ट भाषा में की गयी है. जिसके तहत गंगा वाक्यावली, कृतिलता, कीर्तपताका, पुरुष परीक्षा, भू परिक्रमा, दुर्गा भक्ति तरंगिणी सहित महत्वपूर्ण रचनाएं की गयी है. डॉ लाला प्रवीण ने कहा कि महाकवि विद्यापति मैथिली भाषा के उन्नयन के लिए भक्ति श्रृंगार, वैराग्य एवं व्यवहार परक विषयक गीतों में विरह वेदना जैसे महत्वपूर्ण बिंदुओं को उकेरा गया है. डॉ अणिमा, डॉ प्रीति गुप्ता, डॉ उदय कुमार ने कहा कि महाकवि विद्यापति ने मिथिला की लोक जीवन पर आधारित अपनी रचनाओं में स्थान दिया. उन्होंने कहा कि नारी संवेदना को व्यक्त करते हुए उन्होंने पिया मोर बालक हम तरुणी गे, हम नहीं आज रहब एहि आंगन जो बुढ होयत जमाय, हमर दुखक नहीं ओर, आजू नाथ एक व्रत महा सुख लागत है. डॉ राम नरेश सिंह ने कहा कि महाकवि विद्यापति द्वारा शक्ति, शैव, वैष्णव संप्रदाय के लिए रचना की. जिसके तहत कनक भूधर शिखर वासनी, आदिनाथ एक व्रत महा सुख लागत है एवं माधव हम परिणाम निराशा जैसे गीतों की रचना कर पथ प्रदर्शक बने. उन्होंने कहा कि जय जय भैैरवी गीत राष्ट्रीय गीत बन चुका है. जिसकी गायन पर सभी लोग खड़े हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि सैकड़ों वर्ष पूर्व महाकवि विद्यापति की रचना एक कंठ से दूसरे कंठ में सदियों तक सुरक्षित धरोहर के रूप में रहा. मौके पर डॉ प्रशांत कुमार मनोज, सत्य प्रकाश सहित अन्य मौजूद थे. धन्यवाद ज्ञापन डॉ रमण कुमार चौधरी ने किया.

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