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कुंभकारों की चाक ने पकड़ी रफ्तार, मिट्टी के दीये से रोशन होंगे घर-आंगन

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दीपावली व छठ पर्व को लेकर जिला भर के कुम्हारों की चाक की रफ्तार तेज हुई. चीनी उत्पादों के बहिष्कार के लिए एक तरफ से उठ रहे स्वर को देखते हुए दीपावली पर मिट्टी के दिये बनाने वाले कुम्हारों में इस बार नयी उम्मीद जगी है.

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जमुई. दीपावली व छठ पर्व को लेकर जिला भर के कुम्हारों की चाक की रफ्तार तेज हुई. चीनी उत्पादों के बहिष्कार के लिए एक तरफ से उठ रहे स्वर को देखते हुए दीपावली पर मिट्टी के दिये बनाने वाले कुम्हारों में इस बार नयी उम्मीद जगी है. इसके चलते उनके चाक ने रफ्तार पकड़ ली है. उन्हें उम्मीद है कि अब उनका धंधा रफ्तार पकड़ लेगा. चीन की झालरों ने कुम्हारों का धंधा चौपट कर दिया था, इससे उन्होंने दीया बनाना भी कम कर दिया था.

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दीये बनाने में जुटे कुम्हार

कुम्हार मोहल्ला के रोशन प्रजापति, मूर्तिकार रामू प्रजापति ने बताया कि हमलोग वर्षों से मूर्ति, दीया, घड़ा, चुका, ढकनी सहित मिट्टी के अन्य सामान बना रहे हैं. दीपावली पर्व को लेकर अब तक 15 हजार से अधिक दीये बना चुके हैं. दीपावली तक 25000 दीये बनाने का लक्ष्य है. इसके अलावा इस समाज के अन्य लोगों ने भी बताया कि दीपावली को लेकर हमलोग दिन-रात कर दीये बना रहे हैं. इस साल प्रति पीस दीया की कीमत एक रुपये है.

मिट्टी की दीये प्रज्वलित कर दीपावली मनाएं, पर्यावरण बचाएं

– आधुनिकता के दौर में हम अपनी परंपराओं से दूर होते जा रहे हैं. जैसे आदिकाल से दीपावली पर मिट्टी के ही दीपक जलाने की परंपरा रही है, लेकिन बीते दो दशक के दौरान हम कृत्रिम लाइटों पर ज्यादा निर्भर हो गये हैं. इस दीपावली हमें मिट्टी के दीपक जलाने का संकल्प लेना है. – ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, दीपावली के पर्व पर मिट्टी का दीपक जलाने से मंगल और शनि ग्रह दोनों मजबूत होते हैं – मिट्टी का दीपक जलाने से लक्ष्मी का वास होता है. इसके साथ ही परिवार के सुख और समृद्धि में वृद्धि होती है. – मिट्टी के दीये को शुभता का प्रतीक माना जाता है. मिट्टी के दीये में पंचतत्व होते हैं. – मिट्टी के दीये जलाने से मानसिक और शारीरिक तनाव दूर होता है.

– मिट्टी के दीये जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. * दीपावली पर मिट्टी के दीये जलाने की परंपरा सदियों पुरानी है.

– दीपावली पर मिट्टी के दीये जलाने से कुम्हारों की मेहनत को सफलता मिलती है.

– मिट्टी के दीप पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होते हैं.

इस दीपावली हम तेज आवाज के पटाखों से भी परहेज करेंगे. तेज आवाज वाले पटाखों से कई तरह के नुकसान हो सकते हैं

स्वास्थ्य पर असर :

मानव कान 60 से 65 डेसीबल शोर को सहन कर सकते हैं. वहीं, कई पटाखों की आवाज़ 100-120 डेसीबल से भी ज्यादा होती है. तेज आवाज वाले पटाखों से कान के पर्दे फटने का खतरा रहता है. इनसे स्किन, एलर्जी, सांस लेने में तकलीफ़, हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां हो सकती हैं. – पटाखों के धुएं से श्वास संबंधी रोग बढ़ते हैं. दिल के मरीजों को पटाखों के धुएं से बचकर रहना चाहिए. –

पर्यावरण पर असर :

पटाखे फोड़ने से वातावरण में गर्मी, कार्बन डाइऑक्साइड, और कई ज़हरीली गैसें बढ़ती हैं. इससे ग्लोबल वार्मिंग होती है.

जानवरों पर असर :

पटाखों की तेज आवाज से जानवर डर जाते हैं और कंपकंपी, लार टपकाना, चीखना, मनोविकृति या अत्यधिक भौंकना शुरू कर देते हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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