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कोसी नदी किनारे स्थित पचाठ के दुर्गा मंदिर में नवमी को दी जाती है भैंसे की बलि

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लोगों के आस्था से जुड़ी है कई किंवदंती कथाएं

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लोगों के आस्था से जुड़ी है कई किंवदंती कथाएं

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बेलदौर. प्रखंड के बलैठा पंचायत के पचाठ गांव स्थित मां दुर्गा का मंदिर अपने में कई रहस्य छिपाए श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र बना हुआ है. उक्त मंदिर को लेकर लोगों के बीच ऐसी मान्यता है कि चार दशक पूर्व जिस स्थल पर मंदिर है उसके समीप भागीरथी नदी बहती थी, उसके मीठे जल ही आसपास के लोगों के लिए एक मात्र शुद्ध पेयजल का विकल्प था. भागीरथी नदी के स्वच्छ एवं मीठे पानी का उपयोग लोग भोज एवं घरेलू उपयोग में पीने व भोजन बनाने में करते थे. मंदिर परिसर टापू में तब्दील थी, एक तरफ भागीरथी नदी तो महज 100 फीट की दूरी पर कोसी नदी बहती थी. मान्यता है कि उक्त भागीरथी नदी को दैत्य द्वारा रातों रात खुदाई कर बनाया गया था. वहीं लोग उक्त दैत्य एवं कोसी के कोप से बचने के लिए उक्त स्थल पर मां भगवती की उपासना शुरू कर दी वहीं लोगों के आस्था को देख बलैठा के जमीन मालिक स्वर्गीय जमुना प्रसाद सिंह ने करीब दो बीघा जमीन मंदिर को देकर उक्त स्थल पर मां दुर्गा की पूजा अर्चना के लिए सार्वजनिक कर दी. ग्रामीणों में वयोवृद्ध पशुपति सिंह, पूर्व पंसस दुर्गा सिंह, शंभू कुमार झा, समाजसेवी रवि भूषण झा, मुखिया विरेन्द्र सहनी आदि ने बताया कि पचाठ का दुर्गा मंदिर काफी पुराना है, पूर्वजों से इसके महत्ता एवं ऐतिहासिक गाथाओ को सुना है,ऐसी मान्यता थी कि उक्त भागीरथी नदी में सोन मछली का निवास था, मां दुर्गा को बली देकर नवरात्र के नवमी को जब उक्त नदी में मछुआरे शिकारमाही करते थे तो मछुआरे की जाल से सोनमछली पानी से बाहर आती थी एवं श्रद्धालुओं को दर्शन देकर फिर उसे पानी में छोड़ दिया जाता था. लेकिन वर्ष 1987 की प्रलयंकारी बाढ़ से उत्पन्न हुई कोसी के जलप्रलय में भागीरथी नदी विलुप्त हो गई. इसके बाद से पचाठ समेत डुमरी के लोग कोसी कटाव का दंश झेलने लगे. इलाके के लोग कोसी के कहर से जूझते बार बार विस्थापन एवं तिनका तिनका इकट्ठा कर पुनर्वासित होने की समस्याओं से जूझने लगे तो प्रभावित इलाके के लोग मां दुर्गा को भैसा एवं बकरे की बलि देकर इलाके को प्राकृतिक विपदाओं से मुक्ति एवं सुख समृद्धि की कामना करने लगे. यही परंपरा आज तक चली आ रही है. ग्रामीणों ने बताया कि गुरुवार की रात भी निशा पूजा के बाद मंदिर का पट प्रतिमा दर्शन के लिए खुल जायेगा एवं शुक्रवार की सुबह से श्रद्धालुओं की भीड़ पूजा अर्चना एवं बलि प्रथा को देखने मंदिर परिसर में उमड़ पड़ेगी. इसके अलावे मंदिर परिसर स्थित अलग अलग बेदी पर भैसा एवं बकरे की बलि देकर पूर्व से चली आ रही परंपरा निभाते मां दुर्गा की पूजा अर्चना शुरू हो जायेगी. उक्त दुर्गा मंदिर में भैसा की बलि इलाके में चर्चा का विषय बना हुआ है जबकि करीब दो हजार बकरे की भी बलि देकर मां दुर्गा को प्रसन्न करने की परंपरा दशकों पूर्व से इसी तरह चली आ रही है. इसके अलावे उक्त दो दिवसीय दशहरा पूजा सह मेले में श्रद्धालुओं के मनोरंजन के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन प्रस्तावित है. इसको लेकर कोसी नदी किनारे बसी पचाठ गांव समेत आसपास के इलाके में उत्सवी माहौल बना हुआ है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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